प्रकृति की ओर लौटो
र्वप्रथम आप सभी को दीपावली एवं प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई। दीपावली प्रकृति का उत्सव है। प्रकृति का उत्सव इस अर्थ में कि इस अवसर पर हम सभी एक तो चारों ओर सफाई करते हैं और फिर उसके बाद चहुंओर दीपमाला का प्रकाश दिखाई पड़ता है। निश्चित ही हमें ऐसे अवसर पर प्रकृति के बारे में सोचना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में सोचा है और उन्होंने निर्णय दिया है कि दीपावली पर मात्र दो घंटे पटाखे छोड़ने हैं, ताकि प्रदूषण कम-से-कम फैले और प्रकृति का संतुलन कायम रहे। वो कहते हैं न कि यदि आप संवार नहीं सकते, तो बिगाड़िए भी मत। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इसी आलोक में है। दरअसल आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब चहुंओर प्रदूषण रूपी दानव हमें काल का ग्रास बनाने को तत्पर बैठा है। इस दानव को समाप्त करने का एक ही तरीका है- 'प्रकृति की ओर लौटो'। कभी स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था- 'वेदों की ओर लौटो', मगर आज समय है 'प्रकृति की ओर लौटने का। जब मैं कहती हूँ 'प्रकृति की ओर लौटो', तो इसका अर्थ जंगल में लौटने का नहीं है, बल्कि अनावश्यक प्रकृति को अंधाधुंध नुकसान नहीं पहुंचाने से हैइसे इस रूप में समझें कि दिल्लीवासी हर दीपावली दमघोंटू धुंध से परेशान रहते हैं, बच्चे-बूढ़े मास्क लगाकर घर से निकलते हैं। इसके कारण में बताया जाता है कि पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली पराली का धुआं चलकर दिल्ली के वातावरण को दमघोंटू बना देता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही पूछा है कि दिल्ली की रक्षा करनेवाली अरावली की पहाड़ी कहां गायब हो गई? जब आप दिल्ली के आयानगर से गुरुग्राम की ओर चलेंगे तो अरावली की पहाड़ी के अवशेष देखने को मिलेंगे। दरअसल हम मानवों ने निजी लोभ में इस पहाड़ी को काट-काट कर समतल मैदान बना दिया हैऐसे में हमारी रक्षा तो ईश्वर भी नहीं कर पाएंगे। क्योंकि जो पहाड़ी बाहर से आनेवाली प्रदूषित एवं भारी हवाओं को रोक देती थी, उसे तो हमने खत्म कर दिया। अब एक दिन में पहाड़ दोबारा से तो खड़े नहीं हो सकते न? लेकिन एक दिन में जो हो सकता है, वो ये कि हम कूड़े का निष्पादन ठीक से करें। दिल्ली सरकार ने भी इस दिशा में पहल की है। यदि हम सभी केवल यह प्रण लें कि हर सोसायटी का कूड़ा, सोसायटी में ही कंपोस्ट में बदल दिया जाएगा, तो तय मानिए दिल्ली में कूड़े का पहाड़ नहीं बनेगा और कंपोस्ट के रूप में हम प्रकृति को सुंदर उपहार दे सकेंगे। इसलिए मैं एक बार फिर से अपने सूत्र वाक्य 'प्रकृति की ओर लौटो' पर वापस आती हूं। इस सूत्र वाक्य को अमली जामा पहनाने का एक प्रयास यह भी हो सकता है कि हम स्वेच्छा से किसी भी किस्म के प्लास्टिक अथवा पॉलिथीन का प्रयोग अपने घर में नहीं करें। कपड़े अथवा जूट के थैले का प्रयोग करें। निश्चित रूप से इन दो कार्य से हम प्रकृति को सुंदर उपहार दे सकेंगे, जो कि अंत में हमारी ही रक्षा करेगा।
ॐपूर्णमिद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमदुवते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति
जय श्री कृष्ण! रश्मि मल्होत्रा मुख्य संपादक ओम्