क्या वेदान्त की शिक्षा मनुष्य को आलसी बना देती है?
शंका समाधान
प्रश्न :- आजकल के अंग्रेजी पढ़े लिखे पश्चिमी विद्यार्थियों के लोगों का कहना हैकि वेदान्त की शिक्षा ने हमारे भारत वर्षा को आलसी, सुस्त बना दिया है। त्याग और बैराग की शिक्षा देकर देश की उन्नति को रोक दिया है। ऐसा कहने में वे कहां तक ठीक हैं?
( लाभचन्द कोहली, नई दिल्ली )
उत्तर :- यह सरासर भूल है कि वेदान्त की शिक्षा सुस्त बना देती है। वेदान्त तो बल्कि कहता है कि खुद करो! खूब करो! क) परन्तु यदि शान्ति और आनंद चाहते हो तो इनके साथ साथ ही कुछ वास्तविक ज्ञान अर्थात् आत्म ज्ञान भी प्राप्त करो। धन कमाओ और धनवान बन जाओ (परन्तु उसके साथ लगाव न रखो। इसके आने से तुम्हें हर्ष न हो और इसके जाने से तुम्हें दुख न हो। और इसे परमार्थ प्राप्त करने में लगाओदेश, धर्म की उन्नति के लिए खर्च करो। क्योंकि यदि तुमने इसे खर्च न किया तो यह स्वयं ही छोड़ जाएगी।
शासन, यौवन और माया के नशे में मनुष्य अंधा हो जाता है। ईश्वर को भूल जाता हैऔर समझने लगता है कि वर्तमान स्थिति सदा ऐसी ही बढ़ेगी परन्तु ऐसा होता नहीं। कुछ भी स्थायी नहीं। जब न स्वास्थ्य, न यौवन, न स्थान, न पैसा, न संबंधी, कुछ भी नहीं रहता तब होश आता है कि मैंने अपने जीवन का अमूल्य समय नष्ट कर दिया, फिर ईश्वर याद आता है और धर्म की ओर प्रवृत्ति भी होती है। पर तब बुढ़ापा, बीमारी इसे कुछ नहीं करने देते। इसलिये कहते हैं - जवानी में अदम के वास्ते सामान कर गाफिल। मुसाफिर शव से उठते हैं जो जाना दूर होता है। वास्तविक धन तो आत्म-ज्ञान ही है,
वेदांत कहता है कि धन, ऐश्वर्य कमाओ और इसके साथ आत्मिक ज्ञान रूपी धन भीकमाओ। इसी से वास्तविक प्रसन्नता और मन को शान्ति मिलेगी। स्थान, सांसारिक पदार्थ, विषय तुम्हें सदा दुखी करते रहेंगे। दरअसल 'वेदान्त कोई नया धर्म नहीं वरन् यह तो वेदों का वह प्राचीन दर्शन है, जिसके ज्ञान के बिना सच्ची सुख शान्ति नहीं मिल सकती।
वास्तविक धन तो आत्म-ज्ञान ही है, जिनका कभी नाश नहीं होता। और सदा बढ़ता ही रहता है इस वास्तविक ज्ञान और धन के बिना आप कितना भी प्रयत्न करो, वस्तुतः प्रयत्न नहीं रह सकते मात्र सांसारिक धन-ऐश्वर्य शान्ति नहीं दे सकते। यह तो साया है। साये को कभी कोई पकड़ सकता है? एक इच्छा करो, उसके पूरी होते ही दूसरी अनेक इच्छाएं पैदा हो जाती हैं। एक धन की इच्छा करो और फिर सम्मान, शासन, स्त्री, पुत्र आदि की कई इच्छाएं आ खड़ी होंगी। और फिर इन्हें पाने के लिये इनके पीछे-पीछे दौड़ो और अनेक मुसीबतें झेलो और हाथ में कुछ आता, जो आता है वो छिन जाता है। मन सदा अशान्त ही रहता है। इसलिए वेदांत कहता है कि धन, ऐश्वर्य कमाओ और इसके साथ आत्मिक ज्ञान धन भी कमाओ। इसी से वास्तविक प्रसन्नता और मन को शान्ति मिलेगी। स्थान सांसारिक पदार्थ विषय, तुम्हें सदा दुखी करते रहेंगेदरअसल 'वेदान्त कोई नया धर्म नहीं' यह तो वेदों का वह प्राचीन दर्शन है, जिसके ज्ञान के बिना सच्ची सुख शान्ति नहीं मिल सकती। जब तक हमारे देश में इस आत्म-विद्या का प्रयास रहा तब तक यह देश सारे संसार का गुरू कहलाया। हर प्रकार से सुखी रहा। न यहां धन की कमी थी न विद्या की। धर्म में आस्था होने से ही यहां झूठ, चोरी को घोर पाप समझा जाता था। पर जैसे जैसे आध्यात्मिकता कम और भौतिकता अधिक आती जाती है, सब ओर अशान्ति फैल रही है। इसलिए, वेदान्त आलसी बना देता है यह कहना सर्वथा व्यर्थ है। वेदान्त कर्म करने से नहीं रोकता, बल्कि ज्ञान-पूर्वक व्यवहार करने को कहता है।