योगासन का मस्तिष्क पर प्रभाव

भाग ३


                योगासन का मस्तिष्क पर  प्रभाव 


ग्रन्थियां शरीर के भीतर छिपी हुई हैं और काम भी बहुत गहरा और बहुत महत्वपूर्ण करती हैं | इसलिये आपके योगाभ्यास में ऐसे सभी आसन होने चाहिये जिन योगासनों से आपके मस्तिष्क की तीनों महत्वपूर्ण ग्रन्थियां- पीनियल, पिट्यूटरी और हाइपोथेलेमस, गले की दो ग्रन्थियां- थायरॉयड और पैरा- थायरॉयड, पेट की ऐड्रिनल ग्रन्थि, आंतों में स्थित ऐड्रिनल ग्रन्थि, आंतों में स्थित छोटी-छोटी असंख्य ग्रन्थियां और पुर:स्थ या डिमब ग्रन्थियां इन सभी को शक्तिशाली बनाकर उनके कार्य में सुधार आता हो। इनमें से एक भी ग्रन्थि का कार्य अगर ठीक से न चले, तो न केवल शरीर अस्वस्थ होगा, बल्कि तुम्हारे मन को भी अस्वास्थ्य का सामना करना पड़ेगा|


अब देखो न, हमारे शरीर की रचना कैसी अद्भुत है! इसमें एक-एक अंग की आकृति कैसे नाप-तोल कर वैशिष्ट्यपूर्ण ढंग से कुशलता के साथ बनायी गयी है। हर अंग की रचना, आकार और कार्य-प्रणाली उचित और विशिष्ट हो। त्वचा के इस ऊपरी कवच के कारण ही हम शरीर के भीतर झांक नहीं सकते। परन्तु सच बात तो यह है कि अगर त्वचा को हटा कर मांसपेशियों को अलग किया जाये, तो वह कोई देखने योग्य दृश्य नहीं होगा। देखने वाले को घबराहट हो जायेगी कि यह है क्या?


 यह हमारा शरीर एक बड़ी अजीब और आश्चर्यकारक वास्तविकता है। जब तुम कुछ खाते हो, तो वह अन्न नली से होते हुए नीचे आमाशय में जाता है। यहां पर वह अच्छी तरह मथा जाता है। फिर वह छोटी आंत में चला जाता है। यहीं पर गुर्दो और अग्नाशय के द्वारा एंजाइम का स्त्राव होता है। आंतों में भोजन पचता है और भोजन में से पौष्टिक तत्वों का रक्त में अवशोषण होता है। फिर आखिर में फेंकने योग्य सामान बड़ी आंत में धकेला जाता है, जो अन्त में गुदा द्वार से बाहर आता है।


हालांकि पेट के इस सम्पूर्ण कार्य में और शरीर में होने वाली बाकी अंदरूनी घटनाओं में किसी को कुछ रूचि है या नहीं। तुम्हारी रूचि तो केवल एक जीभ के स्वाद पर ही केन्द्रित होकर रह गई है।


स्वाद तो केवल जीभ ही को आता है। लेकिन स्वादिष्ट खाना मुंह में ज्यादा देर नहीं रहता। क्या तुम्हें मालूम है कि तुम ज्यादा क्यों खाते हो? तुम्हारे मुंह में खाना ज्यादा देर न टिकने के कारण तुम अपनी जीभ के स्वादांकुरों को संतुष्ट नहीं कर पाते हो पाते होइसलिए तुम जल्दी-जल्दी खाना लूंसते जाते हो। तुम यह भूल ही जाते हो कि अगर खाना स्वाद के लिए खा रहे हो तो उसे मुंह में रखो तो सही! स्वाद मुंह में आता है, पेट में नहीं। परन्तु तुम्हारे लालच के परिणामस्वरूप तम बस अपने पेट को खराब कर लेते हो|


यह जो हमारा आमाशय है, इसकी भी बड़ी अजीब कहानी है, बड़ा लचीला है यह। इसको आकार में चाहे जितना बड़ा कर लो. चाहे छोटा कर लो। तम अगर अपने कटे हुए पेट को देखोगे, तो घृणा से तुम्हारा वैराग्य उत्पन्न हो जाएगा। कैसा गंदा होता है यह शरीर भीतर से! है क्या इसके अन्दर भरा हुआ? गुरबानी में आया है-


'हाड़ मास नाड़ी को पिंजरू पंखी बसै बिचारा।'


हड्डी और मांस के बने  इस पिंजरे में एक बेचारा प्राण रूपी पक्षी फंसा हुआ है। सबसे पहले आपको इस शरीर और उसकी भौतिक बनावट को समझना चाहिए। फिर आवश्यक अनुशासित, उचित व्यवहार और आवश्यक तनावरहित विश्राम प्राप्त करने में सहायक होने वाले आकृतिबंध के आधार पर स्वस्थ और अर्थपूर्ण जीवन की पक्की नींव रखनी चाहिए। यही आपको एक संतुलित और संयमित जीवन जीने में सहायक होगा। अति महत्वपूर्ण कार्य करने वाली शरीर की तीन ग्रन्थियां, मस्तिष्क में हैं। इसी वजह से चेतना का आसन भी शरीर के सर्वश्रेष्ठ अंग मस्तिष्क में ही है। इसलिए  सद्गुरू के चरणों में दंडवत् प्रणाम करने की परम्परा चलती आ रही है। यह सद्गुरू के प्रति पूर्ण समर्पण का चिन्ह है। इसके पीछे यह भी धारणा है कि जब सद्गुरू के चरणों पर सिर रखा जाता है तो शिष्य को सद्गुरू से आत्मिक उन्नति में सहायक होने वाली बहुत सारी आध्यात्मिक ऊर्जा-तरंगों की प्राप्ति होती है। हाल ही में एक अनुसंधान का आयोजन किया गया था। इसमें एक व्यक्ति के मस्तिष्क के दायें हिस्से में चुंबकीय उत्तेजना दी गई। अगले एक घंटे तक उस व्यक्ति ने कलात्मक गुणवत्ता के जागरण का अनुभव किया। ऐसी कलात्मक गुणवत्ता उसमें पहले नहीं थी। चुंबकीय उत्तेजना देने से पहले उससे घोड़े की रेखाकृति बनाने को कहा गया था। उसका घोड़ा न घोड़ा लग रहा था, न गधा, और न ही बैल! उसको एक वाक्य भी पढ़ने को कहा गया था


उस वाक्य में एक शब्द को दो बार लिखा था। जब उसने यह वाक्य पढ़ा, तो उसने दो बार लिखा हुआ शब्द एक ही बार पढ़ा था। जैसा लिखा था वैसा दो बार नहीं पढ़ा। मतलब लिखे हुए को वह ठीक से पढ़ भी नहीं सकता था। फिर पन्द्रह मिनट तक चुंबकीय उत्तेजना देने के बाद उसे अपने होंठों में, ठोड़ी में, गालों में जोरदार स्पन्दन महसूस हुआ।


पन्द्रह मिनट के उपचार के बाद चुमबक हटा लिए गए। अब उसने वही वाक्य सही से पढ़ा। उसने घोड़े की रेखाकृति फिर से बनाई, उसमें भी चेहरे की सारी रेखाएं बारीकी से बनाई। हालांकि इसका असर एक घंटे तक ही रहा। एक घंटे बाद वह फिर से अपनी स्वाभाविकता में आ गया। यह इस बात को सूचित करता है कि कुछ ऐसी तरंगें भी होती हैं, जो हमारे मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बढ़ा सकती हैं|



अति महत्वपूर्ण कार्य करने वाली शरीर की तीन ग्रन्थियांमस्तिष्क में हैं। इसी वजह से चेतना का आसन भी शरीर सर्वश्रेष्ठ अंग मस्तिष्क में ही है। इसलिए सद्गुरू के चरणों दंडवत् प्रणाम करने की परम्परा चलती आ रही है। सद्गुरू के प्रति पूर्ण समर्पण का चिन्ह है।



अगर दिमाग का कार्य ठीक से न चल रहा हो, तो उसे सही किया जा सकता है। कमजोर स्मृति को सुधारा जा सकता है। कलात्मक गुणवत्ता का विकास भी मस्तिष्क में किया जा सकता है।


जिनमें ऐसी गुणवत्ता की कमी है, उनमें इसका आरोपण भी किया जा सकता है। वहां उन वैज्ञानिकों ने चुम्बकों का इस्तेमाल किया था। परन्तु भारतीय परम्परा में हम धारणा और ध्वनि तरंगों, नाद-अनुसंधान का उपयोग करते है|


जब आप खुली या बंद आंखों से त्राटक करते हैं या कार का गुंजन या विशेषतः प्राणायाम करते हैं, तब धारणा और एकाग्रता द्वारा आपका मस्तिष्क चुंबकीय उत्तेजना द्वारा प्राप्त तरंगों से ज्यादा बेहतर तरंगों को ग्रहण करता है। इससे यह सूचित होता है कि इन तंत्र-विधियों का नियमित अभ्यास तुम्हारे बौद्धिक सामर्थ्य को बढ़ाता है |


नियमित अभ्यास से किसी मूर्ख को भी विद्वान बनाया जा सकता है। इसलिए अगर किसी को यह लगता है कि वह मूर्ख है, तो इसमें भी परेशान होने वाली कोई बात नहीं है। अपनी इस मूर्खता और जड़ता को दूर करने के लिए उचित आसन और नियमित प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए|


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