मनोवृत्ति
डेविड एवं गोलियत की कहानी
बाइबिल की एक कहानी काफी प्रसिद्ध है। एक गांव में गोलियत नाम का एक राक्षस था। उससे हर व्यक्ति डरता था एवं परेशान था। एक दिन डेविड नाम का भेड़ चराने वाला लड़का उसी गांव में आया जहां लोग राक्षस के आतंक से भयभीत थे। डेविड ने लोगों से कहा कि आप लोग इस राक्षस से लड़ते क्यों नहीं हो? तब लोगों ने कहा, “वो इतना बड़ा है कि उसे मारा नहीं जा सकता।"
डेविड ने कहा- “आप सही कह रहे हैं कि वह राक्षस बहुत बड़ा है। लेकिन बात ये नहीं है कि बड़ा होने की वजह से उसे मारा नहीं जा सकता, बल्कि हकीकत तो ये है कि वह इतना बड़ा है कि उस पर लगाया निशाना चूक नहीं सकता।" फिर डेविड ने उस राक्षस को गुलेल से मार दिया। राक्षस वहीं था, लेकिन डोविड की सोच अलग थी |
कौन से रंग का चश्मा पहना है?
जिस तरह काले रंग का चश्मा पहनने पर हमें सब कुछ काला और लाल रंग का चश्मा पहनने पर हमें सब कुछ लाल ही दिखाई देता है उसी प्रकार नेगेटिव सोच से हमें अपने चारों ओर निराशा, दुख, और असंतोष ही दिखाई देगा और पॉजिटिव सोच से हमें आशा, खुशियां एवं संतोष नज़र आएगा। यह हम पर निर्भर करता है कि सकारात्मक चश्मे से इस दुनिया को देखते हैं या नकारात्मक चश्मे से| अगर हमने पॉजिटिव चश्मा पहना है तो हमें हर व्यक्ति अच्छा लगेगा और हम प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई खूबी ढूंढ ही लेंगे। लेकिन अगर हमने नकारात्मक चश्मा पहना है तो हम बुराइयां खोजने वाले कीड़े बन जायेंगे|
नकारात्मक से सकारात्मक की ओरः
सकारात्मकता की शुरूआत आशा और विश्वास से होती है। किसी जगह पर चारों ओर अंधेरा है और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा|और वहां पर अगर हम एक छोटा सा दीपक जला देंगे तो उस दीपक में इतनी शक्ति है कि वह छोटा सा दीपक चारों ओर फैले अंधेरे को एक पल में दूर कर देगा। इसी तरह आशा की एक किरण सारे नकारात्मक विचारों को एक पल में मिटा सकती है| नकारात्मकता को नकारात्मकता समाप्त नहीं कर सकती, नकारात्मकता को तो केवल सकारात्मकता ही समाप्त कर सकती है। इसीलिए जब भी कोई छोटा सा नकारात्मक विचार मन में आये उस उसी पल सकारात्मक विचार में बदल देना चाहिए।
उदाहरण के लिए अगर किसी विद्यार्थी को परीक्षा से 20 दिन पहले अचानक ही यह विचार आता है कि वह इस बार परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाएगा तो उसके पास दो विकल्प हैं- या तो वह इस विचार को बार-बार दोहराए और धीरे-धीरे नकारात्मक पौधे को एक पेड़ बना दे या फिर उसी पल इस नेगेटिव विचार को पॉजिटिव विचार में बदल दे और सोचे कि कोई बात नहीं अभी भी परीक्षा में 20 दिन यानि 480 घंटे बाकी है और उसमें से वह 240 घंटे पूरे दृढ़ विश्वास के साथ मेहनत करेगा तो उसे उत्तीर्ण होने से कोई रोक नहीं पना सकता। अगर वह नेगेटिव विचार को सकारात्मक विचार में उसी पल बदल दे और अपने पॉजिटिव संकल्प को याद रखे तो निश्चित ही वह उत्तीर्ण होगा।
सकारात्मक सोच की शक्ति
सकारात्मक सोच के बिना जिदगी अधूरी है। सकारात्मक सोच की शक्ति से घोर अंधकार को भी आशा की किरणों से रोशनी में बदला जा सकता है| हमारे विचारों पर हमारा स्वयं का नियंत्रण होता है। इसलिए यह हमें ही तय करना होता है कि हमें सकारात्मक सोचना है या नकारात्मक।
हर विचार एक बीज है
हमारे पास दो तरह के बीज होते हैं सकारात्मक विचार और नकारात्मक विचार है, जो आगे चलकर हमारे दृष्टिकोण एवं व्यवहार रूपी पेड़ का निर्धारण करता है। हम जैसा सोचते हैं वैसा बन जाते हैं इसलिए कहा जाता है कि जैसे हमारे विचार होते हैं वैसा ही हमारा आचरण होता है।
यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दिमाग रूपी जमीन में कौन सा बीज बोते हैं। थोड़ी सी चेतना एवं सावधानी से हम कांटेदार पेड़ को महकते फूलों के पेड़ में बदल सकते हैं|