जीवन एक स्वप्न समान है
पिछले अंक में हम ने विद्यार्थियों को योग द्वारा परीक्षाओं का तनाव कम करने की युक्ति बतलाई थी। हमारे शास्त्रों में लिखित और ऋषि-मुनियों द्वारा कथित हर व्यवस्था आध्यात्मिक जीवन का उत्थान करती है। ध्यान, योग, पौष्टिक भोजन, सरल स्वभाव, चिन्तन, मनन सभी प्रक्रियाएं मन को शान्त और तनाव से दूर करती है।
सदियों से विश्व का अध्यात्म यह कहता आया है कि मनुष्य सोया हुआ है। रात में अधिक और दिन में कम। लेकिन वह हर समय सोया हुआ है। आप कभी दिन में दो पल के लिए आंख बंद करके बैठे तो देखेंगे कि स्वप्न शुरू हो जाता है। वह कभी बन्द ही नहीं होता, हमारे दिन के कामकाज में वह दब जाता है परन्तु सतत् भीतर चलता रहता है। इस शहरी नींद से जागने वाले को ही चैतन्य कहते हैं या बुद्ध कहते हैं या परमहंस कहते हैं|
यदि हम असीम पराकाष्ठा तक पहुंचना चाहते हैं, बुद्ध की तरह जागृत होना चाहते हैं तो इस आंतरिक स्वप्न की प्रक्रिया का विसर्जन करना होगा। भीतर भूत, वर्तमान या भविष्य की कोई सोच नहीं होनी चाहिए-एकदम शून्य। यही शुद्धता, निर्दोषता, स्वप्नरहित चैतन्य बुद्धत्व को प्राप्त होता है। मानिए जीवन एक स्वप्न में एक फिल्म जैसा है। जिस के अंदर हम इस कदर डूबे हैं कि बिल्कुल भूल जाते हैं कि हम कौन हैं। इस स्वप्न में हम खुद को छोड़ कर सब कुछ महसूस करते हैं यह आत्म-अज्ञान की नींद है। जब यह स्वप्न क्रिया बंद होगी, हम स्वयं के प्रति जागृत होंगे तब आत्म ज्ञानी बन जायेंगे|
हरी ॐ