महादेव की नगरी ‘उज्जैन'
धार्मिक यात्रा
महादेव की नगरी 'उज्जैन'
कर्मभूमि इन्दौर से धर्मभूमि उज्जैन की यात्रा
इन्दौर, मध्यप्रदेश के मालवा के पठार पर स्थित है। जहां पर्यटक घूमने के लिए जाते हैं। इन्दौर को मध्य प्रदेश का दिल भी कहा जाता है। यहां की नदियां, शांत झीलें, और बुलन्द पठार मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इन्दौर सड़क, रेल और वायु मार्ग के द्वारा भली भान्ति जुड़ा हुआ शहर है |
इस अंक में हम आपको इन्दौर से उज्जैन तक की यात्रा करवायेंगे। 'ओम' की कर्म भूमि से धर्म भूमि की यात्रा |
सभी जानते हैं कि पिछले कुछ महीनों से ओम् पत्रिका गूगल की नवलेखा परियोजना के अन्तर्गत ऑनलाइन हो चुकी है। ओम् की संपादक सूर्यपुत्री रश्मि मल्होत्रा के अथक प्रयत्नों से ओम् पत्रिका ऑनलाइन वेबसाइट पर बेहद पसन्द की जा रही है। इसी कुशलता को देखते हुए गूगल ने रश्मि मल्होत्रा जी को सम्मान देते हुए उन्हें इन्दौर में शुरू किए जाने वाले नए इवेंट में बतौर पेनलिस्ट आमंत्रित किया। जहां रश्मि जी को उन पत्रकारों को संबोधित करना था जो अभी तक केवल प्रिंट मीडिया तक सीमित थे। इन्दौर ओम् पत्रिका की कर्म स्थली थी जहां रश्मि जी ने 'ओम्' पत्रिका के बारे में, सन् 1935 से 2019 तक का सफर और फिर गूगल के साथ ऑफलाइन से ऑनलाइन का सफर बहुत बेहतरीन तरीके से पत्रकारों को समझाया। इस काम को समाप्त करने के बाद ओम् पत्रिका ने अपनी धार्मिक यात्रा आरम्भ की।
उज्जैन, मध्यप्रदेश, प्राचीन काल से ही एक धार्मिक नगरी की उपाधि से अलंकृत है। आज भी यहां भारी संख्या में दर्शन के लिए भक्त आते हैं| पवित्र शिप्रा नदी के किनारे बसा यह शहर अत्यन्त सुन्दर एवं पवित्र है।
इन्दौर से 80 कि.मी. की सड़क यात्रा से हम उज्जैन पहुंचे\ मौसम बहुत सुन्दर था। कहते हैं श्रावण के महीने में महाकाल के दर्शन करने करोड़ों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से सबसे अधिक विख्यात है क्योंकि यहां भक्तों को दक्षिणमुखी ज्योर्तिलिंग के दर्शन होते हैं। महाकालेश्वर मन्दिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित है। इसके ऊपरी हिस्से में चंद्रेश्वर मन्दिर है, नीचे ओंकारेश्वर मन्दिर और सब से नीचे गर्भ ग्रह में आपको महाकाल मुख्य ज्योर्तिलिंग के रूप में विराजित नज़र आते हैं। जहां गणेश जी, कार्तिकेय और माता पार्वती के भी दर्शन होते हैं। यहां एक कुंड भी है जहां स्नान करने से सभी कष्ट मिट जाते हैं। जब हम मन्दिर पहुंचे तब हमें पता चला कि गर्भ गृह में जाने के लिए स्त्रियों को साड़ी और पुरूषों को लुंगी पहनना अनिवार्य है। अन्यथा आप अन्दर जा कर ज्योर्तिलिंग पर जल नहीं चढ़ा सकते। गर्भ गृह में जाने के लिए समय भी निर्धारित है। जो आप पहले से पूछ कर जायें तो बेहतर है। अन्दर प्रवेश के लिए पर्ची भी कटती है जो कि मन्दिर ट्रस्ट द्वारा काटी जाती है।
महाकल की भस्म आरती भक्तो को सबसे दुर्लभ पलों का साक्षी बनाती है। इस दुर्लभ आरती में शामिल होने से कष्ट दूर हो जाते हैं| हर सुबह 4 बजे महाकाल की भस्म आरती से उनका श्रृंगार होता है और उन्हें जगाया जाता है। इसके लिए पहले शमशान से भस्म लाने की परम्परा थी परन्तु पिछले कुछ वर्षों से कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलता और बेल की लकड़ियों को जलाकर तैयार की गई भस्म को कपड़े से छानने के बाद इस्तेमाल किया जाने लगा है।
केवल उज्जैन में ही यह भस्म आरती देखने का सुनहरा अवसर मिलता है। दरअसल भस्म को सृष्टि का सार माना जाता है इसलिए महाशिव इसे धारण किए रहते हैं। ज्योर्तिलिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग दोष से भी मुक्ति मिलती है।
काल भैरव मन्दिर
उज्जैन में ही स्थित काल भैरव का मंदिर है | महाकाल के दर्शन के बाद हम प्राचीन कल भैरव मंदिर पहुंचे | मंदिर के बाहर दुकानों पर हमें फूल, प्रसाद, श्रीफल के साथ-साथ वाइन की छोटी-छोटी बोतलें भी सजी नज़र आईं। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, जान पाते, उससे पहले ही हमारे सामने कुछ श्रद्धालुओं ने प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की बोतलें भी खरीदीं। जब हमने दुकानदार से इस बारे में बातचीत की तो उन्होंने बताया कि बाबा के दर पर आने वाला हर भक्त उनको मदिरा (देशी मदिरा) चढ़ाता है | बाबा के मुंह से मदिरा का कटोरा लगाने के बाद मदिरा धीरे-धीरे गायब हो जाती है। मन्दिर में भक्तों का तांता लगा हुआ था। हर भक्त के हाथ में प्रसाद की टोकरी थी। इस टोकरी में फूल और श्रीफल के साथ-साथ मदिरा की एक छोटी बोतल भी जरूर नज़र आ जाती थी। अन्दर का दृश्य बेहद निराला था। भैरव बाबा की प्रतिमा के पास बैठे पुजारी गोपाल महाराज कुछ मंत्र बुदबुदा रहे थे। इतने में ही एक भक्त ने प्रसाद और मदिरा का चढ़ावा चढ़ाया। पंडित जी ने मदिरा को एक छोटी प्लेट में निकाला और बाबा की मूरत के मुंह से लगा दिया...और यह क्या.....भोग लगाने के बाद प्लेट में मदिरा की एक बूंद नहीं बचीतांत्रिक मन्दिरः काल भैरव का यह मन्दिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मन्दिर है। वाम मार्ग के मन्दिरों में मांस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाये जाते हैं। प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहां तांत्रिक क्रियाएं करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का भोग भी चढाया जाता था। कालान्तर में ये मन्दिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूँ ही जारी रखा|
अब यहां जितने भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं। मन्दिर के पुजारी गोपाल महाराज बताते हैं कि यहां विशिष्ट मंत्रों के द्वारा विशिष्ट मंत्रों के द्वारा बाबा को अभिमंत्रित कर उन्हें मदिरा का पान कराया जाता है, जिसे वे बहुत खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं। कालभैरव के दर्शन करने के पश्चात हम कालिका माता के प्राचीन मन्दिर गढ़ कालिका गए। वहां हमने मां की आरती गाई तथा कथा सुनी।
this article is subject to copy right