अमरनाथ यात्रा


प्रकृति की गोद में बसे पहलगाम, कश्मीर से अमरनाथ यात्रा की शुरुआत होती है|


 कोई-कोई जो संपन्न होता है, यात्रा खच्चरों पर करता है जबकि बाकी लोग पैदल ही यह यात्रा करते हैं। कहा जाता है कि पहलगाम से पवित्र गुफा तक का मार्ग संसार की सुंदरतम पर्वत मालाओं का मार्ग है जो अक्षरशः सत्य है। इसमें हिमानी घाटियां, ऊंचाई से गिरते । जलप्रभात, बर्फ से ढंके सरोवर, उनसे । निकलती सरिताएं, फिर उन्हें पार करने के लिए प्रकृति द्वारा निर्मित बर्फ के पुल। सब मिलकर प्रकति का ऐसा अदभत खेल प्रकट करते हैं कि मानव इन सबको मंत्रमुग्ध होकर देखता है और प्रकृति की गोद में विचरता हुआ, मनमोहक प्राकृतिक छटा का आनंद पाता है और वातावरण में अजीब-सी शांति महसस करता है।


अठखेलियां करती लिद्दर नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा कस्बा पहलगाम के नाम से जाना जाता है। पहलगाम से श्रावण पूर्णिमा से तीन दिन पहले , शिव  की प्रतीक पवित्र छडी के नेतृत्व में ढोल. ढमाकों, दुंदुभियों और 'हर-हर महादेव' के जयघोष के बीच साधु-संतों की टोलियों के साथ यात्री अगले पड़ाव चंदनवाड़ी की ओर बढ़ते हैं। यह पहलगाम से 16 किमी की दूरी पर स्थित है। चंदनवाड़ी 9500 फुट की ऊंचाई पर पहाड़ी नदियों के संगम पर एक सुरम्य घाटा है और लिद्दर नदी पर बना बर्फ का पुल आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है। यहीं पर जलपान करके तथा थोड़ा विश्राम करके आगे की कठिन चढ़ाई पिस्सू घाटी की ओर बढ़ा जात जाता है। पहलगाम से चंदनवाड़ी कार या टैक्सी में एक घंटे के भीतर पहुंचा जा सकता है क्योंकि यह रास्ता वाहन योग्य है।


                                   


चंदनवाड़ी से 13 किमी दूर है शेषनाग नामक स्थान है। पिस्सू टाप की कठिन चढ़ाई पार कर जोजापाल नामक चारागाह से गुजरते हुए लिद्दर के किनारे-किनारे चलते हुए शेषनाग पहुंचा जा सकता है। यहां पर झील का सौंदर्य अद्भुत है। शेषनाग झील 12200 फुट की ऊंचाई पर हिमशिखरों के बीच घिरी यह हिम से आच्छादित झील, लिद्दर नदी का उद्गम स्थल है। यहां रात्रि में लोग टेंटों की बस्ती में विश्राम करके आगे की यात्रा आरंभ करते हैं, यहां के हिममिश्रित जल से स्नान करने के बाद चढ़ाई से हुई सारी थकावट दूर हो जाती है। 


फिर यहीं से यात्रा का दसरा व दर्गम चरण आंरभ होता है, 13 किमी दर पंजतरणी की ओर। फिर से शुरू होती हैएक ओर कठिन चढ़ाई। महागुनस शिखर की ओर जो 14800 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इस शिखर पर ऑक्सीजन की कमी है क्योंकि अमरनाथ यात्रा के दौरान यही शिखर सबसे ऊंचा है। ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस फलता है। हालांकि स्थान-स्थान पर चिकित्सा संबंधी। सहायता भी उपलब्ध रहती है। शिखर पर चढ़ने के उपरांत पोशपथरी को पार करके 12500 फुट की ऊंचाई पर भैरव पर्वत के दामन में है पांच नदियों अर्थात् पंजतरणी।


यहां पर यात्री रात को विश्राम करते हैं और प्रात:काल भक्त पवित्र धाराओं में स्नान करके आगे की ओर बढ़ते हैं गुफा की ओर जो पंजतरणी से मात्र 6 किमी की दूरी पर है। पंजतरणी से गुफा तक के मार्ग में पंजतरणी से गुफा तक के मार्ग में पुनः दुर्गम चढ़ाई का सामना करना पड़ता है। लोग सांस लेते, विश्राम करते प्रभु भोले नाथ के दर्शनों की अभिलाषा लिए पवित्र गुफा की ओर बढ़ते हैं। रास्ता भयानक भी है और सुंदर भी। पगडंडी से नीचे नजर जाते ही खाइयों में बहती हिम नदी को देख कर डर लगता है। फिर एक मोड़ से गुफा का दूर से दर्शन होने पर लोग उत्साहित हो जय-जयकार करते बर्फ के पुल को पार करके पहुंचते हैं पवित्र गुफा के नीचे बहती अमर गंगा के तट पर।


यहीं से स्नान करके लोग लगभग 100 फुट चौड़ी तथा 150 फुट लंबी उस पवित्र गुफा में जाते हैं, जहां प्राकृतिक पीठ पर हिम निर्मित शिवलिंगम के दर्शन पाकर लोग अपने आप को धन्य समझते हैं। यही हिमलिंग तथा लिंगपीठ ठोस बर्फ का होता है जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्वत्र कच्ची बर्फ ही मिलती है। गुफा में जहां-तहां पानी की बूंदें टपकती रहती हैं लेकिन शिवलिंग एक विशेष स्थान पर बनता है और यह लिंग चंद्र की कलाओं के साथ घटता-बढ़ता है। पूर्णिमा को पूर्ण और अमावस को विलीन हो जाता है। गुफा में पार्वती तथा तथा गणेश जी के प्रतीक लिंग भी देखने को मिलते हैंऔर फिर दर्शनों की आस को पूरी करक लोग वापसी की राह पकड़ लेते हैं। वैसे सोनमार्ग-बालटाल से भी एक रास्ता है जिससे एक दिन में यह यात्रा पूरी की जा सकती है।


                                             ॐ नमः शिवाय


                                                                                           (नेट से संकलित है )


 


 


 


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