गीता की महिमा

                   ईश्वर सर्वोपरि है


                                       


ईश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है


यह संसार ईश्वर की रचना है। वेद ईश्वर की वाणी है तथा गीता ईश्वर का उपदेश है, मानव के लिए कर्म करने की प्रेरणा की स्रोत है। इसलिए हमें ईश्वर की इच्छा को जानने के लिए वेद तथा गीता की शरण में जाना होगा। वेद को ज्ञानामृत पिलाने के कारण वेद-माता कहा गया है। गीता वेदों का सार है तथा हमारी मार्ग-दर्शिका है। हमें ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध चलने पर दण्ड का भागी बनना पड़ता है। हम मार्ग पर अत्यन्त सावधानी से चल रहे हैं परन्तु किसी वाहन का चालक असावधानी के कारण हमें टक्कर मार देता है तो हम दुर्घटना के शिकार होकर शारीरिक तथा मानसिक कष्ट पाते हैं, इसे कर्म फल कहकर स्वीकार करते हैं। भूकम्प, सुनामी लहरों का प्रकोप, शत्रु का आक्रमण आदि समस्त ईश्वरीय दण्ड का स्वरूप है। इनमें कर्म फल के अनुसार कोई बाल-बाल बच जाता है कोई शारीरिक रूप से कष्ट पाता है तो कोई काल का ग्रास बन जाता है। इससे सिद्ध होता है कि ईश्वर सर्वोपरि है।



प्रेम हमारी मानसिक शक्ति है, प्रेम आत्मबल है, प्रेम शान्ति का झरना है। प्रेम अमृत की धारा है। प्रेम की भाषा समझने पर हम पत्तों की भांति उड़ने लगते हैंप्रेम हमें दुख के समय आश्रय देता है।



जीव संसार में आध्यात्मिक उन्नति, भौतिक ऐश्वर्य, तथ ईश्वर तक को प्राप्त कर सकता है। उसके लिए उसे निष्काम रूप से भक्ति, ध्यान, साधना, उपासना, पूजा, अर्चना, वंदना, तप आदि करना होगा। कोई थोड़ा सा प्रयत्न करने पर इतना मान-सम्मान, धन-ऐश्वर्य अथवा जीवन के विशेष क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर लेता है तो कोई दिन-रात परिश्रम करने पर भी असफल ही रहता है। यह ईश्वर प्रदत्त बुद्धि का चमत्कार है कि हम उसके द्वारा दिए गए साधनों का प्रयोग किस प्रकार करते हैं। इन सब के होने पर भी ईश्वरीय अनुकंपा का होना आवश्यक है। संसार के कुछ युद्ध पीड़ित क्षेत्र अथवा देश ऐसे भी हैं जहाँ वहाँ के निवासियों की प्रातः ही गोलियों की ठांय-ठांय या बम के फटने की आवाज से होती है। वे प्रातः उठकर चिड़ियों की चहचहाहट के लिए आकांक्षी होते हैं। उसके लिए विश्व प्रेम की आवश्यकता है। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को जागृत करने की आवश्यकता है। प्रेम के साम्राज्य के विस्तार की आवश्यकता है। प्रेम हमारी मानसिक शक्ति है, प्रेम आत्मबल है, प्रेम शान्ति का झरना है। प्रेम अमृत की धारा है। प्रेम की भाषा समझने पर हम पत्तों की भांति उड़ने लगते हैं। प्रेम हमें दुख के समय आश्रय देता है।


हमें मानव-चोला समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए मिला हैपानी का जहाज बंदरगाह में सुरक्षित / रहता है इसलिए क्या वह लहरों के । बीच में जाएगा ही नहीं?हवाई जहाज एयरोड्रम में सुरक्षित रहता है तो क्या वह आसमान में जाएगा ही " नहीं?जीवन एक युद्ध है। हमें परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करना होगा। हमें सुखद अनुभव अच्छे लगते हैं, दुखद अनुभव नहीं। हम अपनी सूझबूझ से दुखद अनुभव को भी सुखद बना सकते हैं। मूर्खता का प्रतीक गधा एक सूखे कुएं में गिर गया। उसके मालिक किसान ने उसे निकालने की कोशिश की किन्तु असफलता हाथ लगी। उसने कुछ मजदूरों को उसे मिट्टी से भर देने का आदेश दिया। दो-तीन दिन के बाद उसने गधे को दौड़ते हुए देखा। वस्तुतः वह हर बार अपनी पीठ की मिट्टी झाड़ देता तथा उसे सीढ़ी की भांति प्रयोग करना, अन्त में वह बाहर निकलने में सफल हो गया। इसे हम भाग्य की संज्ञा दे देते हैं। हम भी प्राकृतिक आपदाओं पर विजय पा सकते हैं |


हम दूसरों को दोष न देकर प्रयत्नशील हों पुरूषार्थ विपत्तियों को पार करने की नौका है। हम महामारी के लिए सरकार को पूर्णतयः दोषी मानते हैं। हम स्वयं भी इधर-ऊधर कूड़ा-करकट न फेंके तथा अपने पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में सहयोग दें तो समस्या का हल स्वतः ही निकल सकता है। धीमी आंच पर पानी गरम करने पर भी कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। धीरे-धीरे सामूहिक प्रयास से हमें सफलता अवश्य मिलती है |


विद्यालयों में नैतिक शिक्षा के माध्यम से बच्चों का चारित्रिक विकास किया जा सकता है। एक अध्यापक ने कक्षा में बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि कक्षा में मूर्ख बच्चे खड़े हो जाएं। पिछली बैंच से केवल एक बच्चा खड़ा हो गया। अध्यापक ने कहा कि क्या तुम अपने आप को मूर्ख मानते हो?छात्र ने उत्तर दिया “नहीं मैं तो केवल आपका साथ देने के लिए खड़ा हुआ हूँ।" वस्तुतः अध्यापक का आदेश ही गलत था। इस प्रकार की शिक्षा छात्रों को उद्दण्ड बनाती है।


किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए उसमें योग्यता का होना आवश्यक है। एक बार फुटबाल मैच का गोलकीपर रूग्ण हो गया। मैच के कप्तान को नया गोलकीपर ढूंढना कठिन लगा। वह ढूंढता हुआ सब्जी मंडी जा पहुंचा वहाँ उसने एक मजदूर को ट्रक से सब्जी की गठरी अगले मजदूर को देते हुए देखा। उसने उसे गोलकीपर के लिए उपयुक्त समझा, परन्तु वह अनाड़ी था। उसने बाल को पकड़कर जाल में फेंक दिया|


हम जिनकी सहायता करते हैं वे हमसे आगे निकल जाते हैं। हमने उनका कर्जा चुकाना है। हम ईश्वर की प्रार्थना क्यों करते हैं?ईश्वर जीवन मरण का अधिष्ठाता है। मरण जीवन मरण का अधिष्ठाता है। मरण जीवन का विराम चिन्ह है। नए जीवन की सूचना देता है। ईश्वर शुद्ध चेतना है कोई सामित शक्ति नहीं जो बादलों के पीछे सिंहासन पर बैठकर राज्य चलाता है। ईश्वर तो घट-घट में समाया है। वस्तुतः उत्तम चिंतन से प्रगति होती है धन से नहीं। हम ईश्वर के पास नहीं बैठते। हम विद्वानों, संतों तथा महापुरूषों के साथ, अन्तर्मन से नहीं जुड़ते। इन सब के लिए हमें पुरूषार्थी बनना होगा। प्रमाद पुरूषार्थ का शत्रु है। बेमोल कवि ने कहा है कि


अन बूढ़े बूढ़े, बूढ़े सो तरे।


इस विरोधाभास अलंकार में बताया गया है कि जो डूबता नहीं वह डूब जाता है और जो डूब जाता है वह पार हो जाता है अर्थात ईश्वर की प्राप्ति के लिए हमें उसके प्रेम में डूबना होगा तभी हम भवसागर पार कर सकते हैं।


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