नीलकंठ महादेव

धार्मिक यात्रा



पवित्र सावन माह में भगवान नीलकंठ के दरबार


                  में भक्तों की भीड़


       


नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित अत्यंत प्राचीन मंदिर है। यह उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में मणिकूट पर्वत की घाटी पर स्थित है। मणिकूट पर्वत की गोद में स्थित मधुमती (मणिभद्रा) व पंकजा (चन्द्रभद्रा) नदियों के ईशानमुखी संगम स्थल पर स्थित नीलकंठ महादेव मन्दिर एक प्राचीन धार्मिक केन्द्र है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। यह मंदिर समुद्रतल से 1675 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नीलकंठ महादेव मंदिर में बड़ा ही आकर्षित शिव का मंदिर बना हैएवम् मंदिर के बाहर नक्काशियों में समुद्र मंथन की कथा बनायी गयी है। नीलकंठ महादेव मंदिर के मुख्य द्वार पर द्वारपालों की प्रतिमा बनी है। मंदिर परिसर में कपिल मुनि और गणेश जी की मूर्ति स्थापित है। 


नीलकंठ महादेव मंदिर की सामने की पहाड़ी पर भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती जी को समर्पित एक ३ मंदिर है। मंदिर में शिवरात्रि और सावन में भक्तों की काफी भीड़ लगी रहती है लेकिन बाकी के साल नीलकंठ महादेव मंदिर में नीलकंठ महादेव के दर्शन आसानी से किये जा सकते हैं|


से किये जा सकते हैंअन्य शिव मंदिर की तुलना में नीलकंठ महादेव मंदिर में चांदी से बने शिवलिंग का काफी नजदीक से दर्शन कर सकते हैं। मंदिर प्रांगण में अखंड धुनी जलती रहती है और उस धुनी की भभूत को भक्त प्रसाद के तौर पर लेकर जाते हैं।


यदि जिन लोगों के पास चार धाम के बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम के दर्शन करने के लिए समय नहीं होता है, तो उन्हें नीलकंठ महादेव मंदिर के दर्शन जरूर करने चाहिए क्योंकि बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने के मार्ग की झांकी की तरह है।


भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है


नीलकंठ महादेव मंदिर के बारे में पुराणों की कथा के अनुसार एक बार किसी कारण देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के लिए मंथन हुआ था और वो मंथन दूध के सागर (क्षीरसागर) में हुआ था। उस मंथन में से 14 रत्न निकले (लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष)। देवता अपनी चतुराई से 14 रत्नों में से अमृत ले जाने में सफल हो गए लेकिन अमृत के साथ-साथ विष भी निकला था और वो विष इतना खतरनाक था कि उसकी एक बूंद पूरी दुनिया अर्थात संसार को ख़तम करने की शक्ति रखती थी। इस बात को जानकर देवता और राक्षस भयभीत हो गए और विष का निवारण पाने के लिए भगवान शिव जी के समक्ष पहुंचे। फिर भगवान शिव ने विष के प्रभाव से बचने के लिए एक उत्तर निकाला कि विष को स्वयं खुद पियेंगे। भगवान शिव ने विष से भरा घड़ा उठाया और देखते ही देखते पूरा विष पी गए लेकिन शिवजी ने विष को अपने गले से निचे नहीं निगला। उन्होंने विष को अपने गले में ही अटकाये रखा। विष पीने के बाद भगवान शिव का गला नीला हो गया और तब से भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाने लगा।


कैसे जाएं नीलकंठ


नीलकंठ जाने के लिए ऋषिकेश से साधन उपलब्ध है। रामझूला व लक्ष्मण झूला के पास से आपको नीलकंठ जाने के लिए शेयरिंग वाली गाड़ियां (जीप) मिल जाएँगीनीलकंठ का पहाड़ी रास्ता काफी जोखिम भरा हने की वजह से खुद ड्राइव कर के जाना उपयुक्त नहीं। ऋषिकेश से नीलकंठ पहुंचने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। ऋषिकेश से नीलकंठ के रास्ते में बहुत ही सुन्दर पहाड़ियां हैं और पहाड़ों के बीच से गुजराती हुई गंगा नदी है। सड़क की एक और ऊँचे पहाड़ और दूसरी और कल कल करके बहता पवित्र जलआँखों के लिए इस से सुन्दर और नज़ारा क्या होगा। जहा देखो प्रकृति ने अपना आँचल फैलाया हुआ है। गंगा का जल अत्यंत साफ व निर्मल दिखाई देता हैनीला नील पानी, हरयाली से भरे पहाड़ और घुमावदार रास्ते इस यात्रा को और अधिक उत्साहजनक बनाते हैं। ऋषिकेश से एक घंटे में आप नीलकंठ पहुँच जायेंगेमंदिर प्रांगण में पहुँच कर भगवान महादेव के दर्शन करें। यदि आप लाइन में नहीं लगना चाहते तो कोशिश करें कि आरती के समय पर मंदिर न पहुंचे क्योंकि आरती के समय दर्शन रोक दिए जाते हैं।


सावन के महीने में शिव भक्त नीलकंठ कांवड़ ले कर आते हैं। इस कांवड़ में गंगाजल होता है तथा गंगा. जल से महादेव का अभिषेक करते हैं। साल में दो बार शिवरात्रि के त्योहार पर यहाँ मेला लगता है तथा भक्त दूर दूर से भोले बाबा के दर्शनों के लिए आते है।


नीलकंठ से 2 कि. मी. की दूरी पर माँ पार्वती का मंदिर है। ऋषिकेश से ली गयी टैक्सी ड्राइवर आपको इस मंदिर तक भी ले जाते है 20 रुपय /प्रति व्यक्ति ले कर। पार्वती माँ के मंदिर से 2 कि. मी. की दूरी पर एक गुफा है जो झिलमिल गुफा के नाम से जाना जाता है। भगवान शंकर के दर्शन कर भक्त वापस ऋषिकेश की ओर आ जाते हैं।


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