कुतर्क (एक पागल औरत और उसका मुर्गा)

नीति कथाएँ



किसी गांव में एक सनकी महिला रहती थी। उसके यहां एक मुर्गा पला हुआ था। गांव के लोग उसे प्रायः चिढ़ाया करते थे और अपशब्द कहा करते थे जिससे उसे बहुत परेशानी होती थी। एक दिन उसने अपने पड़ोसियों से कहा, “आप लोग मुझे बहुत चिढ़ाते हैं और तंग करते हैं। यह ठीक नहीं है। मैं आपसे इसका बदला अवश्य लूंगी।"


 आरम्भ में ग्रामवासियों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया| महिला  ने पुनः कहा, “गांव वालों सावधान हो जाओ। मैं आप लोगों को इसका अच्छी तरह मजा चखाऊंगी।" 


वे बोले, “तुम क्या कर लोगी?"


उसने उत्तर दिया, “मैं इस गांव में सूर्योदय ही नहीं होने दूंगी।"


गांव वालों ने पूछा, “यह तुम कैसे करोगी?"


महिला ने कहा, "सूर्य तभी निकलता है जब मेरा मुर्गा बांग देता है। अगर आप लोग मुझे इसी तरह तंग और परेशान करते रहेंगे तो मैं मुर्गे को लेकर दूसरे गांव में चली जाऊंगी। तब आप के गांव में सूर्योदय न  हो सकेगा |


यह सच है कि जिस समय मुर्गा बांग देता था उसी समय सूर्योदय भी होता था। किन्तु मुर्गे का बांग देना सूर्योदय का कारण नहीं है। सनकी महिला वह गांव छोड़कर दूसरे गांव चली गई। इसमें उसने बहुत कष्ट उठाया। वहां जाकर मुर्गे ने बांग दी और सूरज भी निकला, लेकिन उस गांव में भी निकला जिसे वह छोड़ आई थी| इसी प्रकार हमारे मन की इच्छाओं की लिप्सा और लालसा की प्रकृति ही मुर्गे का बांग देना है और हमारी अभिलाषित वस्तुओं का हमारे सामने प्रकट होना सूर्योदय के समान है| अभिलाषित वस्तुओं की लिप्सा और लालसा को उत्पन्न करने वाला, नियंत्रित करने वाला और अधिशासित करने वाला एक ही सूर्य या अनन्त या आत्मन् है। सच्चा या नियामक सूर्य ही प्रातः संध्या, दिन और रात करता है, संसार के सभी कार्य इसी सच्चे आत्मन् के द्वारा नियंत्रित और अधिशासित होते हैं। यह आत्मन् मुर्गा अनन्त है। यह इन्द्रियों में व्याप्त है। कठपुतली की डोर खींचने वाले को सूर्यों का सूर्य, प्रकाशों का प्रकाश नचाता रहता है।


 लोग प्रायः इस सब का कारण तुच्छ, लालायित, क्षुधित स्वार्थी अपने अहं को मान लेते हैं। यह बड़ी भूल है। हमें इससे बचना चाहिए।


 निष्कर्षः- उच्च आत्मन् के गुणों को तुच्छ अहं में प्रतिपादित करना कुतर्क है|


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