सबका कल्याण हो!


हिन्दू शास्त्रों की दृष्टि से संसार के समस्त प्राणी एक भगवान के स्वरूप हैं। भगवान के निवास स्थान हैं। या भगवान के सनातन अंश- उनकी प्रिय संतान है। तीनों सिद्धान्त भिन्न-भिन्न से प्रतीत होने पर भी वस्तुतः एक ही सत्य का प्रतिपादन करते हैं। यदि ज्ञान की दृष्टि से कहा जाये तो इसी तत्व को यों कहा जाता है कि एक ही अखंड आत्मा विभिन्न स्थूल-सूक्ष्म जीवों के रूपों में वैसे ही प्रकाशित है जैसे एक ही अखंड महाकाश समस्त देशों, नगरों, गांवों, मकानों और कोठरियों के रूप में प्रकट है। इसीलिये सर्वत्र भगवछर्शन अथवा सर्वत्र आत्मदर्शन करने वाले पुरूष हिन्दू शास्त्र की दृष्टि से महात्मा माने जाते हैंबहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान् मां प्रपद्यते। वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥ ‘बहुत जन्मों के अन्त में जो ज्ञान प्राप्त पुरूष सब वासुदेव ही हैं। इस प्रकार मुझ को (भगवान को) भजता है, वह महात्मा अति दुर्लभ है।' भगवान ने कहा हैमत्तः परतरं नान्यत् किंचिदस्ति धनंजयमयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥ 'अर्जुन! मेरे अतिरिक्त किचिन्मात्र भी दूसरी वस्तु नहीं है। यह संपूर्ण (जगत) सूत्र में (सूतेकी) मणियों की भान्ति मुझमें ही पिरोया हुआ है।' इस प्रकार जो सर्वत्र और सर्वदा श्रीभगवान को देखता है, उसे सर्वत्र, सब में, सब समय भगवान ही मिलते हैं


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