शिक्षित एवं स्वावलंबी स्त्री का संकल्प
सम्पादकीय
सर्वप्रथम आप सभी सुधी पाठकों को शिक्षक दिवस, हिंदी दिवस एवं शारदीय नवरात्र की हार्दिक बधाई। ये शुभ संयोग है कि शिक्षक दिवस, हिंदी दिवस एवं शारदीय नवरात्र इसी महीने हैं। इन दिनों कश्मीर के बहाने हर जगह राष्ट्रवाद की चर्चा जोरों पर है। सोचिए कि यदि पूरे देश में हिंदी भाषा में शिक्षा अनिवार्य कर दी जाए और रोजगार की भाषा हिंदी हो जाए तो इससे बड़ा राष्ट्रवाद क्या होगा। शारदीय नवरात्र शक्ति के जागरण का काल है। हम सभी उन विशेष दिनों में शक्ति की उपासना करते हैं। स्त्री शक्ति की उपासना। क्या अच्छा हो कि हम समाज में स्त्री शक्ति को सशक्त करने के प्रयास करें। अभी-अभी हमने देखा कि श्रीमती सुषमा स्वराज हमें छोड़कर चली गई। उनके जाने से स्त्री शक्ति में एक असंतुलन पैदा हो गया है। सबको एक साथ जोडकर रखने की कला, चाहे आप कहीं भी हों। सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय में रहते हुए जिस तरह से आम लोगों की मदद की, उससे ऐसा लगता है कि यदि स्त्री शक्ति को सशक्त किया जाए, बराबरी का स्थान दिया जाए तो समाज का सही विकास हो पाएगा। ऐसा क्यों है कि स्त्री सशक्तिकरण के लिए उदाहरण याद करने पड़ते हैं? अभी जैसे कि पी वी सिंधू ने बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीता तो हम उन्हें याद कर रहे हैं। इस शिक्षक दिवस क्या हम यह प्रण ले सकते हैं कि लड़कों के साथ लड़कियों की शिक्षा पर भी उतना ही जोर देंगे? उन्हें भी लड़कों की तरह ही स्वावलंबी होने का एक नहीं कई मौके देंगे?
स्वावलंबी होने का एक नहीं कई मौके देंगे? याद रखें, यदि शिक्षा अधूरी रही और वह भी स्त्री शक्ति की, तो वह समाज पिछड़ा ही रहेगा। जागरुकता भी तभी आएगी। अभी प्रधानमंत्री जी ने आबादी पर नियंत्रण की अपील की। उन्होंने प्लास्टिक को प्रयोग से बाहर करने की भी अपील की। ये दोनों ही चीजें स्त्री सशक्तिकरण एवं स्त्री-जागरुकता से जुड़ी हैं। सोच कर देखें तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा। यदि स्त्री शिक्षित और स्वावलंबी होगी तो विवाह अवश्य ही अधिक उम्र में होगा और जब ऐसा होगा तो आर्थिक सीमाएं एक संतान पर रुकने को विवश करेंगी। अक्सर होता यह है कि नवविवाहित दंपत्ति को सोचने का अवसर ही नहीं मिलता अथवा विवाह के वक्त वे मानसिक तौर पर उतने परिपक्व नहीं हो पाते कि भविष्य की चुनौतियों को समझ पाएं। और इसलिए मेरा स्पष्ट मानना है कि यदि आबादी पर नियंत्रण चाहिए तो स्त्री को शिक्षित एवं स्वावलंबी होने में मदद कीजिए। प्रधानमंत्री जी की दूसरी अपील है- प्लास्टिक पर बैन लगाने की। गौर से सोचिए कि घर में बाजार से खरीददारी कौन करता है? पुरुष या स्त्री? जवाब मिल गया होगा। जब खरीददारी का जिम्मा स्त्री का है तो जागरूक भी उन्हें ही करना होगा। जब वे शिक्षित एवं स्वावलंबी होंगी तो प्लास्टिक पर प्रतिबंध के असर से निपट सकेंगी। क्योंकि आज की तारीख में प्लास्टिक के वैकल्पिक साधन महंगे हैं, इसलिए इस समस्या से निपटने के लिए आर्थिक स्वावलंबन चाहिए। खासकर स्त्री का। इस पर सोचने से ज्यादा एक्शन का वक्त आ गया है...
ॐ पूर्णमिदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमदुच्चते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते
जय श्री कृष्ण!
मुख्य संपादक,
ओम आध्यात्मिक पत्रिका