वेदों का महत्व
वेद शब्द विद् धातु से निर्मित है। विद् का अर्थ जानना है। वेद विद्या, ज्ञान और शिक्षा का भंडार है। वेद ईश्वरीय ज्ञान के भंडार हैं। सृष्टि के निर्माण से पूर्व 33 देवताओं का वर्णन हैं। देवता का अर्थ उपयोगी, प्रकाशमान तथा प्रकाशक पदार्थ है। केवल ईश्वर ही जग का प्रकाशदाता है। ईश्वर की सत्ता पृथ्वी के कण-कण में समाहित है। सृष्टि के निर्माण से पूर्व 33 देवताओं का वर्णन है। आधुनिक काल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय विश्व शान्ति है। बच्चे-बच्चे की जिह्वा पर अंकित है:- खुद जिओ, औरों को भी जीने दो”
वस्तुतः ईश्वर ही हमारा हितैषी जनक है। वेदों में विज्ञान सम्मत भ्रम रहित ज्ञान संकलित है। इसमें कर्म, ज्ञान, भक्ति, उपासना का समन्वय है। ये मानसिक शक्तियां एक दूसरे की पूरक है। वेदों से हृदय, मस्तिष्क और तन का समुचित विकास होता है। हृदय के बल के विकास से अर्थात मानसिक शक्ति से अंधविश्वास तिरोहित होता है तथा मस्तिष्क के विकास तार्किक शक्ति को बल प्राप्त होता है एवं विकास भी होता है। वेदों के स्वाध्याय से मन, वाणी, मस्तिष्क की शक्ति उन्नति के शिखर पर पहुंच जाती है। परोपकार की भावना का विकास होता है। विश्व शान्ति की प्रेरणा प्राप्त होती है।
“अश्मन्वती रीयतेस रमध्वम्” अर्थात पथरीली धरती से जीव को पार कराओ। वेदों में वर्णित कर्म में कठोर बाध्यता नहीं है। कर्म में सफलता प्राप्त करने पर अपूर्व आनन्द की उपलब्धि होती है। लौकिक सुखों के उपभोग की अनुमति प्राप्त होती है। वयम् स्याम पतयो रयीणाम्”
हम सुख के अर्थात सुख के प्रतीक" के स्वामी हों। धन प्राप्त कर ईर्ष्यालु न बनें। त्याग भाव से धन का प्रयोग करें। यह धन हमारा नहीं ईश्वर का है। ईष्र्या का भाव त्याग कर सुखों का उपयोग करेंईश्वर के पास सुख-दुख के समुद्र भरे हैं। नभ में अनेक सुख-दुख के उपग्रह हमारी सहनशक्ति को बल देते हैं। सुख-दुख की सीमा निश्चित की है। आत्मा नए-नए शरीर धारण करती है। आत्मा, परमात्मा, प्रकृति अनादि तथा अनन्त हैं। वैदिक ज्ञान में विश्व बंधुत्व की भावना अन्तर्निहित है। पुनर्जन्म, तीर्थस्थान व्यर्थ हैं। वर्ण व्यवस्था, गुण, कर्म, स्वभाव पर निर्भर करते हैं। आश्रम की व्यवस्था शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए निर्मित की गई। पुनर्जन्म निश्चित अवधि में होता है। ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, निराकार तथा निर्विकार है। वेदों में ओम् तथा यज्ञों पर बल दिया गया है। रामायण, महाभारत, गीता में भी यज्ञों के आयोजन में बल दिया गया है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति यज्ञ द्वारा ईश्वर की पूजा करते हैं।
वेदों में मनुष्य के संबंध स्तुतियों, उपदेश, आदेश, शिक्षा आदि से सार्थक बताया गया हैमनुष्य का जीवन आचार-व्यवहार, रहन-सहन, पठन-पाठन, दान, पुण्य, ध्यान, समाधि से सार्थक होता है। आधि भौतिक, आधि दैविक, आध्यात्मिक मंत्रों द्वारा सार्थक बताया गया है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष- चार पदार्थ में समस्त इच्छाएं समाहित हैं। वेदों के ज्ञान के आधार पर अनेक धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई।