धरती का पानी रिश्ते का पानी

जय श्री कृष्ण ! 


सर्वप्रथम आप सभी सुधी पाठकों को गुरु पूर्णिमा एवं श्रावणी पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं। हमारे समाज में श्रावण मास का बड़ा महत्व है। चातुर्मास का यह पहला महीना है। इस महीने से गर्मी से तप्त धरती को जल की शीतलता मिलनी शुरू हो जाती है। लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है कि हम जल को कुछ ही समय बाद खो देते हैं। क्योंकि हम जल संचय की विरासत खो चुके हैं। दिल्ली, मुंबई जैसे हल्की बारिश के बाद सड़कों पर लंबा जल-जमाव आम बात है। दरअसल, जल-बहाव के रास्ते पर बिल्डिंगें हैं। ऐसे में बारिश का पानी हम पर कहर बनकर टूटता है।


लगता है कि हम इन सभी चीजों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं। अभी हम खबरों में चेन्नई  शहर को प्यासा देखकर ठंडी आह भर कर संतुष्ट हो रहे हैं कि चलो अभी हमारे नलों में तो पानी आ रहा है| दरअसल, हम नहीं जानते कि हमारी बारी कब आ जाएगी? और, शायद यह अज्ञान ही हमें निश्चिंत होने को मजबूर करता है। हमें समझना होगा कि जैसे पाचन शक्ति दुरुस्त नहीं होने पर हमारे शरीर का पानी सूखने लगता है और हमें डॉक्टरी मदद की जरूरत पड़ती है। वैसे ही जब धरती का पानी (भू-जल) सूखने लगता है तो उसे भी उपचार की जरूरत पड़ती है, वरना जैसे-जैसे धरती की प्यास बढ़ती है, वैसे-वैसे मानव का कंठ सूखना शुरू होने लग जाता है। उस पर तुर्रा यह कि मानव धरती का उपचार करने के बजाय जल बर्बाद करने के हरसंभव उपाय ढूंढने में जुटा है। मसलन स्नान में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 20-25 लीटर पानी बर्बाद होता है, जो वापस भू-जल का हिस्सा नहीं बन पाता क्योंकि हमने कंक्रीट के जंगल खड़े कर लिये हैं। पैर में मिट्टी न लग जाए, इसके लिए लॉन में घास के बजाय टाइल्स बिछा देते हैं। परिणामस्वरूप बारिश का पानी गटर में बहकर बेकार हो जाता है।


गौरर से देखें तो धरती का पानी भी सूख रहा है, साथ में हमारी आंख का भी! तभी तो हम विकास के नाम पर छोटे-छोटे जलाशयों, झीलों को पाटकर बिल्डिंगें-सोसायटीज खड़ी करते जा रहे हैं। हमारी आंख का पानी सूखने का यह इकलौता मामला नहीं है। विकास की यह अंधी दौड़ हमारे आपसी रिश्तों पर असर डालने लगी है। अभी हाल में महाराष्ट्र के बुजुर्ग दंपत्ति को अपना घर वापस पाने के लिए अपने बेटे के खिलाफ कोर्ट जाना पड़ा। कोर्ट के आदेश के बाद बुजुर्ग दंपत्ति को उनका घर तो मिल गया, लेकिन क्या परिवार भी मिल पाएगा? कदापि नहीं हमारे रिश्तों का पानी छीजता जा रहा है। ठीक वैसे जैसे धरती का। एक समाज के तौर पर हमें दोनों का पानी बचाने की जरूरत है। हम याद रखें कि पानी चाहे वह धरती को हो अथवा रिश्ते का, बचाने से ही बचेगा, संवारने से ही संवरेगा | सावन महीना अपने साथ पानी की सौगात लाता है और हम सभी को यही संदेश देता है कि पानी लीजिए बचाय... पानी लीजिए बचाय...


ॐ पूर्णमिदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमदुच्यते


पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते |


ॐ शान्ति शान्ति शान्ति ।


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