कोरा कागज


कविता



कोरे कागज सा चित्त मिला


उमंगों कामनाओं


इच्छाओं के रंगों से सजा


कई रेखाएं ख्वाहिशों की खींच


केनवस पर बनी


तस्वीर का रूप ही बदल गया|


 


पल पल घटता गया


समझ ही नहीं पड़ा


पूरा रूप रंग


आकार बदल गया|


 


प्रभु ने बनाई अनोखे कागज की जिन्दगी


चिन्ताओं आशाओं से भरती रही जिन्दगी


फीके पड़े रंगों में भी वही रूप की अभिलाषा


जिन्दगी कुछ खोजती रही ऐसे


जैसे रफू हुए छिद्रों से कुछ न गिरने की आशा|


 


प्यासे को रेत में पानी की आशा


रफू जेब में द्वैत का कचरा


सड़ांध आई तो जागी निराशा


 


कोरे कागज पर काले अक्षर


आशाओं उच्छवासों भरे


हंसते रोते धुले अनधुले अक्षर


जिन्दगी की किताब बनी


तस्वीर की तरह पुरानी किताब की तरह|


 


पल पल घटते धुंधले हुए अक्षर


पृष्ठ कटे फटे पर अक्षर जुड़ते गए


बदल गए प्रसंग प्यार से


उन्हें सहेजने में लगा मन


आत्म स्वरूप मन तस्वीर के फीके पड़े रंग


अचेत मन उस पर झूमता रहा ऐसे


जैसे हिलती टहनी पर बसेरे में पक्षी झूम रहा।


आनन्द की तलाश में झूलता रहा।


 


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