जीवन स्वाभाविक उत्सव है
आप सभी को सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं। यह वसंत का महीना है। मां शारदे को याद करने का मौसम है। क्या आज किसी को याद है कि स्कूलों में कक्षा शुरू होने से पहले की जानेवाली सरस्वती वंदना- 'मां शारदे कहां तुम वीणा बजा रही हो...'? दरअसल हमारी संस्कृति में ज्यों-ज्यों टाई-कोर्ट-स्कर्ट जैसी परिपाटी की सेंध बढ़ी, हम मां शारदे को भूलकर हैपी वेलेंटाइन की गोद में बैठ गएदिलचस्प यह है कि सरस्वती पूजा एवं वेलेंटाइन डे दोनों फरवरी महीने अर्थात् वसंत में आते हैं। वैसे यह वसंत कामदेव एवं देवी रति का मौसम है, लेकिन इसी मौसम में इन पर नियंत्रण करने के लिए माता सरस्वती को याद करने का विधान किया गया है। मतलब साफ है कि कामदेव एवं देवी रति की आराधना सिर्फ परिवार बढ़ाने के लिए करनी है, बाकी समय अध्ययन एवं स्वाध्याय को देना है। शायद यही कारण है कि इसी समय परीक्षाएं होती हैं। लेकिन जब हम अपने जीवन से अध्ययन एवं स्वाध्याय को गायब कर देते हैं तो उस खालीपन को भरने के लिए वेलेंटाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे जैसे उत्सव अनायास ही आने लगते हैं। चूंकि जीवन में खालीपन कभी भी संभव नहीं। जीवन स्वाभाविक उत्सव है। और जो स्वभाव में शामिल हो, वह रूप तो बदल सकता है, गायब नहीं हो सकता! इसलिए आप देखें कि सार्वजनिक जीवन में पहले होनेवाला शास्त्रार्थ अब बहस एवं कोलाहल में तब्दील हो गया है। क्या आपने कभी सोचने की को. शिश की है कि इसके मूल में क्या है? मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि हमने अपने जीवन से स्वाध्याय को विलोपित कर दिया है। अब स्वाध्याय का विलोपन तो हो गया है, लेकिन जीवन तो उत्सव है, लिहाजा उत्सव तो जारी रहेगा। तो उत्सव का स्वरूप क्या होगा? यह स्वरूप हम आज आधुनिक जीवनशैली के हर रूप में देख सकते हैं। डिस्को, पब, फिल्में, थियेटर, आम बोल-चाल के शब्द, आहार-विहार सबकुछ। एक स्वाध्याय के विलोपन से हमारे मानस से हमारी संस्कृति का विलोपन हो गया है। और हम इसे आधुनिकता का नाम दे रहे हैं। हम इस बार मां शारदे से आशीर्वाद मांगें कि वो हमारे जीवन में स्वाध्याय का आरोपण कर दें। क्योंकि जब हम स्वाध्याय करेंगे तो स्वयं को समझना सीख लेंगे। इससे जीवन में माता सरस्वती वाला वसंत घट जाएगा और जब ऐसा होगा तो हमें 'भुक्ति, मुक्ति की युक्ति' आ जाएगी। अर्थात् भोग एवं मोक्ष में सामंजस्य बिठाना आ जाएगा। वसंत हमें यही संदेश भी देता है। तो क्या हम जीवन के उत्सव का असल मतलब समझेंगे?
ॐ पूर्णमिदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमदुच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति
रश्मि मल्होत्रा मुख्य संपादक ओम्