स्त्रियां क्या गुरु धारण करें



शंका समाधान


प्रश्न:- क्या स्त्रियों को गुरु धारण करना चाहिए?आजकल बहुत से गुरु हैं किससे गुरु दीक्षा ली जाए, क्योंकि सुना है गुरु बिना गति नहीं|


उत्तरः- निःसन्देह गुरु की महिमा अपार है। जैसे लौकिक विद्याएं प्राप्त करने के लिए अध्यापक की आवश्यकता होती है, उसी तरह आध्यात्मिक विद्या की प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है। मनुष्य की बात तो कहो देवताओं ने भी भगवान शंकर को अपना गुरु बनाया। वैदिक धर्म में तो गुरु को ईश्वर का स्थान दिया जाता है। गुरु स्तुति में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवताओं का रूप गुरु को ही माना जाता है। कोई कार्य आरंभ करने से पूर्व गुरु स्तुति करते हैं।


                           गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु साक्षात महेश्वर:


                               गुरु देव परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः|


आखणड मण्डलाकारम् व्याप्तं येन चराचरम्


तत् परम् दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरुवे नमः |


                               गुरु प्रज्ञा प्रसादेन मूल् वा यदि पण्डिता


                            यस्तु सम्बुद्धेते तत्वम् विश्क्तु भव सागरात्।


गुरु गोबिन्द दोनों खड़े किसके लागूं पाए 


बलिहारी गुरु आपने जिन गोबिन्द दियो मिलाए\


                            सर्व वेदान्त सिद्धान्त गोचरम् तंम् गोचरम्


                            गोबिन्दे परमानन्दं सत्गुरुं प्रणतोडस्मि अहं।


अर्थात:- अज्ञान रूप अंधकार को दूर करके ज्ञान रूप चक्षू को देने वाले गुरु को नमस्कार हो। गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही साक्षात् महेश और गुरु ही परब्रह्मा हैं। मैं ऐसे सद्गुरुदेव को नमस्कार करता हूं। जिन गुरु की कृपा से मुझे सर्वव्यापक,चर-अचर में निवास करने वाले चेतन देव भगवान के दर्शन हो गए, ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूं। जिन गुरु की कृपा से मूर्ख भी पण्डित हो जाते है। जिनकी कृपा से तत् पद की प्राप्ति होती है और जीव भव सागर से पार उतर जाता है ऐसे गरु देव को मैं नमस्कार करता हूं|


                             


भगवान शंकराचार्य जी ने गुरु महिमा पर स्रोत लिखा है, जिसका भावार्थ है कि संसार के समस्त पदार्थ धन, पुत्र, यश, गृह, बन्धु, घर शास्त्रों सहित वेद विद्या, मान-प्रतिष्ठा और जितने भी पदार्थ है मिल जाएं, पर गुरु सरण न मिले तो ये सभी निष्फल है।


गुरु में ईश्वर से भी बढ़कर श्रद्धा भक्ति होनी चाहिए। परन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं कि ईश्वर को बिल्कुल ही भुला दिया जाए या उसकी आवश्यकता ही न समझी जाए, और देहधारी गुरु को ही सब कुछ समझ लिया जाए। आजकल बहुत से ऐसे गुरु हो गए हैं जो अपने शिष्यों को ईश्वर सत्ता से दूर कर केवल गरु भक्ति तक ही सब समाप्त कर देते हैं। उन्हें वस्तुतः अपने गुरुडम से ही मतलब होता है, शिष्य के कल्याण का ध्यान नहीं होता। वे शिष्यों को तो त्याग और वैराग का उपदेश देते हैं परन्तु उनका अपना ध्यान लौकिक उपलब्धियों की ओर ही लगा रहता है। भगवे वस्त्र पहन कर अपने मोहक व्याख्यानों से साधारण जनता को मोह लेते हैं। और उनकी सरलता का अनुचित लाभ उठाते हैं। ऐसे लोग देश और जाति के लिए घातक होते हैं। ऐसे लोगों से बचना चाहिए। और स्त्रियों को भी हम यही राय देंगे कि वे परमात्मा को ही अपना गुरु बनाएं। परमात्मा सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान है। वे ही हमारे वास्तविक गुरु हैं।


सनातन ग्रन्थों में स्त्रियों के लिए उनका पति ही उनका गुरु बताया गया है। पतिव्रत धर्म से ही स्त्री का कल्याण हो सकता है। पर पुरूष के पांव पड़ना, उनके चरण दबाना उनका ध्यान करना स्त्री धर्म के विरूद्ध है गुरु और आचार्य का स्थान उन्हीं पुरूषों को प्राप्त हो सकता है जिनमें निम्नलिखित लक्षण विद्यमान हों। शास्त्रों में लिखा है कि:


आचार्य वेदों के ज्ञाता, भगवान के भक्त, अभिमानरहित, मन्त्र का मर्म जानने वाले, मंत्र के भक्त, मंत्रा-ज्ञान, शरीर और मन से पवित्र, उत्तम सम्प्रदा युक्त, ब्रह्म विद्या में निपुण, अनन्य साधना युक्त, भगवाग के अतिरिक्त और कोई प्रयोजन न रखने वाले साधन सम्पन्न, वैरागवान्, क्रोध-लोभ से सर्वथा रहित, सत् उपदेशक, स्थिर बुद्धि एवं ब्रह्मदर्शी होते हैं। जिनमें ऐसे गुण हों, वही आचार्य कहलाने योग्य हैं।


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