सच्चे मार्गदर्शक
एक राजा को फूलों का बड़ा शौक था। उसने सुन्दर सुगंधित फूलों के पच्चीस गमले अपने शयन खंड के प्रांगण में रखवाए थे। उनकी देखभाल के लिए एक माली रखा गया था। एक दिन माली से एक गमला टूट गया। राजा को पता चला तो वह आग बबूला हो गया। उसने आदेश दिया कि एक महीने बाद माली को फांसी दी जाए। मंत्री ने राजा को बहुत समझाया लेकिन राजा अपनी जिद्द पर डटा रहा। इसके बाद राजा ने राज्य में घोषणा करवा दी कि जो कोई टूटे गमले की मरम्मत करके उसे ज्यों का त्यों बना देगा, उसे मुंह मांगा पुरस्कार दिया जायेगा। कई लोग पुरस्कार के लालच में भाग्य आजमाने आये लेकिन असफल रहे।
एक दिन एक महात्मा नगर में पधारे। उनके कानों तक भी गमले वाली बात पहुंची वह राजदरबार में गये और बोले- 'राजन्! तेरे टूटे गमले को जोड़ने की जिम्मेदारी मैं लेता हूं। लेकिन साथ ही तुम्हें समझाना चाहता हूं कि यह देह अमर नहीं तो मिट्टी के गमले कैसे अमर हो सकते हैं। ये तो टूटेंगे-फूटेंगे, गलेंगे-मिटेंगे उतना ही क्यों गमले में लगा पौधा भी सूखेगा।' महात्मा की बात को अनसुना कर राजा अपनी बात पर अड़ा रहा।
आखिर राजा महात्मा जी को अपने शयन खंड के प्रांगण में ले गया जहां गमले रखे हुए थेमहात्मा जी ने एक मोटा डंडा उठाया और एक-एक कर प्रहार करते हुए सभी चौबीस गमले तोड़ डाले। थोड़ी देर तक तो राजा चकित होकर देखता रहा। उसे लगा कि गमले जोड़ने का कोई नया तरीका होगा। लेकिन गमले तोड़ने के बाद महात्मा को यूं ही खड़ा देखकर उसने आश्चर्य से पूछा- ‘ये आपने क्या किया?' महात्मा जी बोले- ये मैंने चौबीस आदमियों की जान बचाई है। एक गमला टूटने पर एक को फांसी लगवा रहे हो। चौबीस गमले भी किसी न किसी के हाथ से ऐसे ही टूटेंगे तो उन चौबीस लोगों की जान बचाई है।' राजा को महात्मा जी की बात समझ में आ गई। उसने हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगी और माली की फांसी का हुक्म भी वापस ले , लिया।