प्रातः काल की महिमा

   


शंका समाधान


प्रश्न :- शास्त्रों में प्रात:काल तीन चार बजे उठकर जाप करने की आज्ञा दी गई है। यदि इसकी अपेक्षा सूर्योदय के बाद जाप किया जाए तो इसमें क्या हानि है? शास्त्रों की विधि और अपनी राय के अनुसार वर्णन करें। (कोड़ाराम ) उत्तर :- शास्त्रों में प्रातः काल की बहुत प्रशंसा की गई है। इसका कारण यह है कि इस समय परम सतोगुण होता है परन्तु यदि शारीरिक अवस्था अच्छी न हो तो बाद में भी ईश्वर भजन किया जा सकता है। इसमें कोई दोष नहीं है। परमात्मा का चिन्तन तो हर समय होना चाहिए। नास्तिकता के इस दौर से पहले हमारे पूर्वज सुबह तीन बजे से बारह बजे तक गायत्री मन्त्र का जाप किया करते थे जिसका परिणाम यह था कि उन्हें सुख और शान्ति प्राप्त थी। शारीरिक और मानसिक कष्ट बहुत कम थे। परन्तु अब लगभग पचास साल के इस समय में नई सभ्यता के दबाव में लोगों ने संध्या उपासना, गायत्री मंत्र का जाप, प्रात:काल उठना आदि सब शास्त्र विहित कर्मों को त्याग दिया है। जिसका फल दुख और अशान्ति है। शास्त्रों में लिखा है - ब्रह्म मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षः कारिणी अर्थात् ब्रह्म मुहूर्त की निद्रा पुण्यों का फल नष्ट कर देने वाली होती है। इसलिए अमृत वेला- तीन से पांच बजे तक उठकर ईश्वर धयान करने की आदत होनी चाहिएइससे नि:संदेह बहुत लाभ होता है


प्रश्न : रात के समय कुछ सितारे एक जगह से दूसरी जगह बड़ी तेजी से जाते हुए दिखाई देते हैं, लोग इन्हें अपशकुन मानते हैं और नेत्र मूंद लेते हैं, क्यों? उत्तर :- किसी ईसाई को पूछे कि आप गले में सूली का निशान क्यों पहनते हैं तो वे क्या कहेंगे कि हमारे धर्म में यह लिखा उत्तर दग कि ? है। किसी मुसलमान से पूछे कि आप माथे पर सजदे का काला निशान क्यों लगाते हैं, दिन में पांच बार नमाज क्यों पढ़ते हैं, दाढ़ी-मूंछ क्यों रखते हैं? तो वे भी यही उत्तर देंगे कि हमारे मजहब में यही कहा गया है? किसी सिख से पूछे कि आप पांच कके (कंघी, कड़ा, कच्छ, केश और कृपाण) क्यों रखते हैं तो उनका भी यही उत्तर होगा कि हम गुरू गोविंद सिंह जी की आज्ञा का पालन करते हैं।


परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि जब हिन्दू से कहा जाए कि चोटी, जनेऊ रखना चाहिए, तिलक लगाना चाहिए, दिन में दो-तीन बार संध्या उपासना करनी चाहिए, माता-पिता की सेवा और मृत्योपरान्त श्राद्ध आदि कर्म करने चाहिए, ये सब हमारे धर्म शास्त्रों में कहे गए हैं और भगवान राम, कृष्ण और महर्षि व्यास, स्वामी शंकराचार्य आदि हमारे सभी महात्मा पूर्वज इस धर्म मार्ग पर चलते रहे हैंइसलिए हमें भी उन महापुरुषों का अनुसरण करना चाहिए, तो आज की ये पीढ़ी इन पर विश्वास नहीं करती और इन्हें व्यर्थ मानकर इनकी निन्दा, आलोचना करती है।


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