संगीत : अनुपम कला
प्रसंग
भारत देश प्राचीन काल से ही संगीत प्रेमी रहा है। इस देश का कण-कण, पत्थर निर्जीव संगीत सागर में डुबकी लगाते रहे हैं। कोयल की मधुर ध्वनि, तोते की मधुर आवाज में नकल श्रोताओं को मुग्ध कर देती थी| एक राजा के पिंजरा खुले रहने पर दो तोते स्वतंत्र होकर वन में जा पहुंचे। एक तोता साधु की कुटिया में पलने लगा। उस तोते ने राजा के वहां आने पर साधु की वाणी की नकल करते हुए कहा- 'आइए पधारिए'। राजा ने उसे पहचान लिया और उस साधु का धन्यवाद करते हुए कहा- इसे मुझे सौंप दीजिए। कुछ दूर जाने पर एक डाकू की कुटिया में गया| राजा को देखकर डाकू की ध्वनि का अनुकरण करते हुए कहा- 'मारो, काटो, मारो, काटो।' राजा ने डाकू से तोता ले लिया| उसे मार्ग में सिखाते हुए कहा_
'राम राम राम राम, राम राम कहिए।' इस प्रकार संगीत में संगीत शिक्षक की मधुर व कटु वाणी का प्रभाव जीव पर पड़ता है। वस्तुतः इस देश का कण-कण, पत्थर, ईंट, निर्जीव, सजीव संगीत-सागर में डुबकी लगाते रहे। उसका अनुकरण करते हुए ऋषि-मुनि, आचार्य कवि भी संगीत शैली को अपनाकर अपनी रूचि के अनुसार संगीतबद्ध रचनाएं लिखते रहे। श्रृंगार में माधुर्य, वीर रस में शौर्य, करूण रस में ममता का भाव प्रकट करने लगे। कुल नव रस को साहित्य में स्थान मिला। इतना ही नहीं प्रकृति में भी संगीत समा गया। पेड़ के पत्तों में भी संगीत समा गया। वस्तुतः संगीत राष्ट्र और समाज की आत्मा बन गई। आज वीर रस से ओत-प्रोत राष्ट्रीय गीतों द्वारा देश को जागृत किया जा रहा है।
आधुनिक काल में अपने संप्रदाय को पृथक मानकर जन साधारण कई भागों में विभक्त कर रहे हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से कई वर्षों के पश्चात गुलामी से स्वतंत्र हुए हैं। दीर्घकाल तक परतंत्र रहने के कारण आज हम किसी भी परिस्थिति में आनन्द की अनुभूति को भूल गए हैं। आज रोगों से निवृत्त होने के लिए संगीत भी औषधि का कार्य कर सकता है। मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति संगीत द्वारा स्वस्थ हो सकता है। मीराबाई ने भजनों द्वारा कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की। चैतन्य प्रभु ने संगीत के माध्यम से जन-जन में भक्ति चेतना को जागृत किया।
इतना ही नहीं प्रकृति में भी संगीत समा गया। पेड़ के पत्तों में भी संगीत समा गया। वस्तुतः संगीत राष्ट्र और समाज की आत्मा बन गई। आज वीर रस से ओत-प्रोत राष्ट्रीय गीतों द्वारा देश को जागृत किया जा रहा है।
गांधी जी की रामधुन, श्री जयशंकर प्रसाद आदि साहित्यकारों ने देश की चेतना को जागृत कियास्वामी दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द ने भारत को अंधविश्वास से मुक्त कियाकालिदास के संगीत ने वीर रस से ओतप्रोत रचनाओं द्वारा शत्रुओं से विजय प्राप्त करने की क्षमता उत्पन्न की। श्रृंगार रस का प्रयोग सीमित करने से देश उन्नति के पथ की ओर अग्रसर होगाशिक्षा प्रचार व उसके प्रसार के लिए उदारता का प्रयोग आवश्यक है। वस्तुतः सच्चा कलाकार सर्वसाधारण का अभिभावक है। आज "वन्दे मातरम्" सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय गीत को सुशोभित कर रहा है। भारत के कितने शूरवीर राष्ट्र हित के लिए इन राष्ट्रीय गीतों को गाते हुए देश की बलि वेदी पर हंसते हुए चढ़ गए।
सत्य तो यह है कि "जन-गण-मन अधिनायक जय हो" को सरलता से गाया व समझा जा सकता है। बच्चे भी बड़ी सरलता से सीख जाते हैं।