चेतन आत्मा
शंका समाधान
चेतन आत्मा जड़ भूतों में किस तरह और क्यों प्रकट हो रही है?
प्रश्न- मैं ज्ञान मार्ग को पसंद करता हूं। परन्तु जब भी मैं 'अहं ब्रह्मास्मि सोहम्' का अभ्यास करने बैठता हूं तो उसी समय मेरे मन में यह शंका उठती है कि जब एक ही चेतन आत्मा है और दूसरी कोई वस्तु है ही नहीं, फिर वह चेतन देव किस तरह पांच भूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) जो कि जड़ है, बनकर प्रकट हो रहा है। जो कि प्रत्यक्ष है। (हरबंस लाल राली, पहाडगंज )
उत्तर- आपने दस प्रश्न लिखकर भेजे हैं जो कि बहुत ही अच्छे हैं। ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने में बड़ा आनंद आता है। प्रश्न-उत्तर का यह सिलसिला भी एक उत्तम सत्संग है, जिससे सत्संगियों को बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस बार आपके एक ही प्रश्न का उत्तर दिया जा रहा है। शेष प्रश्नों का उत्तर फिर देने का प्रयत्न करेंगे। इस प्रश्न के उत्तर में एक स्वप्न का उदाहरण ही बहुत है। जब आप सो जाते हैं और स्वप्न में आपको एक नई दुनिया दिखाई देती है पहाड़, दरिया, समुद्र, अग्नि, वायु, अनेक शरीर, मित्र-शत्रु, स्वर्ग-नरक, जड़-जगत्, चेतन जगत् अर्थात सब कुछ ही आपको दिखाई देता है। आप उनको वहां सत् समझ कर उनसे व्यवहार करते हैं। अनुकूल पदार्थों से सुख मानते हैं और प्रतिकूल पदार्थों से दु:ख भी मानते हैं|
स्वप्न में सांप से आप डरते हैं और मित्र बंधुओं से मिलकर आप प्रसन्न होते हैं| कैसी अद्भुत दुनिया बनाकर आप उसमें मग्न हो जाते हैं| हर प्रकार के सूक्ष्म भोगों को भोग कर आप सुख और शांति भी अनुभव करते हैं। यदि वहां आपको प्यास लगती है और आपको कोई शीतल जल पिला देता है तो आप उसके आभारी भी होते हैं। परन्तु प्यारे बंधुओ! थोड़ा विचार तो करो कि वस्तुतः स्वप्न की दुनिया को रचने वाला कौन है?
क्या यह सब तम्हारा ही रूप नहीं? केवल अपने आप को भूल कर और को देखने लगे हो| यदि वहां कोई और है तो जागने पर उसका प्रमाण दो|
इसी तरह जब आपको पूर्ण ज्ञान प्राप्त होगा, तो यह पंच भौतिक जगत् अपना ख्याल ही प्रतीत होगा| आपके ख्याल के अतिरिक्त यहां भी कोई दूसरा पदार्थ नहीं। परंतु इसकी समझ उस समय आएगी जब आप अपने स्वरूप (आत्मा) को जान जाएंगे| पर यह भी याद रखें कि स्वप्नावी जगत् में तो केवल पर्दा अज्ञान का ही होता है और यह आपके अपने ही ख्याल का चमत्कार होता है, परन्तु इस पंच भौतिक जगत् में परमात्मा की शक्ति (माया) और आपके अपने अज्ञान का पर्दा भी मिला होता है। यह जगत् ईश्वर के संकल्प से रचा गया है। इसलिए जब तक हम ईश्वरी माया का पर्दा और अपने अज्ञान का पर्दा दोनों ही का नाश नहीं करेंगे, हमें इस जगत् की वास्तविकता का ज्ञान नहीं होगा। और दोनों पर्दो से उठकर जब हम ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करेंगे तो यह संसार हमें अपनी आत्मा का ही विवर्त दिखाई देगा। जिस ज्ञान की प्राप्ति के आप इच्छुक हैं, उसका यही तो स्वरूप है कि 'मैं वह शुद्ध सच्चिदानंद हूं जहां 'मैं' और 'तू' का शब्द कहना नहीं पड़ता और जिसका विवर्त यह स्थूल जगत्, जागृत जगत् और सूक्ष्म स्वप्न जग् तथा मायावी (कारण) जगत् हैअर्थात् परमात्मा आप ही अपनी माया से हर रूप में दिखाई दे रहा है। मुझ ब्रह्म के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं है। मैं सत्, चित्, आनंद अपनी महिमा में विद्यमान हूं। व्यावहारिक भेद दिखाई देते हुए भी मुझमें वस्तुतः कोई भेद नहीं। जैसे लहरों से दरिया में भेद नहीं हो जाता, वैसे ही मैं सदा अखंड हूं।' इस दृष्टि और निश्चय का ही ज्ञान है।
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