गौ-रक्षा : एक आवश्यक कर्त्तव्य


स्व-चिन्तन



 


गोविन्द की अर्चा और गाय की रक्षा भारतीय संस्कृति की परम्परा है। गाय धार्मिक दृष्टि से माता है और सांस्कृतिक दृष्टि से आदरणीय पोष्णीय प्राणी है। आर्थिक दृष्टि से गोवंश राष्ट्रीय पशुधन है।


पशुधन की महत्ता प्राचीन काल में तो थी ही, आज भी उतनी ही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य के लिए गाय आज भी 'अमृतस्य नाभिः' है। परन्तु आज गोरक्षा की समस्या धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक जगत के लिए जटिल हो गई हैदूध की नदियां बहाने वाले इस गीता, गंगा के देश में गो वंश का नाश और गो-हत्या चिन्तनीय है।


यद्यपि सरकार कोशिश कर रही हैपरन्तु समस्या बिगड़ती जा रही है। गौहत्या का भारतवंश में होना अत्यन्त दुखद विषय है। जानते-बूझते ऐसा होने देना एक और विचारणीय विषय है। गौ पालन के नाम पर गौ माता को कूड़ा घरों में खाना ढूंढने के लिए छोड़ देना अत्यन्त पापकारी है। हम सभी गौ रक्षण का व्रत ले लें और प्रण लें कि हमारी गौमाता की रक्षा हो तो यह संभव हो सकता है।


जहां कहीं गौ कूड़ा घरों में नजर आयें वहां उस क्षेत्र के अधिकारी को सूचित करें। सोए हुए जमीर को जगाने के लिए प्रतिकार करना होगा तभी राष्ट्र का कल्याण और देश का मंगल हो सकता है


यदि हम कहते हैं कि गौ हमारी माता है तो गौ हत्या मातृहत्या है।...विचार करें।


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