हाथ में विचित्र शक्ति है
सूर्यपुत्री रश्मि दीदी
स्वचिंतन
भाग्यशाली बनने की कुंजी है आपके पास
कराग्रे वसते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती।
करमूले स्थिते ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्॥
हमारे ऋषि-मुनि, बड़े बुद्धिमान, साधक, वैज्ञानिक और दूरदर्शी थे। उन्होंने मानव शरीर आत्मा, जड़ चेतन और सम्पूर्ण प्रकृति को अच्छी प्रकार गहराई से जानकर, मानव जाति के विकास एवं कल्याण के लिए शत सहस्त्र सिद्धि प्रयोगों. विचित्र विधियों और वैज्ञानिक युक्तियों का आविष्कार किया था| उन्होंने मानव शरीर और प्रकृति को अच्छी प्रकार सैंकड़ों अनुसंधानों द्वारा समझा था। ऋषियों ने मानव की प्रातः से सायं तक की सम्पूर्ण दिनचर्या का विचित्र आविष्कार किया और सुबह से शाम तक की जाने वाली मुखशुद्धि, स्नान, संध्या, यज्ञ, व्यायाम, वस्त्रधारण, भस्म, तिलक धारण, अल्पाहार, भोजन, जलपान, उषापान, मूत्र त्याग, शयन आदि-आदि सम्पूर्ण क्रियाओं पर महत्वपूर्ण शोध करके संसार के समक्ष भारतीय जीवन को जीने की कला का चमत्कारपूर्ण विवरण उपस्थित किया है।
उपरोक्त सभी क्रियाओं और इनके पूर्व और पश्चात की जाने वाली विचित्र युक्तियुक्त क्रियाओं को मानव समाज के सम्पूर्ण विकास के निमित्त उपस्थित करके हमें उपकृत किया है। भाग्योदय की इच्छा हम सबको निरन्तर बनी रहती है और उसके लिए हम निरन्तर प्रयत्नशील भी हैं। किन्तु वैज्ञानिक ऋषियों ने भाग्यशाली बनने के लिए प्रातः सर्वप्रथम नींद खुलते ही अपने करदर्शन की महत्ता को प्रदर्शित किया है|
भाग्यवान बनने की इच्छा रखने वाले अर्थात जीवन में जोरदार उन्नति ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति के लिए नींद खुलते ही अपनी नासिका स्वर देखें अर्थात आपका स्वास प्रस्वास कौन सी नासिका से स्पष्ट चल रहा है, स्वर जानते ही जिस नासिका से आपका स्वास स्पष्ट चल रहा हो उसी उल्टे व सीधे हाथ का प्रथम दर्शन कर अपने मुख पर वही हाथ फेरें (मार्जन) करें और फिर दोनों हाथों का दर्शन करके अपने सम्पूर्ण मुखमंडल पर फेरें।
इस क्रिया को स्वर विज्ञान के द्वारा वैज्ञानिक दृष्टि से अच्छी प्रकार समझ कर हमारे सर्वतोमुखी विकास के निमित्त निश्चित किया गया है। वास्तव में इस क्रिया को निरन्तर प्रयोग करके देखने पर यह चमत्कारिक सिद्ध हुई। वेद के अण्ड-पिण्ड सिद्धान्तानुसार यह पिंडरूप शरीर सम्पूर्ण ब्रह्मांड का छोटा प्रतिरूप है जो विशिष्ठ दैविक शक्तियां इस समस्त ब्रह्मांड में कार्य कर रही हैं वही सूक्ष्मरूपेण इस मानव पिण्ड रूप शरीर को भी व्यवस्थित किए हुए हैं।
इन चन्द्र सूर्य स्वरों के उदय अस्त, विघटन परिवर्तन आदि के व्यापार से तत्वों का उदयास्त होता है और पंचतत्वों के इस आंदोलन से विभिन्न शक्तियों प्रकाशों (ओरा) तेजस आदि का उदय होता है।
वह भी प्रातः सायं तुरीय संध्या आदि के अवसरों पर विशेष रूप से होता है। विज्ञ पुरूष इस रहस्य को तत्वतः अच्छी प्रकार समझते हैं। प्रकृति के इस रहस्य को जानकर ही स्वर विज्ञानाचार्यों ने बताया, प्रातः संधि में मनुष्य का जो स्वर चल रहा हो उस हाथ से उस समय एक विशेष प्रकार का शक्तिशाली तेजस (विद्युत प्रवाह) प्रवाहित होता है। अतः उस समय उठते ही उस हाथ का प्रथम दर्शन करना और उसी हस्त से मुख मंडल का मार्जन करना, पश्चात दोनों हाथों का दर्शन मार्जन करने से कर्ता के मुख मंडल पर उस समय हाथों से निकलने वाले विशेष तेज (विद्युत प्रवाह) का प्रभाव अंकित हो जाता है। कुछ दिन की ऐसी साधना से साधक के चेहरे पर एक विशेष प्रकार का सौभाग्यशाली आर्कषण विद्यमान रहने लगता हैउस विद्युत प्रवाह 'तेजस' के चमत्कारी प्रभाव से नित्य के कार्य व्यापार में सामने वाले व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव होते देखा गया है। फलतः कार्यों में सफलता प्राप्त होती है \
कुछ विशेष
मेस्मिरेजम, प्राणविनियम, त्राटक और काला जादू के वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार भी मनुष्य की आंखों व हाथों से एक विशेष प्राणशक्ति, विद्युत तरंगें, जीवनी शक्ति (ओरा) निकलती रहती है।
समय विशेष व विशेष संकल्प भावना के साथ वह शक्ति बहुत अधिक रूप से हमारे हाथों व नेत्रों से और अधिक तीव्रता से निकलने लगती है और उस समय उसका प्रयोग स्वयं अपने पर या अन्य किसी पर भी किया जा सकता है।
इस शक्ति का प्रयोग नेत्रों से किसी को देखकर वा हाथों के द्वारा उसके शरीर पर पास मार्जन देकर अथवा स्पर्श मात्र से सभी कष्टों का निवारण किया जाना संभव है|
भारतीय दिनचर्या की प्रथम क्रिया 'कर दर्शन' इसी तथ्य पर आधारित है। आशीर्वाद देना भी इसी सिद्धान्त पर आधारित है। किन्तु आज हमें आशीर्वाद या शाप देना नहीं आता है। शाप व आशीर्वाद देने के समय दाता की शारीरिक, मानसिक तथा स्वर की स्थिति कैसी होनी चाहिए। हमारे आशीर्वाद और शाप का प्रभाव मानव शरीर के उपरोक्त वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और तात्विक रहस्य को ठीक-ठीक जाने बिना व्यर्थ होगाठीक स्वर के उदय से युक्त शारीरिक मुद्रा में और लक्ष्य के अनुरूप मानसिक स्थिति बनाकर कार्य करने पर अवश्य सिद्धि होती है। इसमें संदेह का तनिक भी सथान नहीं है। वस्तुतः हमारे प्राचीन मेधावी ऋषि गण इस विद्या का रहस्य अच्छी प्रकार जानते थे। इसलिए उनके द्वारा प्रदत्त प्राचीन भारतीय जीवन दर्शन के अनन्त रहस्य जन कल्याण के निमित्त बड़ी सरलता से नित्य क्रियाओं और धार्मिक क्रियाकलापों के रूप में बताये गये हैं। सभी सर्वसाधारण को प्रयत्न विशेष से उस रहस्य को जानकर अपना और साथियों का भाग्योदय करने में सहयोग करना चाहिए।
भाग्योदय के लिए हमें इस प्रयोग को नित्य आवश्यक करके देखना चाहिए| दिनचर्या के आरम्भ में ऐसा करने के साथ-साथ आपको अपने-अपने स्वधर्मानुसार उस पराशक्ति परात्पर परब्रह्म ईश्वर का नाम स्मरण करते हुए उसका ध्यान करना चाहिए| हरि ओम्!
THIS ARTICLE IS SUBJECT TO COPY RIGHT