मरने के बाद जीवों की तीन गतियां
जन्म और मृत्यु के पार
मरने के उपरान्त जीव की तीन गतियां होती हैं
1. देवयान मार्ग- वे मनुष्य जो अग्नितत्व की इस प्रकार उपासना करते हैं तथा जो अपने मन में श्रद्धा रखते हैं, एवं जो तप करते हैं, वे सब प्राणों के निकलने के उपरान्त अर्चि अभिमानी देवताओं के पास जाते हैं। अर्चि अभिमानी देवताओं से दिन के अभिमानी देवताओं को प्राप्त होते हैं। दिन के अभिमानी देवताओं से शुक्ल पक्ष के अभिमानी देवताओं को, शुक्ल पक्षाभिमान देवताओं से, जिन छः महीनों में सूर्य उत्तर की ओर जाता है, उन छः महीनों को, उन महीनों से संवत्सर को प्राप्त होते हैं। संवत्सर से आदित्य को, आदित्य से चन्द्रमा को, चन्द्रमा से विद्युत को प्राप्त होते हैं। वहां एक मानव पुरूष है, वह उन्हें ब्रह्म को प्राप्त करा देता है, यह देवयान मार्ग है।
2. -तथा जो गृहस्थ जीवन बिताने वाले लोग हैं, अपने ग्राम में इष्ट, पूर्त और दत्त- ऐसी उपासना करते हैं, यानी कुआं, तालाब आदि खुदवाते हैं, वे धूम मार्ग से ऊपर की ओर जाते हैं। धूम से रात्रि को प्राप्त होते हैं। रात्रि से कृष्ण पक्ष को, कृष्ण पक्ष से जिन छ: महीनों में सूर्य दक्षिण मार्ग से जाता है, उनको प्राप्त होते हैं। वे लोग संवत्सर को प्राप्त नहीं होते, दक्षिणायन के महीनों से पितृलोक को प्राप्त होते हैं। पितृलोक से आकाश को और आकाश से चन्द्रमा को प्राप्त होते हैं। यह चन्द्रमा औषधियों का राजा सोम है।
वह देवताओं का अन्न है। देवता लोग इसी का भोजन करते हैं। वहां जीव तब तक रहता है जब तक कि उसके कर्म पूर्ण रूप से क्षीण नहीं हो जाते। कर्मों के क्षीण होने पर वे फिर उसी मार्ग से लौटते हैं, जिससे जिस प्रकार से गए थे।
अर्थात ये पहले आकाश को प्राप्त होते हैं और आकाश से वायु को। वायु के रूप से वे धुएं का रूप लेते हैं और धूएं से अभ्र बन जाते हैं। अभ्र से मेघ बनते हैं। मेघ होकर पानी की वर्षा करते हैं। तब वे जीव पृथ्वी पर उतरते हैं। पृथ्वी लोक में आकर वे धान, जौ, उड़द, गेहूं, चना, तिल, औषधि और वनस्पति आदि के रूप में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार जब वे प्राणी तत् तत् वस्तुओं से होकर निष्क्रमण करते हैं, तो निश्चय ही उन्हें बहुत कष्ट होता है। उस अन्न को जो-जो प्राणी खाते हैं, तो उससे वैसा मन बनता है। और मन के अनुसार वीर्य बनता है।
उस वीर्य को जब स्त्री के उदर में सेचन करता है, तो तद्रुप ही आगे प्राणी उत्पन्न होते हैं। ऐसे सृष्टि का पहिया चलता रहता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर अनुशयन करने वाले जीवों में जो पवित्र आचरण वाले प्राणी होते हैं, वे शीघ्र ही उत्तम योनियों को प्राप्त होते हैं। इनमें से कोई ब्राह्मण योनि को प्राप्त होते हैं। जो ब्राह्मण को जानने का प्रयत्न करता है, वही ब्राह्मण है। कुछ क्षत्रिय योनि को प्राप्त होते हैं, जो दुखित प्राणियों की दुख से रक्षा करे, वही क्षत्रिय है। कुछ वैश्य योनि को प्राप्त होते हैं, वे व्यापार-बिजनेस करते हैं, इससे इनकी जीविका चलती है। तथा जो धर्म के विपरीत आचरण करते हैं, वे तत्काल अशुभ योनियों में प्रवेश करते हैं, जो अधिक भोगों की वासना रखते हैं, वे कुत्ता-कुत्तिया, सूअर-शूकरी आदि योनियों में जन्म लेते हैं। अथवाचांडाल अत्त्यज आदि योनियों में उत्पन्न होते हैं।
3. -इस प्रकार का निंदित जीवन बिताने वाले प्राणी किसी भी मार्ग से ऊपर के लोकों को नहीं जाते। उनका जीवन अत्यन्त क्षुद्र होता है। वे बार-बार जन्मते और मरते हैं। बहुत से प्राणी तो एक दिन में पैदा होते हैं और मरते हैं। बस उत्पन्न होओ और मरो। यही उनका तृतीय स्थान व तीसरी गति है। यही कारण है कि यह लोक प्राणियों से भर नहीं जाता। यदि प्राणी मरे नहीं तो इतनी भीड़ हो जाएगी, कि वहां रहना कठिन हो जाएगा। परलोक में भी स्थान नहीं मिलेगा। इसलिये यदि मानव शरीर मिला तो विपरीत कर्मों से घृणा करनी चाहिए। कभी भी बुरे कर्मों की ओर प्रवृत्त नहीं होना चाहिए। पांच बड़े पाप भयानक कर्म होते हैं
ब्रह्मघन्श्च गोघन्श्च स्वर्णस्तेयी च मद्यपः।
तत्संसर्गी पंचमश्चोग्रपापाः प्रकीर्तिताः॥
ब्राह्मण को मारने वाला, गौ को मारने वाला, सोने को चुराने वाला और शराब पीने वाला तथा इन चारों का संग करने वाला- ये पांचों महापातकी हैं। इन पापों के प्रायश्चित भी बड़े कठोर हैं।
शराब पीने के पाप का प्रायश्चित है- मदिरा को इतना गर्म करें, कि शराबी के मुख में डाले, उसकी मृत्यु हो जाए, बस यही उसका प्रायश्चित है। ब्राह्मण को मारने का और गौ को मारने का यह प्रायश्चित है कि धान के छिलकों का ढेर लगा ले, उसमें आग लगा दें, स्वयं उसमें प्रवेश करें और तिल-तिल जल कर मर जाएं। गुरू पत्नी गामी के लिए भी यही नियम है। इसलिए कभी भी उन कर्मों को नहीं करना चाहिए, वेद भगवान ने जिन कर्मों को करने के लिए मना किया है। ऐसे जीव धर्म के मार्ग से पतित माने जाते हैं, उनकी कोई गति नहीं होती।
किन्तु जो व्यक्ति इन पांचों अग्नियों को जान लेता है, इन पापों के साथ संबंध होने पर भी, पापों से संलिप्त नहीं होता है। वह उन लोकों में प्रवेश करता है, जहां पुण्यवान लोग जाया करते हैं।
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