ध्यान


स्वचिंतन 


प्रातः उठने उपरान्त ओंकार का ध्यान हर व्यक्ति को करना परम आवश्यक है।सर्वप्रथम शांत स्थिर  किसी भी आसन से अपने बिस्तर पर ही बैठकर हृदय में सूर्य जैसे तेजोमय प्रकाश में ॐ का ध्यान और मानसिक जप कुछ समय यथाशक्ति अवश्य करें। ऊँकार के जप और ध्यान की बहुत बड़ी महिमा शक्ति सामर्थ बताई गई है|


"ऊँकार परमं ब्रह्म सर्व मंत्रेषु नायकम्"


"मांगल्यं पावनं धर्म्य सर्वकाम प्रसाधनम्"


                              (योगी याज्ञवल्क्य)


ऊँकारस्य ब्रह्मविष्णु रूद्रस्वरूप मुक्तम्


                               (वाचस्पति)


                           


 ध्यान जप से साधक में नवशक्ति का संचार होता है। संपूर्ण दिन कार्य करने के लिए कर्ता में इस थोड़े ध्यान से शक्ति का संचार हो जाता है और आपके सभी कार्यों में बढ़ी हुई मानसिक शक्ति के प्रभाव से सफलता प्राप्ति में सहयोग होगा। सभी सर्वसाधारण को प्रयत्न विशेष से उस रहस्य को जान कर अपना और साथियों का भाग्योदय करने में सहयोग करना चाहिए। भाग्योदय के लिए हमें इस प्रयोग को नित्य प्रति आवश्यक करके देखना चाहिए| दिनचर्या के आरम्भ में ऐसा करने के साथ-साथ आपको अपने-अपने स्वधर्मानुसार उस पराशक्ति परात्पर परब्रह्म ईश्वर का नाम स्मरण करते हुए उसका ध्यान करना चाहिए।


ध्यान से स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा और सम्पूर्ण स्नायु मंडल को अभूतपूर्व शक्ति प्राप्त होकर साधक का विकास होगा|


उपरोक्त संक्षिप्त ध्यान साधना परा साधना के अंतर्गत आती है, इस पराध्यान साधना को अधिक समय और निरन्तर करने पर कई प्रकार की मानसिक यौगिक शक्ति का अवतरण होने की स्थिति बनती है।


इसी अभ्यास को त्रिकाल में करने पर और रात्रि में और अधिक करने से साधक में त्राटक शक्ति, प्राणविनियम शक्ति, सम्मोहन शक्ति तथा आकर्षण आदि दिव्य सामर्थ का उदय होकर आसपास के सभी लोगों को प्रभावित कर वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर अग्रसर होता है। यह क्रिया भारतीय नित्य कर्म का विशेष अंग मानी गई है। थोड़ा ध्यान करने के अनन्तर उठते ही कुछ शास्त्रोक्त प्रातः स्मरण सूक्त, स्तोत्र, मंत्र आदि का यथासमय पाठ करें।


उमाउषा च वैदेही रमा गंगेति पंचकम्।


प्रातरेव पठेन्नित्यं सौभाग्य वर्धते सदा॥


सोमनाथोः वैद्यनाथों धन्वन्तरि व्याधिस्तस्य न बाधते॥


हरं हरि हरिश्चन्द्र हनूमन्तं हलायुधम्पंचकं वै स्मरेनित्यं धोर संकट नाशनम्॥


हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥


विश्वानि देव सवितु दरितानि परासुवसद् भदं तन्नआसुव।


उपरोक्त मंत्रों, श्लोकों, सूक्तों, शब्दों में से कुछ का पाठ नित्य करें अथवा स्वाधर्मानुसार कुछ प्रभुनाम स्मरण अवश्य करें। 


ध्यान और मंत्र पाठ के उपरान्त पृथ्वी को नमस्कार करके जो नासिका स्वर उस समय चल रहा हो वही पैर पहले पृथ्वी को स्पर्श करें तो स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना गया है।


उस समय अपने गुरूजन, माता-पिता आदि पास हों तो हर व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि उनको नमस्कार (प्रणाम) कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।


गुरू जनों को नमस्कार करने का वैज्ञानिक तरीका हमारे शास्त्रों में बताया गया है। वस्तुतः अधिकतर सभी साधारण लोगों को नमस्कार करना नहीं आता। प्रणाम करने की विधिः प्रणाम करने के लिए कर्ता को अपने उलटे हाथ से सामने वाले व्यक्ति के उल्टे पैर को और सीधे हाथ से सीधे पैर को छूते हुए गुरूजनों को प्रणाम करना युक्तियुक्त होगा। ऐसा करने से हमारे सीधे हाथ से गुरूजन का सीधा पैर और उल्टे हाथ से उल्टा पैर ही स्पर्श होगाऔर ऐसा होने से सामने वाले पूजनीय व्यक्ति के शरीर से निकलने वाले विद्युत प्रवाह का ऋणात्मक और धनात्मक प्रभाव चरण स्पर्श करने वाले का कल्याण करने वाला सिद्ध होगा अन्यथा गलत तरीके से पैर छूने पर कोई प्रभाव न हो सकेगा। अपितु सामने वाले व्यक्ति की शक्ति अधिक होने पर तो कुछ हानि की संभावना हो सकती है। जैसे बिजली के ठंडे-गर्म तारों के आपस में मिल जाने पर कोई हानि होने की स्थिति बन सकती है। वस्तुतः हमारे धर्म में की जाने वाली प्रत्येक प्रक्रिया अपना एक जोरदार प्रभावकारी वैज्ञानिक स्वरूप रखती है। कालान्तर में हम सब उन क्रियाओं का वैज्ञानिक स्वरूप, गुण, रहस्य भूल चुके हैं किन्तु परम्परा के वश अपनी प्राचीन क्रियाओं में रहते हैं।


प्रातः उषा पान, जल-पान


प्रात:काल शैय्या त्याग के उपरान्त तत्काल साधारण मुख शुद्धि के साथ ही कम से कम एक पाव या आधा किलो जलपान करना सर्व प्रकार स्वस्थ्य की बुद्धि के लिए सहयोगी सिद्ध होगा। प्रातः मौसम के अनुरूप गरम अथवा ठंडे जल का प्रयोग करें। इससे उदर शुद्धि में बहुत बड़ी सहायता होती है। नेत्र ज्योति, स्मरण शक्ति, स्नायु मंडल और संपूर्ण शरीर के विकास में वृद्धि संभव होगी। कहते हैं कि प्रात:काल के समय जो व्यक्ति रोजाना आठ अंजलि जल पीता है वह रोगों, बीमारियों और बुढ़ापे से मुक्त हो जाता है। और वह सौ साल तक की आयु प्राप्त करता है। उषापान करने से मलमूत्र खुलकर साफ आते हैं। साहस उत्साह की वृद्धि होती है। शारीरिक उष्णता और काम विकार नष्ट होते हैं। प्रातः जलपान से उदर रोग, बवासीर, कुष्ठ, कब्ज, धातु रोग, मूत्र रोग, सिर दर्द, निर्बलता, नेत्ररोग तथा वात पित्त आदि से होने वाले अनेकों रोगों के होने की संभावना नष्ट हो जाती है।


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