मैं परमात्मा को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?
गतांक से आगे...
इसलिए ज्ञान-निष्ठा को प्राप्त करने होने से पहले कर्म-योग अर्थात् भक्ति, उपासना, संध्या, गायत्री देव पूजन, यज्ञ-हवन, प्राणायाम आदि शास्त्र-निहित कर्मों को विधि अनुसार करके अंत:करण को शुद्ध किया जाना चाहिए। अन्यथा यह वाचक-ज्ञान लाभ की अपेक्षा हानिकारक सिद्ध होगा, क्योंकि इससे मिथ्या अभिमान पैदा होता है जो नाश की जड़ है।
(3) 'नेति-नेति'- यह जिज्ञासु की पहली धारणा है परंतु इसके बाद दूसरी धारणा असवाव की है। नजी को छोड़कर असबाव में कायम होना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य और उसकी शान है। इसी में शेष बातें भी छिपी हैं। जिसने उन्हें देख लिया, उसी का जीवन सार्थक है। ब्रह्म-ज्ञान के जिज्ञासु दो प्रकार के होते हैं। एक तत्व-जिज्ञासु, दूसरे जगत् भीरू। पहली प्रकार के जिज्ञासु तो वे हैं जिन्हें रस्सी में सांप का भ्रम नहीं हुआ, लेकिन अंधेरे के कारण ज्ञात नहीं हुआ कि यह क्या पड़ा है। वे किसी तत्ववेत्ता पुरुष से पूछते हैं कि यह क्या है? और उनको केवल यह बता देने से कि यह रस्सी है, उनका भ्रम दूर हो जाता है। अर्थात् इस दृश्य मात्र संसार के बारे में केवल ‘सर्वं खलु इदं ब्रह्म'- कह देने से ही उनको ज्ञान हो जाता है।
परंतु दूसरी प्रकार के जिज्ञासुओं को, जिसमें रस्सी में सांप का भ्रम हुआ और वे इससे डर कर भागे, उनको तत्ववेत्ता पुरुष पहले ‘नेति-नेति'- अर्थात् निषिद्ध पक्ष का उपदेश देते हैं कि यह सर्प नहीं है, जिससे उसका डर दूर हो जाता है। पर फिर वह प्रश्न करता है कि यदि यह सर्प नहीं है तो क्या है?' इसी के उत्तर में उसे यह उपदेश दिया जाता है कि 'यह रस्सी है'! और ज्ञान रूपी प्रकाश से इसको प्रत्यक्ष दिखा दिया जाता है कि यह वास्तव में ही रस्सी है। और रस्सी में ही इसको सांप का भ्रम हो गया था। रस्सी तो रस्सी है। वह कभी सांप नहीं बनी। इसी तरह अधिष्ठान आत्मा में अज्ञानी पुरुष ने नाम रूप जगत् की कल्पना कर ली है। परंतु ज्ञान होने पर वह ज्यों का त्यों ब्रह्म ही दिखाई देता है।
आप अवश्य ‘नेति-नेति' का अभ्यास करेंइस नजी को अभ्यास परिपक्व होने पर जब आप दूसरी कक्षा अर्थात् असबाव का अभ्यास करेंगे तो आप ईश्वर की सत्ता को स्वयमेव मानने लगेंगे। बल्कि इसी अभ्यास से जब आप अपने अहंऔर अहंकार का सर्वथा अभाव कर देंगे तो आपको सिवा परमात्मा के और वस्तु दिखाई ही नहीं देगी। तात्पर्य यह है कि आपको खांड के खिलौनों में खांड, मिट्टी के बने बर्तनों में मिट्टी और सोने के बने आभूषणों में सोना ही दिखाई देगा, उसी तरह इस अनेक नामरूप संसार में आपको एक ही सत्ता अनुभव होगी
परंतु पहली ही सीढ़ी पर खड़े जिज्ञासु को चाहिएकि वह ज्ञान मार्ग पर चलने से पहले ही अपने मन में नए-नए शक पैदा न करे, बल्कि किसी तत्वदर्शी गुरु की शरण में श्रद्धापूर्वक जाकर उसकी आज्ञानुसारजाकर उसकी आज्ञानुसार साधन करे। क्योंकि केवल किताबीज्ञान से नास्तिकता और भ्रम पैदा होने का अंदेशा होता है।