एक्युप्रेशर द्वारा मुख्य रोगों का उपचार
योग-साधना
यद्यपि एक्युप्रेशर की समस्त रोगों में एक विशेष उपयोगिता है। यह एक हानिरहित पद्धति है। तथा इसे अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ भी अपनाया जा सकता है। परन्तु कुछ ऐसे रोग, जिनका उपचार एक्युप्रेशर द्वारा सफलतापूर्वक किया जा सकता है अधोलिखित हैं:
1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) ने एक्युप्रेशर तथा एक्युपंक्चर चिकित्सा पद्धतियों की उपयोगिता को स्वीकारते हुए इस चिकित्सा पद्धति - को सियाटिका, सर्वाईकल, स्पोंडोलाइटिसादि मेरूदंड के समस्त रोगों, कंधों की अकड़न (फ्रोजन सोल्डर), घुटनों का दर्द, बिस्तर में मत्र त्याग. आंतों के घाव (अल्सर), पेचिश, कब्ज, सिरदर्द, माइग्रेन, नस-नाड़ियों की विकृति, पेट में गैस बनना, एसिडिटी, गले की सूजन तथा पीड़ा, टांसिल्स, साईनुसाइटिस, ब्रांकाइटिस, दमा, आंख, कान एवं गले के रोग, दांतों का दर्द, लकवा, मिनीयर्स डिजीज आदि रोगों में अधिक उपयोगी स्वीकार किया है।
2. आश्रम द्वारा संचालित ब्रह्मकल्प औषधालय में भी हमने लाखों लोगों पर एक्युप्रेशर चिकित्सा को सफल प्रयोग उपर उल्लेख किए गए रोगों पर किए हैं। कई बार तो आश्चर्यजनक रूप से रोगियों को लाभ होता हैभयंकर सर्वाइकल, स्पोंडोलाइटिस की अवस्था में जब गर्दन को हिलाना भी संभव नहीं हो तब हमने यहां लोगों को मात्र 5-10 मिनट में पूर्ण स्वस्थ किया है।
वर्षों पुराना कंधों का दर्द जिसमें कई बार तो हाथ हिलाना तथा ऊपर उठाना भी संभव नहीं होता|ऐसी स्थिति में भी 5-10 मिनट में पूर्ण रूपेण ठीक किया है। हमारे विचार में सभी प्रकार की शारीरिक पीड़ाओं, जोड़ों में या कमर दर्द आदि में, नस नाड़ियों की विकृति आदि में एक्युप्रेशर से जितना शीघ्र लाभ हो जाता है उतना किसी अन्य पद्धति से नहीं हो सकता|
3. हृदयशूल में भी एक्युप्रेशर से तुरन्त लाभ होता है तथा हृदय की शिराओं में आया हुआ अवरोध व अन्य विकार भी एक्युप्रेशर द्वारा दूर होते हैं |
4. पेट के रोग, मधुमेह एवं मस्तिष्कीय रोगों में भी यह पद्धति प्रभावशाली है।
5. रोगोपचार के साथ-साथ हम एक्युप्रेशर को रोग निदान (डीजीज डाइग्नोज) के लिए भी महत्वपूर्ण मानते हैं। इस पद्धति द्वारा विभिन्न प्रतिबिम्ब केन्द्रों (Reflex Centre) पर दबाव डालकर यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि शरीर के कौन-कौन से अंग अथवा ग्रंथियां अपना कार्य भली-भान्ति नहीं कर पा रहे हैं। कई बार प्रयोगशाला के परीक्षण (Laboratory Tests) भी रोग का ठीक-ठीक कारण जानने में सहायता नहीं कर पातेऐसी स्थिति में प्रतिबिम्ब केन्द्रों के परीक्षण से केवल कुछ ही पलों में यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर के किस अंग में क्या विकार है। अतः इस स्थिति में प्रतिबिम्ब केन्द्रों को रोगों का दर्पझा भी कहा जाता है|
प्रतिबिम्ब केन्द्रों की जांच तथा प्रेशर देने की विधि-
1. एक्युप्रेशर अंगूठों, अंगुलियों, लकड़ी अथवा प्लास्टिक के उपकरण आदि किसी भी उपयुक्त चीज से सुविधानुसार किया जा सकता है।
2. बिन्दओं पर न तो बहत कम और न ही बहुत अधिक जोर से दबाव डालें अपितु मध्यम बल का प्रयोग करते हुए प्रेशर डालना चाहिए। ऐसा करते हुए यदि किसी को प्रेशर प्वाइंट्स पर असहनीय दर्द हो तो समझना चाहिए कि उस केन्द्र से संबंधित अंग में कोई विकार या रोग है। जिन केन्द्रों पर दबाव डालने से अधिक पीड़ा नहीं होती तो समझना चाहिए कि वे अंग स्वस्थ हैं।
3. प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देने से हाथों एवं पैरों की रक्तवाहिकाओं में संग्रहित अपद्रव्य व विजातीय तत्व के क्रिस्टल धीरे-धीरे अपना स्थान छोड़कर रक्त प्रवाह में मिल जाते हैंऔर फिर पसीने या गुर्दो की प्रणाली द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैंइसलिए एक्युप्रेशर करते हुए इच्छित बिन्दओं को. को दबाने के बाद अन्त में गुर्दो के केन्द्रों पर एक दो मिनट अवश्य ही दबाव डालना चाहिए। प्रेशर से जैसे-जैसे क्रिस्टल अपना स्थान छोड़ते हैं, वैसे-वैसे रोग का वेग भी कम होता जाता है। जैसे-जैसे रोग का वेग कम होता जाता है, वैसे ही प्रेशर देने से दबाव बिन्दओं पर भी दर्द कम होता जाताप है। और रोगी स्वयं भी अपने रोग में लाभ अनुभव करने लगता है। कुछ दिन निरन्तर करने से रोग पूरी तरह से दूर हो जाता है और प्रेशर देने में दर्द भी या तो बिल्कुल नहीं होता या बहुत सामान्य सा रह जाता है।
4. अधिकांश व्यक्तियों को प्रारम्भ में प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर दबाव डालने से जैसे ही वहां स्थित क्रिस्टल प्रेशर के कारण क्रिया में आते हैं के कारण क्रिया में आते हैं और अपना स्थान छोडते हैं तो उन बिन्दुओं पर काफी दर्द तथा सूजन भी हो जाती है। ऐसे में घबराना नहीं चाहिए। यह एक स्वाभाविक क्रिया हैऐसा होने पर गर्म पानी में नमक डालकर उन बिन्दुओं की सिकाई कर देने से वहां का दर्द व सूजन भी दूर हो जाती है।
एक्युप्रेशर का समय
सामान्य रूप से किसी भी समय एक्युप्रेशर किया जा सकता है। परन्तु आमाशय, आन्त्रा, यकृत तथा पित्ताशय आदि के लिए प्रेशर देना हो तो खानाखाना से पहले या खाने से दो-तीन घंटे बाद ही देना चाहिए। भोजन के तुरन्त बाद क्योंकि शरीर की पूरी ऊर्जा भोजन के पाचन में लगी होती है, इसलिए एक्युप्रेशर खाने से पहले करना ही सर्वोत्तम हैहल्का दुग्धपान या फलाहार करने के थोड़ी देर बाद भी एक्युप्रेशर किया जा सकता हैं।
प्रेशर की अवधि
रोगी के रोगानुसार निर्दिष्ट बिन्दुओं पर 30 सेकंड से लेकर 2 मिनट तक एक केन्द्र पर दबाव डालना चाहिए। किसी भी बिन्दु पर प्रेशर देते हुए रोगी की सहन शक्ति का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए, अन्यथा कई बार व्यक्ति मूर्च्छित हो जाता है। एक ही बिन्दु को लगातार नहीं दबाते रहना चाहिएअपितु बदल-बदल कर अलग-अलग बिन्दुओं पर बारी-बारी से प्रेशर देना चाहिए। दिन में सामान्य रूप से दो बार प्रातः सायं प्रेशर देना चाहिए। विशेष दर्द आदि की स्थिति में दिन में तीन बार भी एक्युप्रेशर किया जा सकता है।
प्रेशर बिन्दुओं की संख्या
डा. चु.लिएन द्वारा लिखित ''चेनचियु सु एह' (अर्वाचीन एक्युप्रेशर) नामक ग्रंथ चीन में इस विषय का अधिकृत प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसमें एक्यप्रेशर के 668 बिन्दओं की सची दी गई हैकुछ अन्य चार्टी में 1000 बिन्दु दर्शाये गए हैं। किन्तु दैनिक प्रयोग में मुख्य रूप से लगभग 100 बिन्दु ही न अधिक महत्वपूर्ण हैं।
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