श्री हरिकृष्ण जी महाराज
लेख
श्री हरिकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरू हैं, जिन्हें वालपरि के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 7 जुलाई 1656 को किरतारपुर साहिब में पिता हरराय जी, माता कृष्ण कौर जी के घर हुआसवा पांच साल की उम्र में ही पिता ने इन्हें सीख दी थीइनके एक बड़े भाई बाबा राम राय जी भी थे। एक बार औरंगजेब ने गुरु हर राय जी को अपने दरबार बुलाया। बाबा जी ने अपने बड़े बेटे को अपनी जगह भेजा और कहा करामात नहीं दिखानी, पर वह राज दरबार देखकर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने बहुत सारी करामात दिखा दी। इस कारण हरराय जी ने उनका त्याग कर दियाइनके बाद गद्दी श्री हरिकृष्ण जी को मिलीइन्होंने गद्दी का कार्य बहुत अच्छे से संभाला|
अपने समय में बहुत सामाजिक कार्य भी किए, जिसे देखकर बड़ा जल भुन गया और उन्होंने औरंगजेब से मदद मांगी। फिर औरंगजेब ने श्री हरिकृष्ण जी को दरबार में बुलाया पर वे गए नहीं। पिताजी की आज्ञा थी कि मलेच्छ को दर्शन नहीं देना। पर फिर - दोबारा राजा जय सिंह के कहने पर कि संगत आपके दर्शन करना चाहती है। तो वे दिल्ली जाने के लिए राजी हो गए। जब गुरु जी माता जी और संगत दिल्ली आ रही थी रास्ते में गांव येलोगेडे पहुंचे। वहां के पंडितों ने उनकी पालकी के आगे एक कोढ़ी को फेंक दिया कि देखू इनमें कितनी सामर्थ्य है। बाबा जी ने अपने हाथ का रूमाल कोढ़ी के ऊपर फेरा। वह ठीक हो गया। सब बहुत शर्मिंदा हुए और उन्होंने गुरू जी की शरण ली। अब उससे आगे वाले गांव पहुंचे। वहां पंडित लाल सिंह रहता थावो कहने लगा- आप इतने छोटे हो, नाम भी श्री हरिकृष्ण रखा। कृष्ण जी ने गीता लिखी आप उसके एक अर्थ बता दो। गुरू जी ने कहा, आप किसी को भी ले आओ अर्थ हो जाएंगे। एक गूंगा बहरा अनपढ़ छजु जात के झीर को ले आया। गुरू जी ने उसके सिर पर छडी रखी और उसने गीता के अर्थ कर दिए जो पंडितों की समझ से परे थे। उन्होंने उनसे माफी मांगी। इसके बाद जब दिल्ली आए राजा जय सिंह के बंगले में ठहरे जो आज बंगला साहिब के नाम से जाना जाता है। वहां महामारी फैली हुई थी, लोग मर रहे थे। बाबा जी ने खुद वहां जाकर मरहम पट्टी की और फिर उन्होंने जल तैयार किया और कहा, जो यहां से जल पिएगा उसके रोग ठीक हो जाएंगे। अंत में बाबा जी महामारी के शिकार हो गए थे। राजा जय सिंह ने बाबा जी को परखा। उसने अपनी सारी गोलियों को रानियों के कपड़े पहना दिए और अपनी सारी रानियों को गोलियों के कपड़े पहना दिए तो बाबा को पकड़ा जो नौकरानी के वस्त्र में थी कि जन्म से तू पटरानी है गोली क्यों बनी है? राजा शर्मिदा हुआ और गुरू जी का मुरीद हुआ। बाबा जी छोटी उम्र के थे लेकिन उन्होंने औरंगजेब को दर्शन नहीं दिए। वह निर्भय, निर्वैर थे \
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