योग आसन

सर्वांगासन 


           


सर्वांगासन का शब्दशः अर्थ है- शरीर के सभी अंगों के लिए काम करने वाली स्थिति।


योगासनों में शरीर को विपरीत स्थिति में रखने वाले अत्यन्त लाभदायक आसनों में से यह एक आसन है। सभी विपरीत स्थिति वाले आसन शरीर के विविध अंगों पर गुरूत्वाकर्षण द्वारा आने वाले प्रभावों को परिवर्तित करते हैं और सर्वांगासन में तो बहुत सारे अंग इसका लक्ष्य बनते हैं। 


सर्वांगासन रक्ताभिसरण का स्तर बढ़ाकर उसे सही करने में मदद करता है। यह आसन शरीर के निचले अंगों में बहने वाले रक्तप्रवाह को दिल की तरफ मोड़ देता है। इस आसन में रक्त का टांगों पर आने वाला दवाब कम होने से और टांगों की शिराओं में रूका हुआ रक्त प्रवाह दिल की तरफ बहने से यह आसन अपस्फीत शिराओं  के रोगों को रोकता और कम करता है|


विपरीत स्थिति वाले योगासनों में फेफड़ों के ऊपरी हिस्से में ऑक्सीजन प्रविष्ट होने से फेफड़े स्वस्थ और शक्तिशाली होते हैं। साधारणतः दिल को रक्त के प्रवाह को ऊपर मस्तिष्क में भेजने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। सर्वांगासन में रक्त-प्रवाह सीधा मस्तिष्क की तरफ प्रवाहित होने से दिल को विश्राम मिलता है।


शीर्षासन



दूसरा महत्वपूर्ण आसन है- शीर्षासन। जो काम दस मिनट तक सर्वांगासन करने से होगा, वही काम चार मिनट शीर्षासन करने से होगा। चार मिनट का शीर्षासन आपको सर्वांगासन के दूरगामी लाभ दे सकता है। देखिये, आसन का लाभ तभी है, जब आप उसमें ठहरेंगे। अगर आसन की स्थिति से जल्दी बाहर निकलें तो कुछ असर नहीं होगा |


यह हर आसन के बारे में कहा जा सकता है। विशेषकर सजगता से श्वास की लयबद्धता के साथ आसन करें, तो उससे इन महत्वपूर्ण ग्रन्थियों को अधिक मात्रा में प्राण-ऊर्जा प्राप्त होती है। अगर आप किसी आसन की स्थिति में बिना सहारे ठहर कर सामान्य गहरी श्वास ले सकें और उस स्थिति में शरीर और मन के प्रति पूर्ण सजग हो सकें, तो उसका गहरा प्रभाव संबंधित ग्रंथियों पर आता है और प्राण ऊर्जा भी अधिक मात्रा में उन तक पहुंचती है। अधिक समय तक गहरा श्वसन करना माने रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा को भी बढ़ाना और जीव कोशिकाओं द्वारा छोड़े गये कार्बनडाइऑक्साइड के निकास की मात्रा को भी बढ़ाना| श्वास जितना अधिक गहरा लिया जाये ऑक्सीजन उतना ही अधिक मात्रा में भीतर पहुंचता है| परिणामस्वरूप रक्त में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा कम होने लगती है। जब हम साधारण श्वास लेते हैं, तो गुरूत्वाकर्षण की वजह से फेफड़ों के नीचे के हिस्से में तो ऑक्सीजन मिल जाती है,जबकि ऊपरी हिस्से को नहीं मिलतीफेफड़ों के ऊपरी हिस्से को ऑक्सीजन तभी मिल पाती है जब हम गहरा श्वास लेते हैंजब साधारण श्वास के साथ वायु भीतर जाती है, तो श्वास नली से होती हुई वायु फेफड़ों तक पहुंच जाती है। फेफड़ों में सूक्ष्म थैलियों के समूह होते हैं, इन्हें 'एलवियॉली' कहते हैं। यहां ऑक्सीजन और कार्बनडाइऑक्साइड का लेन-देन होता है। भीतर ली हुई वायु में से ऑक्सीजन एलवियॉली में छोड़ी जाती है और कोशिकाओं द्वारा छोड़ी हुई कार्बनडाइऑक्साइड उच्छ्वास द्वारा बाहर निकाली जाती है। हमारी चौथी ग्रन्थि है- चुल्लिका (जलतवपक) ग्रन्थि। इसे अवटु ग्रन्थि भी बोलते हैं। इसका आकार तितली जैसा होता है। जैसे तितली के दो पर होते हैं, वैसे ही इसके दायां और बायां, ऐसे दो हिस्से हैं। यह कंठ प्रदेश में स्थित होती है। पर्याप्त ऑक्सीजनयुक्त रक्त के अभाव में कुछ समय बाद इस ग्रन्थि की कार्यक्षमता क्षीण हो जाती है। सर्वांगासन की क्रिया ऑक्सीजन से युक्त और स्वास्थ्यपूर्ण रक्त को सीधे गले में प्रवाहित कर इस ग्रन्थि को बलवान और सशक्त बनाती है |


जब आप सर्वांगासन करते हैं, तो आपकी ठोडी छाती से लगने से श्वास नली (Trachea) के हिस्से में सबसे अधिक दबाव आता है। यहीं आपकी चुल्लिका ग्रन्थि स्थित हैसर्वांगासन में थायरॉयड ग्रन्थि का पोषण करने वाले और उसकी कार्यक्षमता को धीरे-धीरे सामान्य तौर पर सक्रिय कराने वाले ऑक्सीजनयुक्त रक्त की आपूर्ति होती है। और इस ग्रन्थि से होने वाले 'टी-3, टी-4 और टी-एस.एच' नामक हॉर्मोन्स के स्त्राव संतुलित होते हैं। ये हॉर्मोन्स शरीर के मैटाबॉलिज्म को नियंत्रित करते हैं |


'मैटाबॉलिज्म' यह 'कैटाबॉलिज्म' और 'ऐनाबॉलिज्म' इन दोनों क्रियाओं का समन्वय हैकैटाबॉलिज़्म माने ऊर्जा की निर्मित करते हुए बड़े अणुओं का सूक्ष्म परमाणुओं में विघटित करने की प्रक्रिया और ऐनाबॉलिज्म माने इन सूक्ष्म अणुओं में से जीवनोपयोगी संयुक्त अणुओं का निर्माण करने की प्रक्रिया। सरल शब्दों में कहा जाये तो, शरीर में पुराने जीवकोश मरते रहते हैं|पुराने जीवकोश मरते रहते हैंऔर नये जीवकोश बनते रहते हैंजीवकोशों के मरने की प्रक्रिया को कैटाबॉलिज्म कहते हैं और उनके बनने की प्रक्रिया को ऐनाबॉलिज्म कहते हैं. और इन दोनों की संयुक्त प्रक्रिया को मैटाबॉलिज्म कहते हैं। थायरॉइड ग्रन्थि मैटाबॉलिज्म का नियंत्रण करती है। ये ग्रन्थियां अपने आपसे तो सक्रिय नहीं हो सकती।


फिर इन ग्रन्थियों को कौन चलाता है? इनको चलाती है पीनियल, पिट्यूटरी और हाइपोथेलेमस ग्रन्थियां। जब थायरॉइड ग्रन्थि का कार्य बिगड़ जाता है, तो उससे निकलने वाले टी-3, टी-4, टी.एस.एच हॉर्मोन्स के स्त्रावों की मात्रा बढ़ जाये तो उस स्थिति को हाइपरथायरॉयडिज़म कहते हैं। इसमें शरीर सूख जाता है, कमजोरी आती है, चमड़ी सूख जाती है, ताकत खत्म हो जाती है, बेतहाशा भूख लगती है, परन्तु खाया हुआ अन्न मरीज को पोषण नहीं दे पाता। दिन-ब-दिन कमजोरी बढ़ती जाती है और बाल गिरने लग जाते हैं। शरीर में बहुत सी प्रत्यूर्जताएं (Allergies) पैदा हो जाती है। और रोग प्रतिकारक शक्ति क्षीण हो जाती है।


इसके विपरीत अगर इस ग्रन्थि निकलने वाले हॉर्मोन्स के स्त्रावों अवरोध निर्माण हो जायेहाइपोथायरॉयडिज़म के लक्षण होते हैं। हाइपोथायरॉयडिजम में त्वचा सूख जाती है, हाइपोथायरॉयडिजम में शरीर में आ जाती है, शरीर फूल जाता है उसको बार-बार मूत्र मार्ग में संक्रमण (Infection) होता रहता |आप   ही बताइये कि जिसको बार- बार मूत्र-मार्ग में संक्रमण होता रहेगा क्या वह बैठकर साधना कर पायेगा? हाइपोथायरॉयडिज़म में मरीज शरीर में ऊर्जा की कमी को महसूस करता है। जिसके शरीर में ऊर्जा नहीं, ऐसा व्यक्ति आत्यंतिक आलस में पड़ा रहता है। उसके पाचन संस्थान की कार्य प्रणाली गड़बड़ हो जाती है। नींद पूरी नहीं होती। नींद की पर्याप्त मात्रा की कमी के कारण पीनियल, पिट्यूटरी और हाइपोथेलेमस के कार्य में रूकावटें आती हैं। क्योंकि रात जब हम सोते हैं, तभी ये ग्रन्थियां अपना कार्य उत्तम प्रकार से कर सकती हैं। एक स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक सभी हार्मोन्स के स्त्राव रात में ही स्त्रवित होते हैं, इसलिए उत्तम स्वास्थ्य के लिए समय पर पर्याप्त मात्रा में नींद लेना महत्वपूर्ण है।


मात्रा में नींद लेना महत्वपूर्ण है। कभी तम दस बजे सोते हो, कभी रात बारह बजे सोते हो, कभी रात दो बजे। देर रात तक तुम खाते हो, पीते हो, बातें करते हो, घूमते रहते हो, फिल्म देखते हो या किताब पढ़ते हो; भले आध्यात्मिक किताब ही क्यों न हो! ये सारे काम तुम्हारे शरीर को आवश्यक विश्राम लेने नहीं देते। फिर शरीर रात्रि में होने वाले इन आवश्यक हार्मोन्स की पूर्ति के लिए पर्याप्त मात्रा में संबंधित ग्रन्थियों से स्त्राव कैसे निर्मित करेगा? परिणामतः तुम रोगों के शिकार बन जाओगे और न ही दुनिया का सुख ले पाओगे। न ही आध्यात्मिक उन्नति कर पाओगे। ऐसे ही खत्म हो जाओगे।


थायरॉयड ग्रन्थि आपके मैटाबालिज्म, खाये हुए अन्न में से पौष्टिक तत्वों का अवशोषण और सम्पूर्ण पाचन प्रणाली को नियंत्रित करती है। इसी थायरॉयड ग्रन्थि के बराबर नीचे एक और ग्रन्थि होती है, जिसे उपचुल्लिका या परावटु (Parathyroid) ग्रन्थि कहते हैं। सर्वांगासन, मत्स्यासन, सेतुबंधासन इन सभी आसनों द्वारा इसकी क्रियाशीलता अच्छे से बढ़ जाती है।


कोई थॉयरायड का रोगी अगर लम्बे समय तक हलासन, सुप्त-मत्स्यासन जैसे आसनों का अभ्यास करे, तो उसके पैराथायरॉयड का असंतुलन ठीक हो जायेगा। हलासन और सर्वांगासन थायरॉयड की कार्य-प्रणाली को सही करने में अत्यन्त लाभकारी है। थायरायड और पैरा थायरायड ये दोनों ग्रन्थियां परस्पर सामंजस्य के साथ कार्य करती हैं।


 पीनियल या पिट्यूटरी ग्रन्थियां थायरॉयड और पैरा थायरॉयड ग्रन्थियों को आदेश देती हैं। इन आदेशों का हाइपोथेलेमस द्वारा विश्लेषण होता है जिससे निद्रा, पाचन क्षमता इत्याति के लिए पर्याप्त हॉर्मोन्स के स्त्राव प्रभावित होते हैं।


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