पापमुक्त करता है गायत्री कवच

स्व-चिन्तन



गायत्री कवच एक परम गोपनीय उपाय है, जिसके पाठ करने एवं धारण करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं तथा वह स्वयं देवीरूप को प्राप्त होता है। इस गायत्री कवच के ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ऋषि हैं। ऋक्, यजुः, साम तथा अथर्व इसके छंद हैं। परम कलाओं से संपन्न ब्रह्मस्वरूपिणी गायत्री इसकी देवता कही गई हैं। भर्ग इसका बीज है, विद्वानों ने स्वयं इसी को शक्ति कहा है, बुद्धि को इसका कीलक कहा गया है तथा मोक्ष के लिए इसके विनियोग का भी विधान है। चार वर्षों से इसका हृदय, तीन वर्षों से शिर, चार वर्षों से शिखा, तीन वर्षों से कवच, चार वर्णो से नेत्र तथा चार वर्षों से अस्त्र कहा गया है।



भगवती गायत्री का ध्यान इस रूप में करने की विधान है- मोती, मूंगा, स्वर्ण, नील तथा धवल आभा वाले पांच मुखों, तीन नेत्रों तथा चंद्रकलायुक्त रत्नमुकुट को धारण करनेवाली चौबीस अक्षरों से विभूषित और हाथों में वरद-अभय मुद्रा, अंकुश, चाबुक, शुभ्र कपाल, रज्जु, शंख, चक तथा दो कमल पुष्प धारण करनेवाली भगवती गायत्री का मैं ध्यान करता हूं। कवच का पाठ करने का तरीका- पूर्व दिशा में गायत्री मेरी रक्षा करें, दक्षिण दिशा में सावित्री मेरी रक्षा करें, पश्चिम में ब्रह्मसंध्या तथा उत्तर में सरस्वती मेरी रक्षा करें। जल में व्याप्त रहनेवाली भगवती पार्वती अग्निकोण में मेरी रक्षा करें। राक्षसों में भय उत्पन्न करनेवाली भगवती यातुधानी नैर्ऋत्यकोण में मेरी रक्षा करें। वायु में विलासलीला करनेवाली भगवती पावमानी वायव्यकोण में मेरी रक्षा करें। रूद्र रूप धारण करनेवाली भगवती रूद्राणी ईशानकोण में मेरी रक्षा करेंब्रह्माणी ऊपर की ओर तथा वैष्णवी नीचे की ओर मेरी रक्षा करें। इस प्रकार भगवती भुवनेश्वरी दसों दिशाओं में मेरे संपूर्ण अंगों की रक्षा करें। तत् पद मेरे दोनों पैरों की, सवितुः पद मेरी दोनों जंघाओं की, वरेण्यं पद कटिप्रदेश की, भर्गः पद नाभि की, देवस्य पद हृदय की, धीमहि पद दोनों कपोलों की, धियः पद दोनों नेत्रों की, यः पद ललाट की, न: पद मस्तक की तथा प्रचोदयात् पद मेरी शिखाओं की रक्षा करे।


तत् पद मेरे दोनों पैरों की, सवितुः पद मेरी दोनों जंघाओं की, वरेण्यं पद कटिप्रदेश की, भर्गः पद नाभि की, देवस्य पद हृदय की, धीमहि पद दोनों कपोलों की, धियः पद दोनों नेत्रों की, यः पद ललाट की, न: पद मस्तक की तथा प्रचोदयात् पद मेरी शिखाओं की रक्षा करे। भगवती गायत्री का यह दिव्य कवच सैकड़ों विघ्नों का विनाश करनेवाला, चौंसठ कलाओं तथा करनेवाला, चौंसठ कलाओं तथा समस्त विद्याओं को देनेवाला तथा मोक्ष की प्राप्ति करानेवाला है। इस कवच के प्रभाव से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और परब्रह्म भाव की प्राप्ति कर लेता है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से भी मनुष्य एक हजार गौ दान का फल प्राप्त कर लेता है।


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