किसका आश्रय है
स्व-चिन्तन
आजकल मनुष्य संसार के कार्यों में इतना फंसा हुआ है कि उसे नित्यकर्म के लिए भी समय नहीं मिलता और स्वाध्याय-सत्संग के लिए भी उसके पास समय नहीं है। किंतु यह विचार नहीं करता कि वह जो कुछ कर रहा है, वह सब छूट जाएगा, सब कुछ किया काम नहीं किया' में भर्ती हो जाएगा। बड़े-बड़े राजाओं के राज्य नष्ट हो गएरावण, दर्योधन जैसे महारथी मिट्टी में मिल गए, फिर मनुष्य किसके बल पर निर्भय, निश्चंत बैठा है? किस का आश्रय लिया है? कौन वह आधार है, जो रक्षा करेगा? चेत करें, होश में आएं कि वह क्या कार्य कर रहा है? क्या करना चाहिए? साथ में क्या जाएगा? उस वस्तु का संग्रह करें जो सदा रहने वाली हो। न रहने वाली वस्तु के पीछे क्यों पड़ा है?
यह मृत्युलोक है। सभी मरने वाले यहां बैठे हैं। पर संत लोग मर कर भी अमर होते हैं। और कुकर्मी जीते हुए भी मरे हैं। मानव जीवन अमूल्य है, बहुमूल्य है, पर है क्षयिष्णु। अधिक देर टिकने वाला नहीं है।
गौर करो कि तम्हारे देखते-देखते कितनी वस्तुओं का परिवर्तन हो गया, कितने व्यक्ति चले गए, परिचित चले गए, मानो वे थे ही नहीं। यदि आज हमारी मृत्यु हो जाए तो साथ क्या रहेगा? ये धन, संपत्ति, बेटा-बेटी, पत्नी, घर-परिवार सभी छूट जाएंगे। इसलिए अब जगना चाहिए, कमर कस कर भगवान के अनन्य भजन, भक्ति में लगना चाहिए। वे सब के स्वामी हैं। उनकी प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए
यदि वे मिल जाएं तो फिर कुछ करना या पाना या जानना शेष नहीं रह जाता। इस तत्व को जानने वाले बुद्धिमान भक्तजन निरंतर भजन करते हैं, सिमरन करते हैं, उन्हीं में रमन करते हैं। भगवान के अतिरिक्त अन्य कछ भी वांछनीय एवं प्रापणीय नहीं है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्वेत्॥ ओम् शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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