योगासन का ग्रन्थियों पर प्रभाव
भाग २
योगासन का ग्रन्थियों पर प्रभाव
दोनों गुर्दो के ठीक ऊपर 'ऐड्रिनलीन' नामक हॉर्मोन को स्त्रवित करने वाली उपवृक्क ग्रंथियां होती हैं। यह ऐड्रिलीन नामक हॉर्मोन शरीर में होने वाली 'लडो या भागो' इन दो प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है। जब कभी संकट से आमना-सामना होता है, तो क्षण के सौंवे हिस्से से भी कम समय में हाइपोथेलेमस ग्रन्थि पूरे शरीर को यह 'लड़ो या भागो' का सन्देश देकर खुद की रक्षा करने का आदेश देती है। अगर कोई हिंसक जानवर या शत्रु सामने आये, तो तुम भाग कर छुटकारा पाने की कोशिश करोगे। यह निसर्गतः ही होगा। वहां तुम अन्य पर्यायों पर विचार करने के लिए रूकोगे नहीं, या रूकोगे? ऐड्रिनल ग्रंथि से स्त्रवित होने वाला ऐड्रिनलीन हॉर्मोन आपको आवश्यक प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार करता है। यही नियंत्रण प्रकृति ने आपके हाथ में दिया हुआ है|
जब आप क्रोधित हो जाते हैं, तब भी ऐड्रिनलीन हॉर्मोन स्त्रवित होता है। हालांकि उस समय तो उसकी ज़रूरत ही नहीं होती है, क्योंकि तब आपने किसी संकट से भागना नहीं होता है। पर यदि हम देखें तो क्रोध व्यक्ति में सामने वाले को दंडनीय पीड़ा देने की इच्छा को प्रवृत्त करता है; और अगर उसे लगे कि सामने वाला मुझसे ज्यादा बलशाली है, तो वह शायद भागना भी चाहेगा।
यह जरूरी है कि ऐड्रिनल ग्रन्थि की कार्यप्रणाली सही हो। इसके लिए तुम्हें अपने दिमाग को ठंडा रखना पड़ेगा और योगासन करने होंगे। पश्चिमोत्तानासन, जानुशिरासन, पवन मुक्तासन, शशांकासन, मण्डूकासन, मयूरासन, धनुरासन, सर्पासन, और उष्ट्रासन इन सभी । आसनों से हमारे निचले पेट पर दबाव आता है और ऐड्रिनल ग्रन्थि का कार्य सुचारू हो जाता है।
ऐसी स्थिति में भी ऐड्रिनल ग्रन्थि सक्रिय होकर ऐड्रिनलीन को स्त्रवित करती है। मान लो, आप गुस्से में जलते हुए लड़ने के लिए तैयार होकर किसी के घर गये, पर देखा कि घर पर ताला लगा हुआ है। ऐड्रिनलीन हॉर्मोन सारे बदन में दौड़ रहा है, सारा बदन तनाव में है। तुम्हारे स्नायु भी तनाव में हैं। उस घर के द्वार पर एक भयंकर अल्सेशियन कुत्ता उग्रता से भौंक रहा है। ऐसे में तुम्हारे भीतर की आवाज़ तुम्हें भाग जाने के लिए सूचित करती हैं, अन्यथा वह कुत्ता आपकी बोटियों को फाड़ देगा| आप एक शब्द बोले बिना दुम दबाकर घर वापिस आते हो। इसी में समझदारी है। अब इस पूरे प्रसंग में जो ऐड्रिनलीन हॉर्मोन स्रावित होकर तुम्हारे रक्त प्रवाह में घुल चुका है, उसका क्या करोगे? वह तो अपने घातक परिणाम दिखायेगा ही। तुम गुस्से में तिलमिलताते हुए गये और कुछ कहे बिना वापिस आ गये। परन्तु आपका शरीर रक्त में छोड़े गये उस अनावश्यक ऐड्रिनलीन हॉर्मोन द्वारा होने वाले घातक परिणामों से अपना छुटकारा नहीं कर पायेगा न! इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि ऐड्रिनल ग्रन्थि का कार्य सामान्य रहे। मानों आप किसी कारणवश बदला नहीं ले पाये, गुस्सा जाहिर नहीं कर पाये, पर गुस्से को अन्दर रख लिया, तो ऐड्रिनल ग्रन्थि द्वारा जो स्त्राव रक्त में पहुंच गया होगा। उसका आपके शरीर में एक ऐसा जहर बन जाता है, जो स्वयं आपको ही नुकसान पहुंचाता है। इसलिए यह जरूरी है कि ऐड्रिनल ग्रन्थि की कार्यप्रणाली सही हो। इसके लिए तुम्हें अपने दिमाग को ठंडा रखना पड़ेगा और योगासन करने होंगे। पश्चिमोत्तानासन, जानुशिरासन, पवन मुक्तासन, शशांकासन, मण्डूकासन, मयूरासन, धनुरासन, सर्पासन, और उष्ट्रासन इन सभी आसनों से हमारे निचले पेट पर दबाव आता है, ऐड्रिनल ग्रन्थि का कार्य सुचारू हो जाता है।
स्त्रियों के शरीर में गर्भाशय में ठीक ऊपर बायीं और दायीं तरफ दो महत्वपूर्ण डिम्ब ग्रन्थियां उपयुक्त हॉर्मोन्स स्त्रवित करती हैं। जब स्त्री की माहवारी बंद हो जाती है तो धीरे-धीरे इन डिम्ब ग्रन्थियों में से अंडा और रज निकलना बंद हो जाता है। स्त्री का रज अथवा अंडा पुरूष के वीर्य द्वारा फलने से ही गर्भधारणा होती है। अगर माहवारी बंद होने के पहले या बाद में इन डिम्ब ग्रंन्थियों की कार्य प्रणाली में कोई खराबी आ जाये, तो स्त्री के शरीर की पूरी तंत्र प्रणाली बिगड़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप वज़न बढ़ना, चिड़चिड़ापन, नींद टूटना इत्यादि का सामना करना पड़ सकता है। कुछ महिलाओं में , अगर किसी कारणवश ऑपरेशन , में जब एक या दोनों डिम्ब ग्रन्थि , निकालनी पड़ती है, तो अधर्मोन्माद या कभी-कभी पूर्णोन्माद भी हो सकता है और स्वास्थ्य खतरे में आ जाता है। ऐसे किसी भी माले में आसन और प्राणायाम के अभ्यास से स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है और स्वास्थ्य में अच्छी तरह वृद्धि भी हो सकती है।
स्त्री के शरीर में डिमब ग्रन्थि बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसी तरह पुरूष की पुर:स्थ ग्रन्थियों से 'टेस्टोस्ट्रॉन' नामक हॉर्मोन की निर्मित होती है।
टेस्टोस्ट्रॉन की वजह से ही पुरूष में पुरूषत्व है इसकी मात्रा स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में बहत अधिक होती है स्त्रियों में माहवारी पैंतालीस से पचास और कभी-कभी बावन या कुछ मामलों में पचपन की आयु तक चलती रहती है| उसके बाद धीरे-धीरे हर माह उनका रक्त-स्त्राव कम होता है और धीरे-धीरे डिम्ब ग्रन्थियां पूरी तरह काम करना बंद कर देती हैं| स्त्री शरीर में डिम्ब ग्रन्थियों से निकलने वाले दो महत्वपूर्ण हॉर्मोन्स हैं 'प्रोजेस्ट्रॉन' और 'इस्ट्रोजन'। जब इनकी निर्मिति कम हो जाती है, तो स्त्री के शरीर में टेस्टोस्ट्रॉन की मात्रा बढ़ने लगती है। तब स्त्रियों के शरीर में और स्वभाव में भी पुरूषों जैसे लक्षण आने लग जाते हैं; जैसे चमड़ी का रूखापन, चेहरे पर बाल उग आना, स्वभाव में आक्रमकता इत्यादि |
आयु से संबंधित परिवर्तन जैसे स्त्रियों में आते हैं, वैसे ही पुरूषों में भी आते हैं। पैंतालीस से पचपन के बीच उनमें टेस्टोस्ट्रॉन की मात्रा कम होने लगती है। इसके कारण बढ़ती उम्र के साथ पुरूषों में स्त्रैण लक्षण आने लगते हैं। जिस पुरूष ने सारी ज़िन्दगी डंडा चलाया हो, बुढ़ापा आते-आते वह नरम हो जाता है। उसकी विवाद की प्रवृत्ति कम होने लगती है और वह शान्त होने लगता है। समझ लो, उसकी पति की भूमिका पत्नी की भूमिका के साथ परिवर्तित हो जाती है। उसमें स्त्रैण गुण आने लगते हैं, जैसे- कम बोलना, कम झगड़ा करना, कम आदेश देना। इसलिए नहीं कि वह बूढ़ा हो गया है, बल्कि इसलिए कि अब उसकी पीनियल, पिट्यूटरी, हाइपोथेलेमस, ऐड्रिनल इत्यादि अंत:स्त्रावीय ग्रन्थियों की कार्यक्षमता में बदलाव आ जाता है। शरीर की इन अंतःस्त्रावीय ग्रन्थिसयों का स्वास्थ्य ही शरीर को पुनः स्वस्थ बना सकता है|
पीनियल. पिट्यूटरी, हाईपोथेलेमस, थायरॉयड, ऐड्रिनल, स्त्रियों में डिम्ब ग्रन्थियां और पुरूषों में पुरःस्थ ग्रन्थियों के कार्य में जब अवरोध उत्पन्न हो जाये, तो सम्पूर्ण शरीर की कार्य-प्रणाली खतरे में आ जाती है|
ग्रन्थियां शरीर के भीतर छिपी हुई हैं और काम भी बहुत गहरा और बहुत महत्वपूर्ण करती हैं|