कर्म
नीति कथाएँ
नरक का स्वर्ग में परिवर्तन
इंग्लैण्ड में एक इसाई पादरी था। उसने प्रसिद्ध तथा महान वैज्ञानिकों डारविन और हक्सले की मृत्यु का समाचार पढ़ा। वह अपने मन में सोचने लगा कि ये वैज्ञानिक स्वर्ग गये होंगे या नर्क। वह बहुत देर तक विचार करता रहा। उसने अपने में सोचा कि ये वैज्ञानिक न तो बाइबल में विश्वास करते थे न ईसा में और न सच्चे रूप में इसाई ही थे यद्यपि उन्होंने कोई पाप नहीं किये थे। इसलिए वे नर्क ही में भेजे गए होंगे। परन्त उसको इसके बारे मेंपूरी तरह से निश्चय नहीं हो सका। उसने फिर सोचा कि वे भले आदमी थे। उन्होंने दुनिया में कुछ भलाई के काम भी किये थे। इसलिए उनका नर्क में जाना उचित नहीं प्रतीत होता। फिर वे कहां गए? सोचते-सोचते वह सो गया। निद्रावस्था में उसने एक विचित्र स्वप्न देखा। उसने देखा कि वह स्वयं मर गया है और सबसे उच्च स्वर्ग में पहुंच गया है। वहाँ उसने उन सभी लोगों को पाया जिनकी उसको वहाँ होने की आशा थी। वहाँ वे सभी इसाई भाई थे जो उसके गिरजाघर में आया करते थे। तब उसने पूछा कि हक्सले और डारविन नामक वैज्ञानिक कहाँ हैं? तो उत्तर में स्वर्ग के द्वारपाल ने उसे बताया कि वे लोग निम्नतम नर्क में भेजे गए।
पादरी ने पूछा कि वह कुछ समय के लिएनिम्नतम नर्क में जाकर क्या उन लोगों से भेंट कर सकता है? उसने यह भी कहा कि मैं उनको पवित्र इन्जील का उपदेश दूंगा और उनको समझाऊँगा कि इन्जील और ईसा पर विश्वास न करके उन्होंने बड़ा पाप किया है। कुछ विवाद के बाद स्वर्ग का द्वारपाल उसकी बात मान गया और निम्नतम नर्क का टिकट ले आने का वचन दिया। यह विचित्र बात हैकि नर्क और स्वर्ग में भी रेल के डिब्बों में बैठकर यात्रा की जाती है। परन्तु बात यही थी। पादरी के जीवन के वातावरण में रेले और तार प्रचुर परिमाण में थे। इसलिए अपने विचारों में और स्वप्न में भी उसको स्वर्ग और नरक में रेलें दिखाई पड़ीं। इस प्रकार पादरी के प्रथम श्रेणी का टिकट मिल गया। रेलगाड़ी चलती रही। उच्चतम स्वर्ग से निम्नतम नर्क तक अनेक स्टेशन बीच में पड़े।
हमारी महत्वाकांक्षा का भाव, हमारा स्वार्थ, हमारा क्रोधी स्वभाव अथवा हमारा अन्य कोई पाप जो नर्क या स्वर्ग के समान हैनष्ट नहीं किये जा सकते। परन्तु इनको पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है। किसी भी शक्ति का ह्रास नहीं हो सकता। हम इस नर्क को पुनर्व्यवस्थित कर सकते हैं और इस प्रकार ही हम लोगों ने इसको स्वर्ग बनाया।
वह बीच के स्टेशनों पर रुक-रुक कर देखने लगा कि वहाँ क्या दशा है। उसने देखा कि जैसे-जैसे वह नीचे की तरफ बढ़ता गया वैसे-वैसे दशा खराब होती गई। जब वह सबसे नीचे वाले नर्क से एक नर्क ऊपर रह गया तो वह चेतनाहीन हो गया। वहाँ इतनी दुर्गन्ध निकल रही थी कि उसको अपने सब रूमाल अपनी नाक में लगाने पड़े, फिर भी उसकी चेतना लुप्त हो गई और वह अचेत हो गया। वहाँ पर रोने चिल्लाने और दांत कट-कटाने की अनेक आवाजें सुनाई पड़ रही थीं। पादरी उनको सहन नहीं कर सका। वहाँ के भयानक दृश्य देखकर उसकी आँखें खुली न रह सकीं। वहाँ आकर वह बहुत पछताया। थोड़ी देर में रेल के प्लेटफार्म पर खड़े सब लोग पकारने लगे. निम्नतम नर्क, निम्नतम नर्क।" ये लोग यात्रियों की सुविधा और स्वागत की व्यवस्था कर रहे थे। स्टेशन की दीवारों पर भी जगह-जगह पर निम्नतम नर्क" शब्द खुदे हुए थे। यह देखकर पादरी को आश्चर्य हुआ। वह बोला, यह निम्नतम नर्क नहीं हो सकता। यह तो उच्चतम स्वर्ग मालूम पड़ता है।"
रेल के गार्ड या कंडक्टर ने बताया कि निम्नतम नर्क वही है। एक दूसरा आदमी आया। उसने कहा, श्रीमान जी आप यहीं उतरिये। आपका गन्तव्य स्टेशन यही है।" पादरी उस स्टेशन पर उतरा। लेकिन उसको वहाँ की दशा देखकर बहुत अचम्भा हुआ। उसको आशा थी कि निम्नतम नर्क उसके पहले वाले नर्क से बुरा होगा। परन्तु यह नर्क तो उसके उच्चतम स्वर्ग के लगभग समान प्रतीत होता था। वह रेलवे स्टेशन के बाहर निकला। वहाँ पर उसने शानदार उद्यान देखे। उनमें भीनी सुगन्ध वाले फूल लगे हुए थे। चारों तरफ शीतल और सुगन्धित वायु चल रही थी जो उसके चेहरे पर लग रही थी। उसको एक लम्बे सज्जन मिले। पादरी ने उनका नाम पूछा? वह पादरी को पूर्व परिचित से लगे। वह सज्जन उसके आगे-आगे जा रहे थे। पादरी उनके पीछे-पीछे चलने लगा। जब वह सज्जन बोले तो पादरी बहुत प्रसन्न हुआ। उन्होंने एक-दूसरे से हाथ मिलाए। पादरी ने उनको पहचान लिया। वह हक्सले थे।
पादरी- ये कौन सा स्थान है? क्या यह निम्नतम नर्क है?"
हक्सले- जी हाँ, यह निस्संदेह निम्नतम नर्क ही है।"
पादरी- मैं आपको इन्जील का उपदेश देने के लिए आया था। लेकिन पहले मुझे यह बताइए कि मैं यह विचित्र दृश्य कैसे देख रहा हूँ। इस नर्क में इतनी भिन्नता क्यों है?" हक्सले- आपकी आशा निर्मूल नहीं हैवास्तव में जब मैं यहाँ आया था तो यह स्थान सारे विश्व का सबसे खराब नर्क था। यह इतना खराब था कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कुछ स्थानों की ओर संकेत करके बताया कि यहाँ पर गन्दे नाले बहते थे, यहाँ पर जलता हुआ लोहा था, उधर गर्म बालू थी और इस तरफ उबलता हुआ गोबर था। सबसे पहले हम लोगों को गन्दे नाले में रखा गया। परन्तु तब हम वहाँ थे तो अपने हाथों से पानी उलीचकर के समीपवर्ती जलते हुए लोहे पर डालते रहे। यह काम हम निरन्तर करते रहे। तब यहाँ के रक्षकों ने हमको ले जाकर जलते हुए लोहे वाले स्थान में रखा। परन्तु जब तक अधिकांश लोहा पूर्णतया ठंडा हो चुका था और उसको हाथ से पकड़ा जा सकता था। परन्तु अब भी बहुत सा लोहा पिघली हुई दशा में था। तब ठंडे लोहे की सहायता से हमने पिघले हुए लोहे की कुछ मशीनें और यंत्र बना लिए। इसके बाद हमको तीसरे स्थान में जाना थाजहाँ उबलता हुआ गोबर था। हमको वहाँ ले जाया गया। वहाँ पर हमने अपने यंत्रों से जमीन खोदीफिर हमको एक अन्य जगह ले जाया गया। वहाँ पर हमने खोदे हुए गोबर को डाल दिया जो खाद बन गया। इस प्रकार कुछ समय बाद वह नर्क सचमुच स्वर्ग बन गया।"
बात यह है कि उस नर्क में वे सभी वस्तुएं मौजूद थीं, जिनको ठीक स्थान पर रखने से उच्चतम स्वर्ग बन जाता है। इसी प्रकार वेदान्त कहता है, कि हमारे अन्दर ईश्वर मौजूद हैऔर बाहर यह बेकार का शरीर है। किन्तु हमने इनको ठीक स्थान पर नहीं रखा है। इसी कारण यह दुनिया नर्क बन गई है। इनको ठीक स्थान पर रखने से यह नर्क स्वर्ग में बदल सकता है। हमने वस्तुओं को उलट-पलट डाला है। गाड़ी को घोड़े के आगे लगा दिया है। यही नर्क का कारण है। हमको किसी वस्तु को बर्बाद नहीं करना है, न खोदकर निकालना हैहमारी महत्वाकांक्षा का भाव, हमारा स्वार्थ, हमारा क्रोधी स्वभाव अथवा हमारा अन्य कोई पाप जो नर्क या स्वर्ग के समान है नष्ट नहीं किये जा सकतेपरन्तु इनको पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है। किसी भी शक्ति का ह्रास नहीं हो सकता। हम इस नर्क को पुनर्व्यवस्थित कर सकते हैं। और इस प्रकार ही हम लोगों ने इसको स्वर्ग बनाया।
निष्कर्षः शक्ति या ऊर्जा के सदुपयोग द्वारा और वस्तुओं को ठीक-ठीक व्यवस्था करके नर्क को भी स्वर्ग में परिवर्तित किया जा सकता है।
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