निति कथायें

                      आत्मा


                                      सब में सब कुछ है


                         


वार्तालाप करने वालों में डॉक्टर जॉनसन शिरोमणि माना जाता था। उससे तर्क में पार पाना बड़ा कठिन काम था। एक तो उसके वाक्बाण का निशाना कभी चूकता ! ही न था, यदि चूक भी जाए तो भी वह येन-केन प्रकारेण वाक-युद्ध में प्रतिपक्षी ! को चित्त कर देता था। संक्षेप में यह वाद-विवाद में प्रतिद्वन्द्वी को चुप किये - बिना कभी भी न हटता था। ऐसे डॉक्टर जॉनसन ने एक दिन स्वप्न में बकरे से अपने को परास्त होते देखा। जॉनसन जैसे * चरित्र के मनुष्य के लिए यह स्वप्न बड़ा ही भयंकर था। वह उठ बैठा, उसे बड़ी बेचैनी हुई, वह फिर न सो सका। किन्तु - मन अपनी प्रकृति-अपनी दैवी प्रकृति के अनुसार अधिक काल तक खिन्न नहीं रह सकता था। डॉक्टर जॉनसन को भी अपने को काबू में लाना पड़ा किसी न किसी तरह उसे अपने को शांत करना पड़ा। वह  अपने को धीरज देने लगा| फिर उसने विचार किया और इस नतीजे पर पहुंचा कि बकरे की युक्तियाँ भी मेरे ही मन की - उपज है। असली बकरे व उनके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जानता है, वास्तव में मैंने खुद ही अपने सामने बकरे के रूप में उपस्थित होकर अपने को नीचा दिखाया| है। बस, संसार के द्वैत के विषय में वेदान्त का ऐसा ही सिद्धान्त है। इसी प्रकार तुम . स्वयं ही अपने सामने भूतों, प्रेतों, शत्रुओं, मित्रों, पड़ोसियों, झीलों, नदियों, पहाड़ों के रूप में प्रकट होते हो|


. स्वप्नों में तुम नदियाँ और पहाड़ देखते हो। यदि वे तुमसे सचमुच बाहर हों, तो बिछौने को नदी के जल से भरपूर हो जाना चाहिए और तुम्हें दिखाई पड़ने वाले पहाड़ों के बोझ से तुम्हारे कमरे को तुम्हारे पलंग के साथ तुम्हें दबकर चकनाचूर हो जाना चाहिए। वास्तव में वे विशाल पर्वत और बढ़ते हुए नद सब तुम्हारे भीतर हैं। तुम अपने आपको दो भागों में बांट लेते हो, एक ओर तुम बाहरी व्यापारों के रूप में प्रकट होते हो और दूसरी ओर तुम्हीं उन पर क्षुद्र विचार करने वाले कर्ता बने हो। वास्तव में कर्ता भी तुम्ही हो और कर्म भी तम्हीं हो। तुम ही सुन्दर गुलाब हो और प्रेमी बुलबुल भी तुम ही हो। तुम फूल हो ओर भौंरा भी तुम हो| हर एक चीज तुम हो। भूत और प्रेत देवता और देवदूत, पापी और महात्मा, सब तुम ही हो। इसे जानो, समझो, अनुभव करो ओर तुम मुक्त हो| यह है सन्यास (त्याग) का मार्ग अपना केन्द्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरे खाते रहोगे। अपना पूर्ण विश्वास अपने में रखो, सदैव अपने केन्द्र में स्थित रहो, फिर तम्हें कोई भी चीज न हिला सकेगी:|



निष्कर्षः- बाहरी वस्तुएं तुम्हें उसी समय तक प्रतिकूल जान पड़ती हैं जब तक तुम उनमें एकता का अनुभव नहीं करते। जिस क्षण तुम उनके साथ अपनापन महसूस करोगे उनसे तुम्हें शान्ति और सुख प्राप्त होने लगेगा।



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