स्त्री शक्ति को कमतर आंकने की भूल
आप सभी सुधी पाठकों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई। यह अजब संयोग है कि सितम्बर के महीने में ही हम शिक्षक दिवस एवं हिन्दी दिवस मनाते हैं। यह संकेत है कि हम अपने शिक्षकों से अपनी मातृभाषा का महत्व समझे और जीवन में अपने सभी कार्य-व्यापार अपनी मातृभाषा में करें। इससे बड़ी देश-सेवा कुछ नहीं हो सकतीयदि देश के सभी युवा एवं बच्चे हिंदी को कार्य-व्यापार की शैली बना लें, तो हमें विश्व-शक्ति बनने और चिर काल तक विश्व-शक्ति बने रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी। दूसरी जो अहम बात है, वह यह कि इसी महीने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी है और राधाष्टमी भी है। यानी देखें तो श्रीकृष्ण और माता राधा का अवतरण मात्र कुछ दिनों के अंतराल पर होने के कुछ निहितार्थ हैं। निहितार्थ यह कि यदि श्रीकृष्ण समाज के खेवनहार हैं, तो उसमें माता राधा की भूमिका को आप नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। स्त्री शक्ति के बिना पुरुष शक्ति की सार्थक कल्पना संभव नहीं। श्रीकृष्ण यही बात उद्धव को माता राधा के पास भेजकर दुनिया को ता राधा के सामने ज्ञान परंपरा के वाहक बनकर जाते हैं और अपने ज्ञान से माता राधा के मन का ताप हरना चाहते हैं, तो जवाब में माता राधा कहती हैं- 'उधो मन नाहिं दस बीस, एक हुतो सो गयो श्याम संग। और तब उद्धव की आंखें खुलती हैं। क्षमा मांगते हुए वह वापस श्रीकृष्ण के पास आते हैं। वह समझ जाते हैं कि राधा के बिना श्रीकृष्ण की कल्पना अधूरी है। इसलिए आज हम देखें कि श्रीकृष्ण का नाम राधा के साथ ही लिया जाता है। और हम मानव दोनों की पूजा एक साथ करते हैं। इसी तरह जब हम तुलसी की पूजा करते हैं तो वहां भी तुलसी के चरणों में भगवान शालिग्राम मिलते हैं। अभी-अभी सावन बीता है, और यह तो सपने में भी नहीं सोचा जा सकता कि हम शिव की पूजा करें और माता पार्वती को भूल जाएं। आदिशक्ति के रूप में हमें उनकी पूजा करनी ही होगी।
अब इसका उलटा करते हैं। श्रीकृष्ण की पूजा स्त्री-पुरुष समान भाव से करते हैं, भगवान राम-सीता की पूजा स्त्री-पुरुष समान भाव से करते हैं, आदि शक्ति शिव-पार्वती के मल स्वरूप अर्द्धनारीश्वर की पजा भी स्त्री-परुष समान भाव से करते हैं। अमरनाथ के दर्शन हो अथवा महाकाल के दर्शन, स्त्री-पुरुष दोनों समान भाव से करते हैंयज्ञ-हवन भी स्त्री-पुरुष समान भाव से करते हैं। वेदों में केवल स्त्री के होता एवं आचार्य दोनों रूप में वर्णन मिलते हैं। ऐसे में कोई तथाकथित धर्म का ठेकेदार कहे कि मंदिर में स्त्री के प्रवेश मात्र से समाज संकट में आ जाता है। तो इसे क्या कहा जाए? जी हां, मैं बात कर रही हूं केरल में आए मानवजनित महाप्रलय की। हिंदू अस्मिता एवं स्वदेशी का राग अलापने वाले एक सज्जन ने ट्विटर पर बहस छेड़ी कि सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पन की पूजा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्त्री के प्रवेश को अनुमति दी, इसी कारण भगवान अयप्पन गुस्सा हो गए और उन्होंने प्रलय ला दिया। यह सभी जानते हैं कि यदि केरल सरकार एवं केंद्र सरकार ने बांध के जलाशयों में जमा हुए पानी का उचित समय पर सही प्रबंधन किया होता, तो इस बाढ़ की विभीषिका को रोका जा सकता था। जो भगवान स्वयं स्त्री के बिना स्वयं को अधूरा महसूस करते हों, उनकी पूजा के लिए स्त्री का निषेध भला क्यों? मूल बात यह है कि आज भी की संरचना पर पुरुष सोच हावी है और वही सोच गाहे-बगाहे स्त्री मन को लहूलुहान करती है। हमें इसके प्रति सचेत रहने की जरूरत है।
जय श्री कृष्ण! ॐ पूर्णमिद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमदुच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते रश्मि मल्होत्रा ॐ शान्ति शान्ति शान्ति
रश्मि मल्होत्रा मुख्य संपादक ओम्