योग का मानव शरीर पर प्रभाव

आयुर्वेद


 योगाभ्यासी व्यक्ति की पीनियल ग्रंथि विकसित होती है। पीनियल ग्रंथि हमारे मस्तिष्क के पृष्ठभाग में स्थित एक छोटी सी अंतः स्त्रावीय ग्रंथि (Endocrine Gland) है। यह 'मेलाटोनिन' नामक हार्मोन का स्त्राव करती है। यह हार्मोन मेरूदंड में स्थित सोने व जगने के केन्द्र को और फोटोपीरियॉडिक क्रियाओं को प्रभावित करता है। इसका आकार देवदार के छोटे शंकु के सदृश होता है। यह ग्रंथि मस्तिष्क के केन्द्र के पास दोनों खंडों के बीच में, जहां मगज़ के दोनों वर्तुलाकार आंतरिक अंग जुड़े होते हैं, वहां लीक में कसे पेच की तरह कसी हुई होती है| पीनियल ग्रंथि की स्त्रावीय क्रियात्मकता को अभी हाल ही में समझा गया है। मस्तिष्क के भीतर गहराई में होने वाली इसकी स्थिति ने दार्शनिकों को यह संकेत दिया है कि इसका कुछ खास महत्व है।



यौगिक विज्ञान में इसे 'आज्ञा चक्र' या 'तृतीय नेत्र' कहा जाता है। पीनियल ग्रंथि शंक के आकार की मटर के - दाने जितनी होती है और । यह मस्तिष्क के मध्य पीयूष या शीर्षस्थ ग्रंथि (Pituitary Gland) के पीछे और ऊपर की तरफ, एक छोटी सी गुफा में स्थित होती है। यह स्थान नाक के मूल के थोड़ा पीछे और आंखों के ठीक पीछे मस्तिष्क की अंतर्गुफा के समीप स्थित है|


इस रहस्यमयी ग्रंथि के असली कार्य को उजागर करने हेतु दार्शनिकों और हमारे कुशल आध्यात्मिक ऋषियों ने सुदीर्घ चिंतन किया है। यूनान के पुरातन दार्शनिकों का यह मानना है कि पीनियल ग्रंथि का संबंध हमारे वैचारिक साम्राज्य से है|


डेस्कारटस ने इसे 'आत्मा का आसन' कहा है।यह ग्रंथि प्रकाश से सक्रिय होती हैं। और शरीर के बहुत से बायो-रिदम्स को नियंत्रित करती है। यह हाइपोथेलेमस ग्रंथि के साथ मिल-जुल कर कार्य करती है। जिससे शरीर में प्यास, भूख, कामेच्छा और शरीर की आयु-प्रक्रिया को चलाने वाली जैविक घड़ी (Biological Clock) का नियंत्रण होता है।


जब पीनियल ग्रंथि जागृत होती है, तो व्यक्ति अपने मस्तिष्क के निचले हिस्से में बहुत दबाव का अनुभव कर सकता है। जब कभी किन्ही उच्च आध्यात्मिक तरंगों के साथ संपर्क होता है, तब इस प्रकार के दबाव का अनुभव अक्सर होता रहता है।


 योग की एक विशेष क्रिया 'भूचरी मुद्रा' का जब कोई अभ्यास करता है, तो उसकी पीनियल ग्रंथि सक्रिय हो सकती है'भूचरी मुद्रा' को सद्गुरू से सीखा जा सकता है। और उस पर आसानी से प्रभुत्व पाया जा सकता है प्राणायाम की विधियों में नाडी-शोधन का सीधा प्रभाव पीनियल ग्रंथि पर आता है।


हाइपोथेलेमस, पीनियल और पिट्यूटरी ग्रंथियां आकार में कोई ज्यादा बड़ी नहीं होती हैं। फिर भी इनकी कार्य प्रणाली में अगर कोई दोष उत्पन्न हो जाये, तो वह दोष शरीर की पूरी कार्य प्रणाली को विनाश की ओर ले जा सकता है। हाइपोथेलेमस ग्रंथि की मानव शरीर में क्या भूमिका है? एक छोटे से पतले टुकड़े, चिप के आकार की यह ग्रंथि मानव के इतनी बड़े शरीर का कम्प्यूटर है। पिट्यूटरी और पीनियल, ये दोनों ग्रंथियां संदेशों द्वारा आपसी संपर्क में रहती हैं, जिन संदेशों को आगे हाइपोथेलेमस द्वारा डी-कोड किया जाता है। उस प्राप्त जानकारी के अनुसार, हाइपोथेलेमस ग्रंथि विविध अंतस्त्रावीय ग्रंथियों को अपने हार्मोन्स को स्त्रवित करने के लिए प्रभावित करती हैं। ये हार्मोन्स ऐसे रासायनिक संदेशवाहक हैं, जो शरीर में होने वाले विविध कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे- शरीर की रचना, शरीर की वृद्धि, विकास, मेटाबॉलिज्म इत्यादि। अगर ये हार्मोन्स शरीर में से निकाल लिए जायें, तो पीछे कुछ भी नहीं बचेगा |वास्तव में हाइपोथेलेमस, पीनियल और पिट्यूटरी, ये तीन ग्रंथियां शरीर के सभी अंगों के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं।


 कुछ योगासन इन ग्रंथियों पर सीधा प्रभाव डालते हैं, जिससे इन ग्रंथियों की कार्य प्रणाली के दोष दूर किए जा सकते हैं। जैसे- सर्वांगासन से आप मस्तिष्क की इन महत्वपूर्ण ग्रंथियों को उत्तम कार्य क्षमता में रख सकते हैं अगर सर्वांगासन की स्थिति में शरीर को दस मिनट तक रखा जाये- तो मस्तिष्क की ओर बहने वाले रक्त प्रवाह में विशेष रूप से वृद्धि होगी हालांकि अपनी योग्यता अनुसार निरन्तर इसका अभ्यास करने से ही आप इसमें सक्षम हो पायेंगे। इस आसन को दस मिनट करने के लिए कम से कम दो-तीन महीने का अभ्यास चाहिए। एक ही दिन में यह नहीं होने वाला। सर्वांगासन के अभ्यास से पीनियल, पिट्यूटरी और हाइपोथेलेमस, इन ग्रंथियों की कार्यप्रणाली में हम सुधार ला सकते हैं |


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