बेमन का काम
नीति कथाएं
एक महात्मा द्वारा मलाई युक्त दूध को अस्वीकार करना
भारत में एक साधु एक बड़े शहर में सड़क से गुजर रहा था। एक महिला ने उसके निकट जाकर उससे अपने घर चलने को कहाऔर उसने उनसे नम्र निवेदन किया कि वे उसके घर को पवित्र करें। वह उसके यहां जाने को राजी हो गए।
गए। और घर पहुंचने पर साधु को एक गिलास दूध पेश किया गया। दूध एक बर्तन में देर से पक रहा था और उसमें पर्याप्त मात्रा में मलाई पड़ गई थी जो दूध उंडेलते समय गिलास में आ गई। स्त्रियां मलाई (मक्खन) को जतन से रखती हैं, उसके अचानक खो जाने से वह महिला कुछ परेशान हो गई और अधीर होकर कह उठी, हाय! मैं अब क्या करू? तत्पश्चात् उसने दूध में शक्कर मिलाई और सुन्दर दूध भरा गिलास संत के सामने रखा- उसने ले लिया और मेज पर रखकर बातचीत करने लगी। स्त्री ने समझा कि दूध काफी गरम था इसलिए उन्होंने तुरन्त नहीं पिया- अन्त में वह प्रस्थान के लिए तैयार हुआ, तो महिला ने फिर विनम्र भाव से कहा- भगवन्! यह दूध तो ग्रहण करने की कृपा करें। साधु बोला, देवी, यह दूध एक साधू के छूने के योग्य नहीं है। स्त्री ने पूछा- महाराज, क्या अपराध हुआ जो आपने यह निर्णय लिया। उन्होंने उत्तर दिया- जब तुमने दूध उंडेलकर उसमें शक्कर और मलाई मिलाई, तो उसी के साथ कुछ और अर्थात हाय-हाय भी मिला दी। इसीलिए मैं इसे ग्रहण नहीं करूंगा।- यह सुनकर वह लज्जित हो गई और साधू चला गया।
अतः साधु को दूध देना तो ठीक था परन्तु 'हाय-हाय' जोड़ देना अनुचित। वेदान्त का कथन है, काम करो, इच्छाएं रखो, परन्तु कार्य करते समय मन में ग्लानि न आने दो। ऐसा कभी न होने दो- काम करो परन्तु मन में स्वार्थ भाव न आने दो, बेपरवाह रहो, मन को विचलित न होने दो, अपने को वातावरण के अनुकूल बनाने का प्रयत्न करो और जब शुद्ध भावना से तुम काम करोगे तो विजय तुम्हारी चेरी होगीअसंभव विस्मयकारी ढंग से संभव हो जायेगा।
निष्कर्ष :
जैसा एक कृपण द्वारा बेमन से दिए दान से पूण्य नहीं अर्जित होता, इसी तरह बेमन के काम का फल भी अच्छा नहीं होतासफलता प्राप्ति करने के लिए सच्चाई, लगन तथा उत्तम भाव, की आवश्यकता है।
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