साधना का प्रथम बिन्दु हैॐ

ओम् महिमा


                   ॐ


मनुष्य सृष्टि की सभी जातियों में इसलिए भी श्रेष्ठ समझा जाता है क्योंकि पश पक्षियों और जल जीवों की तुलना में उसकी अभिव्यक्ति अधिक ठोस होती है। अभिव्यक्ति प्रत्येक जीव करता है। परंतु मनुष्य सतत् प्रगतिशील रहते हुए कहीं भी नहीं ठहरता। वो नित्त नये प्रयोग करता रहता है। समय-समय पर उसकी अभिव्यक्ति भी व्यावहारिक और प्रासंगिक होती रहती है। आरंभ काल में मनुष्य भी वन्य प्राणियों जैसे संवाद करता था। वन्य प्राणियों जैसे संवाद करता था। जैसे-जैसे मनुष्य आधुनिक होता गया वैसे-वैसे उसने अपनी अभिव्यक्ति को और भी ज्यादा प्रभावशाली बनाया। जब देवनागरी लिपि समृद्ध हुई तो साधकों ने ॐ शब्द के उच्चारण के प्रभाव की व्यापक पड़ताल की, तो उन्हें अभूतपूर्व ऊर्जा के संचार का आभास हुआ। आमतौर पर हमारी पूरी दिनचर्या शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करने में ही व्यय हो जाती है। सब कार्य दिन कार्य और रात्रि के कार्य के पश्चात पुनः सुबह हो जाती है। बताते चलें कि पूरी । सृष्टि में मानवजाति की संख्या करोड़ों में है। लगभग दस प्रतिशत मनुष्य ही सार्थक जीवन पद्धति अपना पाते हैं क्योंकि स्वर और व्यंजनों से ऊपर उठकर सार्थक शब्दों के महत्व को पहचानने की कला बहुत कम लोग ही सीख पाते हैं। सभी सार्थक शब्दों में ॐ शब्द सबसे अलग और सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हमारे साधु-संत, चिंतक, मनीषी और महात्मा वेदों पराणों से अर्जित की गई तपस्या के आधार पर ही कहते हैं कि मनुष्य का व्यवहार भी मनुष्य के कई जन्मों के पुण्य कर्मों पर आधारित होता है।


प्रत्येक मनुष्य मृदुभाषी नहीं होता। प्रत्येक मनुष्य की भाषा सशक्त नहीं होती। प्रत्येक मनुष्य अपने शब्दों से समाज को प्रभावित नहीं कर सकता। मनुष्य जब अपनी दैनिक जरूरतों से ऊपर उठ जाता है जब वो सब में स्वयं को और स्वयं में सबको देखने लगता है, तब वो धीरे-धीरे साधक बनने की ओर अग्रसर होने लगता है। इसी क्रम में वो गुरू की भी तलाश करता है। जिनको गुरू प्राप्त होते हैं, वो जिनको सौभाग्यशाली समझे जाते हैं। परन्तु कुछ साधकों को गुरू की प्राप्ति नहीं हो पाती है। ऐसी परिस्थिति में कुछ ऐसे भी साधक होते हैं जो अपने पिछले कई जन्मों के कर्मफल के पुण्यों के प्रभाव से स्वनियंत्रित होने लगते हैं। उनको स्वयं ही ये आभास होने लगता है कि आगे कीसाधना कैसे करनी होगी। जो तंत्र मंत्र की साधना नहीं कर सकते उनकी शुरूआत ॐ कहने से ही आरंभ हो जाती है। जब ॐ शब्द के उच्चारण में साधक को आनंद प्राप्त होने लगता है। तब ॐ ही स्वयं मनुष्य को साधक बनाने के लिए प्रेरित करने लगता है। एक बार जिसको चस्का लग गया वो फिर छुडाने से भी नहीं छूटता। आप और हम शुरूआत में ॐ कहना आरंभ भर करते हैं। बाद में आप और हम ॐ की शक्तियों की जद में स्वयं ही आ जाते हैं। फिर कोई सुबह जल्दी उठाता नहीं हम स्वयं ही जागने लगत हैं |


लगत हा मन में एक बात आ जाती है-कब स्नान करूं, कब सुबह की दिनचर्या पूरी करूं कि जल्दी ध्यान लगाने का अवसर प्राप्त हो। ध्यान का मौका मिले और ॐ शब्द के उच्चारण का आनंद प्राप्त हो। ॐ । मनुष्य को आत्म-प्रबंधन, जन-प्रबंधन और समय प्रबंधन की कला सिखाने में स्वयं . ही सक्षम है। इसलिए आप से कहता हूंकि जो समय निन्दा करने में नष्ट हो रहाहै, जो समय गुरू की खोज में नष्ट हो रहा है, उस समय को नष्ट न होने दें कोई न मिले तो ॐ को ही गरू बनाएं। ये समझिये कि ॐ ही मेरा गुरू है। फिर ॐ शब्द का नियमित सेवन करिये। ऐसा करने से आपको महसूस होगा कि कोई है जो आपके जीवन पथ पर आप के साथ आप के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। वो कभी आपको अकेला नहीं रहने देता। वो कौन है इसकी पड़ताल साधना की अगली कड़ी है। अभी शुरूआत है। स्वयं को ॐ से जोड़ें। फिर अपने शरीर में ॐ और ॐ में अपने शरीर का अक्स पहचानें। इसके बाद समाज में ॐ के साथ जाएं. लोगों में ॐ को देखें, फिर ॐ में लोगों को देखना आरंभ करें। ऐसा करना शुरू करते ही आप में प्रबंधन की अभूतपूर्व क्षमता दिखाई देगी। आप हर क्षण स्वयं की और दूसरों की दृष्टि में भी नवीन प्रतीत होंगे। आइये साधना पथ के प्रथम बिन्दु की तलाश कीजिए। यदि ॐ मिल जाए तो समझना कि आपने पूर्व जन्मों में भी सिद्ध कर्म किए थे। नहीं प्राप्त हुआ ॐ तो समझना कि आप मानव नहीं बन सकते क्योंकि मानव बनने के लिए साधक बनना बहुत आवश्यक है। ॐ क्या है इस यक्ष प्रश्न का उत्तर भी स्वयं आपको ॐ के उच्चारण में ही पता चल जाएगा। इसलिए आईये स्वयं को ॐ के नियमित अभ्यास के लिए प्रेरित करिये क्योंकि ॐ साधना का प्रथम बिन्दु है। शेष जीवन में तमाम घटनाओं का घटित होना अभी बाकी है। ॐ कहिये और साधक बनने के पथ पर अग्रसर हो जाईये। जीवन की जीवंतता के बिना जीवन यापन का भी क्या अर्थ है, क्या महत्व है। जीवन तो तभी समृद्ध प्रतीत होगा जब आप और हम साधक बनना चाहेंगे। आइये ॐ से जुड़ें और साधक बनने का प्रयास करें, क्योंकि साधना का प्रथम बिन्द ॐ ही है।


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