क्या ईश्वर दर्शन हो सकता है?

शंका समाधान


हम देखते हैं कि हमारे सामने एक घर बना हुआ है। इसमें अंदर जाने के लिए एक बड़ा रास्ता है। रोशनी और हवा आने के लिए रोशनदान और खिड़कियां हैं। अंदर बड़े-बड़े खंबेदार दालान हैं। धूप और बरसात से बचने के लिए छत और छज्जे हैं। इन कमरों में तरह-तरह से इंसान को आराम पहुंचाने का इंतजाम किया गया है। घर के अंदर से गंदे पानी को बाहर निकालने के लिए नालियां बनी हुई हैं। और इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि इस घर में रहने वाले को हर मौसम में आराम पहुंचे।


इस घर को देखकर हम कहते हैं कि इस घर को बनाने वाला कोई कुशल कारीगर था, जिसने इस घर में रहने वाले के आराम के लिए जो-जो चीजें जरूरी थीं, उन सब का ध्यान रखते हए घर को बनाया है। हमने बनानेवाले को देखा भी नहीं फिर भी घर को बनाने वाला कोई था या है और वह कोई कुशल व्यक्ति है। इसी तरह हम अपने शरीर को देखते हैं कि खाने को चबाने के लिए दांत, खाने को पेट में पहुंचाने के लिए गले में नालियां, खाने को पेट में रखने के लिए अमाशय और जब खाना पच कर खून बन जाता है तो इसे दिल तक पहुंचाने के लिए पूरे शरीर में नसों का जाल फैला हुआ है। जो खाना शरीर के लिए जरूरी नहीं होता वह मल बनकर बाहर निकलने के लिए रास्ता और दूध, पानी रस आदि का जो अनावश्यक भाग है वह भी बाहर निकालने के लिए अलग नली बनी हुई है। देखने को दो आंखें, सुनने को दो कान, सूंघने के लिए नाक, पकडने. छूने, चलने के लिए हाथ, पैर बने हुए हैं। वंश चलता रहे इसके लिए वासनात्मक इंदियां दूर न रख दी हैं।


 आत्मदर्शियों का कहना   आत्मदर्शियों का कहना है कि जिस शक्ति से यह सृष्टि पैदा होती है, जिससे स्थिर रहती है और अंततः जिसमें लीन हो जाती है, वही ईश्वर परमात्मा या खुदा है। वह हमेशा हाजिर-नाजिर है। वह तुमको देखता है, पर तुम उसे नहीं देख सकते। वह तुम्हारे पास ही विद्यमान है। इस समय भी वह तुम्हारे अंदर दिमाग में बसा हुआ है और वही तुम्हारा ज्ञान है। लेकिन तुम उसे ईश्वर या खुदा नहीं मानते।


हमारे वेद-शास्त्र ईश्वर के बारे में यही कहते हैं कि वह परोक्ष नहीं, अनुमान का विषय नहीं, प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं, माप रहित है, रूप नहीं, रंग नहीं, आकार नहीं। लेकिन जो सत् ज्ञानमय अनंत ब्रम, स्वयं प्रकाश, चेतन स्वरूप है। यह स्थूल भी है, सूक्ष्म भी और सर्वव्यापी भी है। जरा, रोग, मृत्यु से रहित है। यही इस सृष्टि को उत्पन्न करता, पालता और नष्ट करता है। यह निर्गुण होते हुए भी सगुण है, निराकार होते हुए भी इस सृष्टि के रूप में साकार है। परोक्ष होते हुए भी अपरोक्ष है। यही इस जगत् की माया का विस्तार करता है। यह द्वैत रूप से प्रकाश करता है, पर अद्वैत रूप है। यह भगतों, श्रद्धावानों के हृदय में सदा निवास करता है। और दुष्टों पर शासन करनेवाला है।


यही परमेश्वर, यही बम, यही कृष्ण, यही राम है। इस स्वरूप का दर्शन परम् निष्काम प्रेम से ही होता है। न जिज्ञासु, मुमूर्षु भगतों ने इसका दर्शन परम् प्रेम योग से ही किया है। वह एक स्थान या एक काल में नहीं रहता। वह तो एक स्वरूप धारण करके भी रहता है और भिन्न-भिन्न रूप भी धारण करता है। ऐसे परमेश्वर का देखना कोई आसान नहीं। जो मनुष्य परम श्रद्धावान्, पूर्ण प्रेमी, संयम-दमन आदि साधनों से संपन्न है, जो इस संसार के अनेक कार्यों में प्रवृत्त होता हुआ भी सदा ईश्वर प्रेम में लीन है, उसी को परमात्मा का साक्षात्कार होता है। यह परमात्मा तुझसे दूर नहीं, सदा तेरे सम्मुख है, परंतु शुद्ध हृदय हुए बिना इसका तुझे दर्शन नहीं होगा।


जिज्ञासुओं को जगत् की सब उपाधियों का जय करना चाहिए, वासना का त्याग करना चाहिए, सब दृश्य पदार्थों को मिथ्या दृष्टि से बाध करना चाहिएजब सब विकार दूर हो जाएं तभी ईश्वर का दर्शन होता है इसलिए राग-द्वेष से विमुक्त होना चाहिए, चित्तवृत्ति का निरोध करना चाहिए, मन पर वश करना चाहिए और इंद्रिय दमन आदि साधनों का प्रयोग करना चाहिए। इस स्थिति को प्राप्त करने में अपना पुरुषार्थ ही काम आता है। अपने पुरुषार्थ से ही ईश्वर का साक्षात्कार होता है, दूसरा कोई ईश्वर दर्शन नहीं करा सकताइसलिए लिए, राग-द्वेष आदि से पूर्ण इस जगत् को स्वप्न तुल्य जानना चाहिएरात-दिन सांसारिक कर्म करते हुए भी उस परमात्मा का ही सदा ध्यान करता रहेतभी सफलता मिल सकती है। निरंतर साधना के सिवा और कोई इस लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायक नहीं। वेद शास्त्र, गुरू सब रास्ता ही दिखा सकते हैं, उन पर स्वयं चल कर ही जिज्ञासु उस आनंदमय परमात्मा को अनुभव कर सकता है।


अहंकारी पुरुष को परमात्मा का कभी अनुभव नहीं हो सकता। जिसे धन-मान, सुंदर-स्वस्थ शरीर, स्त्री-पुत्र संबंधी, हर प्रकार के सांसारिक पदार्थ प्राप्त हैं, जो इन्हीं के नशे में उन्मत्त हैं, वह परमार्थ की तरफ से अंधा है। इसीलिए तो गुरू नानकदेव जी ने कहा है- 'मायाधारी अंधा बोला'। हजरत कहते हैं- 'सूई के सुराख से ऊंट का गुजर जाना तो शायद मुमकिन हो पर धन से अंधे आदमी का खुदा को पाना नामुमकिन है। अपने आप को वह बहुत अक्लमंद समझता है।


सोचता है कि उसने अपनी लयाकत से धन-दौलत कमाई है। पर उस मूर्ख को ये एहसास नहीं रहता कि उसकी अक्ल के पीछे भी कोई ताकत है जो प्रेरणा करती हैउसी ने अक्ल को हावी किया है।


जब मनुष्य के अंदर नास्तिकता आतीहै और वह अहंकार के वश में आ जाता है, तब उसका नाश होता है। रावण जैसा प्रतापी राजा जो महापंडित, चारों वेदों का ज्ञाता था, जिसने काल को भी बांधा हुआ था, जो भगवान शिव का परम भक्त था, उसने भी जब अहंकार किया तो नाश को प्राप्त हो गया। इसी तरह हिरण्यकश्यप, जिसका शासन संपूर्ण पृथ्वी पर था, और जिससे देवता भी कांपते थे, उसने भी जब ईश्वर की सत्ता को अस्वीकार किया और अपने पूजा कराने लगा, तब भगवान का नृसिंह अवतार लेकर उसका नाश करना पड़ा। कंस, दुर्योधन, जरासंध आदि अधर्मी राजाओं को नष्ट करने के लिए भगवान को कृष्ण का रूप धारण करना पड़ा।


हमारा पुराना इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है कि ईश्वर विद्यमान है और भक्तगणों के लिए, उनकी श्रद्धा के अनुसार मायावी रूप धारण कर, उनके कष्ट निवारण करता है। जब सभी संसारी आसरे टट जाते हैंऔर सब ओर मुसीबतों के तूफान खड़े हो जाते हैं, मनुष्य असहाय हो जाता है, उस समय जो शक्ति उसकी सहायता करती है वही ईश्वर है। द्रौपदी की लाज बचाने के लिए वह वस्त्र रूप बना। दु:शासन साडी खींचते खींचते थक गया, पर साड़ी बढ़ती ही गई, भगवान ने असंभव को भी संभव कर दिखाया।


भक्त प्रहलाद के प्राण बचाने के लिए उसने नृसिंह रूप धराध्रुव भक्त, मीराबाई, संत तुलसीदास, धन्ना भक्त, सूरदास, सुदामा, नरसी, नामदेव, रविदास आदि कई ऐसे भक्त हुए हैं, जिन्होंने ईश्वर के साक्षात् दर्शन किए। जो भी सच्चे दिल से उसको याद करता है वही उसे पा जाता है। अहंकार और वासना इन दोनों को छोड़ दो, फिर भगवान के दर्शन हो जाएंगे। यह वेद-शास्त्र और संत महात्माओं का अनुभव है।


'ॐ शांतिः'


 


 


 


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