छोड़ो दूसरों को पढ़ना
श्रीकृष्ण भगवान स्वाध्याय को दैवी सम्पत्ति कहते हैं। भक्तों और संतों ने तो गजब कर दिया। उन्होंने कहा, क्यों दूसरों को देख रहे हो? खुद को देखो और अपना निरीक्षण करोकृष्ण भक्त संत सूरदास ने तो कह ही दिया था किमो सम कौन कुटिल खल कामी जिन्ह तन दिया ताइ बिसरायो कैसो नमकहरामी। बढ़िया स्वाध्याय किया है सूरदास ने। क्या कभी आपने ऐसा स्वाध्याय किया है जैसा स्वाध्याय कृष्णभक्तसूरदास ने किया? क्या कभी ऐसी गीता, ऐसी उपनिषद्, ऐसे वेदमंत्र, ऐसी रामायण, हनुमान चालीसा, ऐसा सुंदरकांड पढ़ा है क्या किसी ने? किसी ने नहीं पढ़ा। और बहुत कठिन है पढ़ना। जरा सा किसी को कहकर तो देखो कि तुम बड़े कपटी हो, बड़े छली हो, बड़े धोखेबाज हो, बड़े झूठे हो, तो मुंह नहीं देखेगा वह तुम्हारा और हो सकता है कि वह सुनकर मानहानि का मुकद्दमा कर दे तुम पर। यह भी हो सकता है कि वह तुम्हारे पीछे पुलिस लगा दे। यह भी हो सकता है कि वह तुम्हारे पीछे गुंडों को लगा दे- छली कहता है, कपटी कहता है, बेईमान कहता है। लेकिन सूरदास कह रहे हैंक्यों कह रहे हैं? जरा विचारों तो। अनुभव करो।
श्रीकृष्ण कह रहे हैं, दैवी सम्पदा का सातवां लक्षण स्वाध्याय हैजरा इस दैवी सम्पदा को अपने भीतर आने दीजिएक्यों द्वार बंद कर रखे हैं? इस सातवें लक्षण को अपने भीतर आने दीजिए। द्वार मत बंद कीजिए आप अपने स्वयं का अध्ययन करना ही अपना निरीक्षण है।
सूरदास कह रहे हैं जिसने मुझे जन्म दिया, जिसने मुझे जीवन दिया, जिसने मुझे विद्या दी, जिसने मुझे बुद्धि दी, जिसने मुझे विवेक दिया, जिसने मुझे इतनी बड़ी पदवी पर पहुंचाया, मैं उसी को भूल गया- जिन्ह तन दिया, ताहि बिसरायो। यह विस्मरण और भूलना है क्या? भगवान कहां है याद किसी को। भगवान तो उसी को याद है जिसके हृदय में दैवी सम्पदा का सातवां लक्षण आएगा। सभी भक्तों ने, सभी संतों ने ऐसा किया है। आप स्वयं विचारिए अपने मन में, स्वयं सोचिए अपने मन में कितनी बार बैठ कर आप कहते हैं, उसकी पत्नी ऐसी है, उसका पति ऐसा है, उसका बेटा ऐसा है, वह ऐसी है, उसका घर ऐसा है उसका कुल ऐसा है, उसका स्वभाव ऐसा है, लेकिन ये सारी बातें आपसे भी तो जुड़ी हैं। आपके घर में भी पति है, पत्नी है, बेटा-बेटी है, पुत्र-पुत्रवधु है, आपके घर में भी नौकर है। अपने घर को भी तो देख लो, दूसरे के घर की छानबीन करने जा रहे हो
यह गीता का सोलहवां अध्याय मनुष्य को हिला देने वाला है। दैवी सम्पदा और आसरी सम्पदा पर यदि जरा भी किसी का ध्यान हो गया, तो नख से लेकर चोटी तक वह गंगाजल के समान पवित्र हो जाएगा। किसी एक गुण का हजारवां हिस्सा भी हमारे जीवन में उतर आया, तो जिन्दगी में एक नई क्रान्ति हो जाएगी। जीवन पवित्र हो जाएगा।
इंगलैंड का इतिहास पढ़ लिया, रूस का पढ़ लिया, फ्रांस का पढ़ लिया। किसी भी बच्चे से पूछ लो इन सबके बारे में। सब याद है उसे, मैं इसका विरोधी नहीं हूं, कि कौन राजा कब हुआ, कब वो तख्त पर बैठा, कब हटा, कब क्रान्ति हुई और कब कहां पर जिहाद्द हुआ, यह सब जानो आप। लेकिन कब अपने मन में क्रान्ति हुई, इसका अंदाजा हैकोई। कब तख्त पलटा, कौन कब गद्दी पर बैठा और जीवन में क्या-क्या हो रहा है, याद करोमैं कहता हूं इतिहास पूरा याद करो, लेकिन अपना इतिहास भी तो देखो। एक जगत तुम्हारे भीतर है और एक जगत तुम्हारे बाहर है। बाहर के जगत में आप इतने आगे चले गए, इतने आगे बढ़ गए, जिसकी कोई सीमा नहीं है। एक-एक कण को लिया, पूरी प्रकृति की जांच कर ली, चंद्रलोक तक चले गए, लेकिन अपने भीतर के जगत में एक इंच भी नहीं सरके अभीऔर सरके हो तो अपने मन में विचार करके देखना कि कितना सरके हो? सरकने का ख्याल ही नहीं है। अपनी ओर जाने की बात ही समझ नहीं आती हैस्वाध्याय का यह अर्थ है उस ओर सरकना। देख लि ख लिया, एक-एक क्षण को देख स्वाध्याय का अर्थ होता है स्व अर्थात अपना अध्याय मतलब अध्ययन। इस प्रकार इसका अर्थ हो गया ध्यान! अपने भीतर जो आत्मा है, अपने भीतर जो परमात्मा है, ईश्वर है, उसका ध्यान करना। उससे मुलाकात करना, उससे मिलना। अब आप ही सोचिए। स्वाध्याय का अर्थ है, अपने आपसे मिलना। कभी अपने आप से मिले हैं आप? कमाल की बात है, रोज आप परिवार के लोगों से मिलते हैं, अपनों से मिलते हैं, दोस्तों-मित्रों से मिलते हैं, पड़ोसियों से मिलते हैं, मेहमानों से मिलते हैं, लेकिन आप अपने आप से नहीं मिलते।
भोजन से मिलते हैं आप। दिन में तीन-तीन, चार-चार बार आप भोजन से मिलते हैं, भोजन करते हैं। यह भोजन करना भोजन से ही मिलना है। दिन में कितनी बार आप काम से मिलते हैं, क्रोध से मिलते हैं, मोह से मिलते हैं, अहंकार से मिलते हैंकितनी ही बार आप राजा और नेता से मिलते हैं। लेकिन क्या दिवाला निकालकर बैठे हैं आप जो अपने आप से नहीं मिलते। अपने आप से क्या नाराजगी हो गई है आपकी?
कितनी बार आप वस्त्रों से मिलते हैं। गरमी के दिनों में आप तीन-तीन बार वस्त्रों से मिलते हैंलेकिन आप अपने आप से नहीं मिलतेअपने आप से मिलने का अर्थ है अपनी आत्मा से मिलना। ध्यान में बैठना है सही अर्थ इसका। लेकिन ध्यान नहीं लगता। आपने किया क्या है यह जो आप कह रहे हैं। स्वाध्याय कर रहे हैं, स्वाध्याय होता नहीं है। इसके लिए आपने किया क्या है? कौन से प्राणों की बाजी लगाई है? कौन सा उत्सर्ग किया हैआपने? कौन सा बलिदान किया हैआपने? मैट्रिक पास होने के लिए बारह साल लगा देते हैं आप। उस पर भी फेल हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। एम.ए. करने के लिए बीसियों साल लग जाते हैं। पहलवान बनने के लिए तीस-पैंतीस साल लग जाते हैंबैरिस्टर बनने के लिए आधी जिन्दगी लग जाती है। बिजनेस-व्यापार जमाने में पूरी जिन्दगी बीत जाती है आपकी। लेकिन यहां दो-चार दिन बैठने के बाद कहते हैं, ध्यान लगता नहीं हैक्यों भाई, क्या कुर्बानी की है आपने इसके लिए?