श्रावण सोमवार व्रत
पर्व
हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को खासकर देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया जिसके बाद से ही महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया।
16 सोमवार का व्रत
16 सोमवार का व्रत शिवपुराण के अनुसार जिस कामना से कोई इस मास के सोमवारों का व्रत करता है, उसकी वह कामना अवश्य एवं अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। जिन्हें 16 सोमवार व्रत करने हैं, वे भी सावन के पहले सोमवार से व्रत करने की शुरुआत कर सकते हैं। इस मास में भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा करना श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायक है।
क्या पूरे महीने व्रत रखना चाहिए?
हिन्दू धर्म में श्रावण मास को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना गया है। पूरे श्रावण माह में निराहारी या फलाहारी रहने की हिदायत दी गई है |इस माह में शास्त्र अनुसार ही व्रतों का पालन करना चाहिए। मन से या मनमानों व्रतों से दूर रहना चाहिए। इस संपूर्ण माह में नियम से व्रत रख कर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
श्रावण माह के पवित्र दिन
इस माह में वैसे तो सभी पवित्र दिन होते हैं लेकिन सोमवार, गणेश चतुर्थी, मंगला गौरी व्रत, मौना पंचमी, श्रावण माह का पहला शनिवार, कामिका एकादशी, हरियाली अमावस्या, विनायक चतुर्थी, नागपंचमी, पुत्रदा एकादशी, त्रयोदशी, श्रावणी पूर्णिमा, पवित्ररोपन, शिव चतुर्दशी और रक्षा बंधन आदि पवित्र दिन हैं।
व्रत के दौरान क्या करें
पूर्ण श्रावण कर रहे हैं तो इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। दिन में फलाहार लेना और रात को सिर्फ पानी पीना।
इस व्रत में दूध, शक्कर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि का त्याग कर दिया जाता है। इस दौरान दाढ़ी नहीं बनाना चाहिए, बाल और नाखून भी नहीं काटना चाहिए।
अग्निपुराण में कहा गया है कि व्रत करने वालों को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए, सीमित मात्रा में भोजन करना चाहिए। इसमें होम एवं पूजा में अंतर माना गया है|
श्रावणी उपाकर्म
कुछ लोग इस माह में श्रावणी उपाकर्म भी करते हैंवैसे यह कार्य कुंभ स्नान के दौरान भी होता है। यह कर्म किसी आश्रम, जंगल या नदी के किनारे संपूर्ण किया जाता है। मतलब यह कि घर परिवार से दूर संन्यासी जैसा जीवन जीकर यह कर्म किया जाता है। श्रावणी उपाकर्म के 3 पक्ष हैं- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय।
पूरे माह किसी नदी के किनारे किसी गुरु के सान्निध्य में रहकर श्रावणी उपाकर्म करना चाहिए। इस दौरान व्यक्ति कठिन उपवास करते हुए जप, ध्यान या तप करता है। श्रावण माह में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म प्रत्येक हिन्दू के लिए जरूर बताया गया है।
किसे व्रत नहीं रखना चाहिए?
अशौच अवस्था में व्रत नहीं करना चाहिए। जिसकी शारीरिक स्थिति ठीक न हो व्रत करने से उत्तेजना बढ़े और व्रत रखने पर व्रत भंग होने की संभावना हो उसे व्रत नहीं करना चाहिए रजस्वरा स्त्री को भी व्रत नहीं रखना चाहिएयदि कहीं पर जरूरी यात्रा करनी हो तब भी व्रत रखना जरूरी नहीं है।
अब यदि श्रावण माह में आप व्रत नहीं रखेंगे तो निश्चित ही एक दिन आपकी पाचन क्रिया सुस्त पड़ जाएगी। आंतों में सडाव लग सकता है। पेट फूल जाएगा, तोंद निकल आएगी। आप यदि कसरत भी करते हैं और पेट को न भी निकलने देते हैं तो आने वाले समय में आपको किसी भी प्रकार का गंभीर रोग हो सकता है | व्रत का अर्थ पूर्णतः भूखा रहकर शरीर को सूखाना नहीं बल्कि शरीर को कुछ समय के लिए आराम देना और उसमें से जहरिले तत्वों को बाहर करना होता है। पशु, पक्षी और अन्य सभी प्राणी समय समय पर व्रत रखकर अपने शरीर को स्वास्थ कर लेते हैं। शरीर के स्वस्थ होने से मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ हो जाते हैं। अतः रोग और शोक मिटाने वाले चतुर्मास में कुछ विशेष दिनों में व्रत रखना चाहिए। डॉक्टर परहेज रखने का कहे उससे पहले ही आप व्रत रखना शुरू कर दें।
प्रकृति का पुनर्जन्म
इस माह में पतझड़ से मुरझाई हुई प्रकृति पुनर्जन्म लेती है। लाखों-करोड़ों वनस्पतियों, कीट-पतंगों आदि का जन्म होता है। अन्न और जल में भी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती हैजिनमें से कई तो रोग पैदा करने वाले होते हैं।
ऐसे में उबला और छना हुआ जल ग्रहण करना चाहिए, साथ ही व्रत रखकर कुछ अच्छा ग्रहण करना चाहिएश्रावण माह से प्रकृति में जीवेषणा बढ़ती है। मनुष्य के शरीर में भी परिवर्तन होता है
चारों ओर हरियाली छा जाती है। ऐसे में यदि किसी पौधे को पोषक तत्व मिलेंगे, तो वह अच्छे से पनप पाएगा और यदि उसके ऊपर किसी जीवाणु का कब्जा हो गया, तो जीवाणु उसे खा जाएंगे। इसी तरह मनुष्य यदि इस मौसम में खुद के शरीर का ध्यान रखते हुए उसे जरूरी रस, पौष्टिक तत्व आदि दे तो उसका शरीर नया जीवन और यौवन प्राप्त करता है।
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