श्राद्ध के लिए उपयोगी तिथि
जन्म और मृत्यु के पार
श्राद्ध कर्म की विधि अत्यन्त उत्तम है। मन में श्रद्धा लेकर श्राद्ध करनी चाहिए। इससे धन, यश तथा पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। मनुष्य की ही बात नहीं है, गंधर्व, नाग, यक्ष, राक्षस, पिशाच तथा असुर किन्नरों को भी अपने-अपने पितरों की पूजा करनी चाहिए। पितृ पक्ष में निरन्तर पन्द्रह दिन श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं। अब किस तिथि को श्राद्ध करने से लाभ और किस तिथि को श्राद्ध करने से हानि होती है, इसका विचार करते हैं
कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को श्राद्ध करने से सर्वगुण सम्पन्न रूपवती पत्नी प्राप्त होती है जो सुन्दर, सुशील, धर्म परायण संतान को जन्म देती है।
1. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को श्राद्ध करने से सर्वगुण सम्पन्न रूपवती पत्नी प्राप्त होती हैजो सुन्दर, सुशील, धर्म परायण संतान को जन्म देती है।
2. द्वितीया तिथि को श्राद्ध करने से घर में प्रायः कन्याओं का जन्म " होता है।
3. तृतीया तिथि को श्राद्ध करने से सुन्दर नसल के अश्वों की प्राप्ति होती है।
4. चतुर्थी तिथि को श्राद्ध करने से गाय, भेड़, बकरी आदि पशु घर में आते हैं।
5. पंचमी तिथि को श्राद्ध करने वाले पुरूष के घर में बहुत से पुत्र-पौत्र आदि का जन्म होता है।
6. षष्ठी तिथि को श्राद्ध करने से शरीर की सुन्दरता में निखार आता है तथा सौन्दर्य बढ़ता है।
7. सप्तमी तिथि को श्राद्ध करने से फसल अच्छी होती है, ज्यादा अनाज घर में आता है।
8. अष्टमी तिथि को श्राद्ध करने से व्यापार में उन्नति होती है, उधार डूबता नहीं है।
9. नवमी तिथि को श्राद्ध करने से एक खुर वाले पशुओं की बढ़ोत्तरी होती है, जैसे ऊंट, घोड़े, खच्चर आदि।
10. दशमी तिथि को श्राद्ध करने वाले व्यक्ति के यहां गोधन की बहुलता होती है। 11. एकादशी तिथि को श्राद्ध करने बहुलता होती है।
11. एकादशी तिथि को श्राद्ध करने वाले व्यक्ति के घर में बर्तन, भांडे, कपड़ों का ढेर लग जाता है और बड़े ही तेजस्वी पुत्र का जन्म होता है।
12. द्वादशी तिथि को श्राद्ध करने वाले व्यक्ति का घर सोने, चांदी के आभूषणों से भरा रहता है। वह धन में समृद्ध होता है और समाज में उसका प्रभाव बढ़ता है।
उसका प्रभाव बढ़ता है। 13. त्रयोदशी को श्राद्ध करने वाला पुरूष अपनी जाति-बिरादरी में सम्मान से ऊंचा उठ जाता है।
14. चतुर्दशी तिथि को कभी 14. चतुर्दशी भूलकर भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए, जो इस तिथि को श्राद्ध करता है उसके घर धन-जन की हानि होती है। उसके घर के लोग युवावस्था में ही मर जाते हैं। और श्राद्धकर्ता को लड़ाई-झगड़े में उलझना पड़ता है।
15. अमावस्या में श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता की संपूर्ण कामनायें पूर्ण हो जाती हैं। वह इस लोक में सुखी होता है और उसका परलोक भी बन जाता है। कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी को श्राद्ध नहीं करना चाहिए। दशमी से लेकर अमावस्या तक की जितनी भी तिथियां हैं, ये सब श्राद्ध के लिए उपयुक्त मानी जाती है। अन्य तिथियां इनके समान नहीं हो सकती हैं। श्राद्ध किसी भी तिथि को अपराह्न काल में करना चाहिएश्राद्ध के लिए उपयोगी सामग्री श्राद्ध के महत्व को जानने वाले विद्वानों ने यह बताया है, कौन सा हविष्य पितरों को तृप्त करता है। और दान की हुई कौन सी वस्तुयें अक्षय होती हैं, उन्हीं का वर्णन हैतिल, जौ, चावल, उड़द, फल-मूल और जल देने से पितरों को एक माह तक भूख-प्यास नहीं लगती है। और जिस श्राद्ध में तिलों का अधिक उपयोग होता है, वह अक्षय होता है। अतः श्राद्ध के दिनों में दिए जाने वाले भोजन में तिलों की बहुलता होती है। साथ ही घी मिली हुई खीर दान करने से पितर एक वर्ष तक संतृप्त रहते हैं। वे कामना करते हैं, कि क्या हमारी कुल में कोई ऐसा व्यक्ति उत्पन्न होगा, जो घी मिली हुई खीर का पिंडदान करेगा। प्रत्येक मनुष्य को ज्यादा से ज्यादा पुत्र उत्पन्न करने चाहिए। उनमें से यदि एक-दो पुत्र गया जी में चले जाएं, और वहां जाकर हमारे निमित्त से श्राद्ध कर दें तो हमारा कल्याण हो जाएगा। गया जी में अक्षय वट' नाम का वट वृक्ष है। उसका कभी भी क्षय या विनाश नहीं होता है। उसके नीचे जाकर श्राद्ध करने से, अनन्त फल की प्राप्ति होती है।
पिता की मृत्यु तिथि को उस वृक्ष के नीचे जाकर श्राद्ध करना चाहिए। फल, मूल, जल, अन्न आदि का दान करना चाहिए, यदि उसमें मधु मिलाकर दान करें तो पितरों को अनन्त काल तक तृप्ति रहती है। गृहस्थ को इस धर्म का निर्वाह करना चाहिए।
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