क्रोध शक्ति की पहचान

मुमुक्षु जिज्ञासा


प्रश्न- यह क्रोध क्या है? यह उठता ही क्यों है?


आनन्दमूर्ति गुरू माँ- मनुष्य अगर अपने मन का गठबंधन उस अविनाशी के, उस स्थिर के साथ कर ले, तो उसके मन की प्रसन्नता शोक में कभी नहीं बदलेगी लेकिन अगर हम अस्थिर के साथ, विनाशी के साथ, बदल जाने वाले के साथ दोस्ती रखेंगे, तो उसने तो बदल ही जाना है। उसके इसी स्वभाव के कारण हम बार-बार दुखी, परेशान होते रहेंगे। इसलिए बहुत संभल कर अपने मन को किसी के साथ दोस्ती के बंधन में बांधना क्योंकि अगर गलत के साथ तुमने अपने मन को बांध लिया, तो सिवाय शोक,दुख और परेशानी के कुछ और तुम्हारे हाथ नहीं बचेगा।



आदमी के चित्त में क्रोध उठता ही क्यों है? क्रोध है क्या? क्रोध जगने के कारण _ क्या हैं? क्रोध का मूल 16 स्वभाव क्या है? क्रोध की स्थिति क्या है? और क्रोध से मुक्त होने का तरीका, मार्ग, साधन क्या है? इस विषय को ठीक से समझियेगा। जब भी कोई चर्चा मैं आपके सम्मुख रखें, तो उस चर्चा को यह जानते हुए समझना जैसे कि यह बात मेरे लिए ही कही जा रही है। यह मत सोचना कि हम तो खुद दनिया के सताये हुए लोगों में से हैं। हम क्या क्रोध करेंगे। हमको तो दूसरों का क्रोध सहना पड़ रहा है। हम तो किसी को दुख नहीं देते हैं। हमको ही दूसरों के दिए हुए दुखों को बर्दाश्त करना पड़ता है। हम में तो अहंकार है ही नहीं, दूसरे ही आकर हमें अपना अहं दिखाते हैं।


तो मतलब आप अपने आपको हमेशा दुनिया के सताया हुआ मानते हैं और दूसरों को सताने वाले मानते हैं। आप तो कभी यह मानते ही नहीं कि आप दूसरों को सताते हैं, दूसरों को पीड़ित करते हैं। दूसरों ने मुझे दुख दिया, दूसरों ने मुझे परेशान किया, दूसरों ने मुझे तंग किया।' ऐसा ही सभी कहते हैं। अभी तक मुझे ऐसा एक भी व्यक्ति मिलने नहीं आया, जिसने यह कहा हो कि 'मैंने दूसरों को सताया है, मैंने दूसरों को दुखी किया हैं। हैं। जब भी कोई मेरे पास आकर मेरे से बात करता है, तब वह दूसरों को ही इलजाम देता रहता है। दूसरों के सिर पर दोष डालता है कि हमारे घर का यह व्यक्ति बुरा है, हमारे दोस्त बुरे हैं, हमारे रिश्तेदार बुरे हैं, हमारा बॉस बुरा है, हमारे नौकर अच्छे नहीं हैं'


आणविक शक्ति से आप चाहें तो बम बना लीजिए या बिजली पैदा कर लीजिये। आणविक शक्ति के विस्फोट से लाखों लोग मरेंगे या फिर पूरे शहर को महीने भर के लिए बिजली मिलेगी। इसी तरह क्रोध भी एक शक्ति है। उसका हम विधायक उपयोग भी कर सकते हैं और निषेधात्मक उपयोग भी कर सकते हैं। सवाल यह उठता है कि हम उसका किस तरह से इस्तेमाल करते हैं। क्रोध की शक्ति इस्तेमाल करने के लिए होश में होना चाहिए। अगर होश में रहते हुए क्रोध नहीं करोगे, तो गलती हो ही जायेगी। डॉक्टर ऑपरेशन करते समय होश में न हो तो, डॉक्टर से भी गलती हो ही जायेगी। इसी तरह क्रोध भी एक औजार है, क्रोध भी एक शक्ति है। उसका उपयोग करने वाला अगर होश में न हो, तो उस बेहोशी में फिर वह अपना ही नुकसान कर लेता है। आमतौर पर यही होता है कि नासमझी की वजह से इस क्रोध रूपी शक्ति से न केवल इंसान अपना नुकसान कर लेता है, बल्कि दूसरों के नुकसान के लिए भी हम कारण बन जाते हैं।


कारण बन जाते हैं। अगर हम होश में नहीं हैं, तो फिर सत्य तो यह है कि हम अपना सारा जीवन ही गलत तरीके से जीते रहते हैं। अब होश में रहने का अर्थ सिर्फ आंख और बाकी इन्द्रियां खुली रखते हुए संसार का सारा व्यापार-व्यवहार करना, इतना भर नहीं है। होश में होने से मेरा मतलब है कि अपनी 'शुद्ध मैं' में, अपने आत्मस्वरूप में सुस्थित होना, चेतना में पूर्ण जागृत होना। होशपूर्ण, जागृत व्यक्ति क्रोध की शक्ति का भी सदुपयोग कर लेता है। लेकिन अज्ञानी आदमी शान्ति का उपयोग भी विनाशकारी ढंग से करता है।


अगर मेरे से प्रेम हो जाये और मुझे सुनने लग जाये, साधना करने लग जाये, तो फिर साधना करते-करते, सुनते-सुनते समर्पण भाव हृदय में जन्म लेता है। फिर समर्पण कैसे पायेंगे? मैं उदाहरण देती हूं। मान लीजिये कि आपकी चमड़ी में कोई रोग हो जाये, तो क्या आप अपने उस रोग वाले हिस्से को ढंकने की कोशिश करते हो, ताकि उसे कोई देखे नहीं? किसी को बताओगे नहीं? डॉक्टर के पास भी नहीं जाओगे? इस तरह छिपा लेने से तो वह रोग बढ़ता जायेगा कि ठीक हो जायेगा। शरीर की तकलीफ को छिपा लेने से, रोग को छिपा लेने से रोग और बढ़ता है। इसी तरह क्रोध भी एक रोग ही है। सब से पहले तो यह बात समझने की है कि क्या आपको लगता हैकि आपमें क्रोध उठता है? दूसरों पर क्रोधी होने का लेबल तो हम बड़ी जल्दी लगा देते हैं कि दूसरे ही गुस्सा खाते हैं, दूसरे ही मुझे तंग करते हैं, दूसरे ही मुझे परेशान करते हैं।'


परेशान करते हैं।' मैं आपसे पूछती हूं, क्या आप गुस्सा खाते हो? क्या आप दूसरों पर नाराज हो जाते हो? क्या आप दूसरों का दिल तोड़ते हो? क्या आप अपनी मर्जी दूसरों पर थोपते हो? अगर तुम कहते हो कि 'हम तो ऐसा नहीं करते। दूसरे ही हमारे संग ऐसा व्यवहार करते हैं, तो फिर आप उन दूसरों को मेरे पास भेज दो। फिर उन्हीं को मैं समझा दूंगी! फिर मैं तुम्हें क्यों समझाऊँ? तुम डॉक्टर को जाकर कहो कि मेरी पत्नी के पेट में दर्द हो रहा है तो डॉक्टर क्या करेगा? डॉक्टर तुम्हारा पेट तो चैक नहीं करेगा। वह तुम्हें यह तो नहीं कहेगा कि लेट जाओ टेबल पर, मैं तुम्हारा पेट चैक करता हूं ताकि तुम्हारी बीवी के लिए दवा दे सकें। रोगी को ही डॉक्टर के सम्मुख होना होगा। तभी वह उसका इलाज कर सकेगाकिसी के मन में क्रोध रूपी रोग हो, तो इस क्रोध रूपी रोग से मुक्त होने के लिए दवा-दारू का इंतजाम मैं अवश्य कर सकती हैं। अगर तुम्हें लगता है कि मैं बिलकुल ठंडे स्वभाव का हूं, लेकिन घर में पत्नी, पति, बाप, ससुर या कोई और क्रोधी है, तो फिर क्रोध के बारे में तुम्हें समझाते रहने का क्या लाभ? मैं उन संबंधित व्यक्तियों को ही समझाऊ फिर! तकलीफ छोटी हो या बड़ी, तकलीफ जब शुरू हो, उसको तभी के तभी ठीक कर दें तो बेहतर है।


क्रोध एक शक्ति है और हर शक्ति की तरह आप इस शक्ति का भी सदुपयोग या दुरूपयोग दोनों कर सकते हो। आज तक आपको यही सुनाया गया है कि क्रोध से बचो. क्रोध न करो, क्रोध से दूर रहोक्रोधी आदमी संसारी है। जो भक्त है, सत्वगुणी है, वह क्रोध नहीं करताअगर तुममें क्रोध उठ रहा हो तो क्रोध को दबाओ। क्रोध बुरी चीज है। क्रोध विकार है और विकार से निकलना है। लेकिन आज मैं आपसे दूसरी बात कह रही हूं। कि जैसे आणविक शक्ति ! है, ऐसे ही क्रोध शक्ति है। 


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