ईश्वर को प्रसन्न कैसे करें
आध्यात्मिक लेख
ईश्वर को प्रसन्न करने के विभिन्न स्रोत
1. पूजा-पाठ
परमात्मा को पूजिए घट में धर कर ध्यान।
मन को मन्दिर मानिए, जो है परम महान॥
ईश्वर जगत के सुपालक, आनन्दमय, सुखधाम, मंगलमय, मंगलप्रद, महामोद के रूप तथा तेजोमय स्वरूप हैं। सब सुखों के स्रोत हैं। अक्षय ज्ञानमय भंडार हैं। भ्रम व भय को दूर करने वाले हैं सबको शरण देने वाले हैं। दीन दयाल व दयानिधि हैं। प्रेम रूप हैं देशकाल से परे हैं। सृष्टि के अन्तर्यामी हैं| हे ईश्वर, हमें दैहिक, दैविक, भौतिक तीन प्रकार के तापों से बचाओ। हम एकाग्रचित्त होकर तुम्हारा नाम जपें। कीर्तन, कर्म की उपासना, स्तुति, सुविचारों द्वारा भक्ति भाव से तुम्हारा पूजन करेंमन-मन्दिर को तुम्हारी पूजा के धूप-दीप से सुगंधित करें| मेरे रसीले शब्द पुष्प हों। रस से भरे सुरों के गीतों द्वारा तुम्हारी अर्चना करें। तुम आत्म-जगत के सूर्य हो। शरणागत की लाज तुम्ही हो। सिर झुकाकर तन-मन-धन तुझ पर अर्पण कर दूंमन, वाणी और कर्म से मैं तुम्हारी बनूं। मेरा समर्पण स्वीकार करो।
2. आरती
श्रद्धा की धूप और भक्ति के दीपक लेकर
भावमय आरती करूं। हरि गुणों का गान करूं।
मन मन्दिर के देश में ईश्वर की महान ज्योति झिलमिल करे। चन्द्र और सूर्य दीपक हैं। शेष ग्रह ज्योति हैं। आकाश के थाल में तारे मोतियों के समान हैं। इसी प्रकार भीतर के आकाश में भी तुम्हारा तेज प्रकाश-पुंज बन के चमके। ईश्वर की आरती सारे विघ्नों का नाश करने वाली है। इस जगत की रचना अद्भुत है। जहां राम का जाप होता है वहां सुमधुरता दिखाई देती है। भक्ति, जप, सिमरन, दान-पुण्य, शुभ कर्म सब आरती के विभिन्न रूप हैं जो हमारे पापों को समाप्त करती है। आरती खुशियों व सुमति की खान है। मेरा रोम-रोम खुश होकर जय जगदीश बोले|
3. ध्यान
पुंज व सुख की राशि श्री राम में ध्यान लगाइये। वे सारे संसार के प्रेरक हैं सृष्टि के पालक हैं सर्वव्यापक, सर्वशक्मिान व सर्वद्रष्टा हैं। अति सुन्दर व अति आकर्षक हैं। परमानन्द हैं। सारे विश्व के संचालक व शासक हैं। ध्येय में धारणा करो। प्रभु नाम को लक्ष्य बनाओ। धैर्य से एकाकार होकर ईश्वर रूपी ध्येय धुरी में ध्यान लगाइये। जब हमारी वृत्ति एक तार हो जाए, जैसे जल की धार हो, तब नाम की ध्वनि उत्पन्न होगी। जैसे दीपक के साथ शिखा जुड़ी होती है उसी प्रकार से ईश्वर के साथ अपनी वृत्ति को जोड़िए।
जिस प्रकार पक्षी अपने पंख सिकोड़कर पेड़ पर अपना स्थान बनाता है, उसी प्रकार अपनी वृत्ति रोककर राम का ध्यान कर उसके मन में स्थान बनाइये। जैसे कछुआ अपने सारे अंगों को सिकोड़कर सिर में ले जाता है, उसी प्रकार जीव भी अपनी सारी कल्पना को रोक कर ईश्वर में ध्यान लगाए। सेनापति अपनी सेना शिविर में ले आता है, मनुष्य अपनी समस्त वृत्तियों को ईश्वर ध्यान रूपी शिविर में ले आए। तुझे सर्वनियन्ता जानकर तुझे ध्याऊं। योगी, संत, मुनि भी तेरा पार न पाकर तुम्हें अद्भुत मानते हैं तेरी सत्ता के बिना न पत्ता हिल सकता है और न ही कोई फूल खिल सकता है। तू अविनाशी है। तेरी प्रेरणा के बिना एक परमाणु तक नहीं हिल सकता। समस्त ग्रह मंडल में तुम्हारा शासन चलता है। मेरे हृदय व मस्तक रूपी कमल में केवल राम नाम गूंजे। अजपा आप सारे क्लेशों को दूर करता है। यही सुगम योग हैयह चलते-फिरते हर समय किया जा सकता है। जीवन के तराजू में एक ओर समस्त स्वासें हों, दूसरी ओर तुम्हारा नाम होप्रभु में ध्यान चिंतामणि है और तुम्हारा नाम अनमोल योग है। प्रभु सिमरन ही समस्त कर्मों का सार है। प्रभु कृपा से ही नाम-दान मिलता है|
4. स्तुति
हे प्रभु! तुम पावन, दयालु, रूप व परम पुरूष होपरम प्रकाश के पुंज हो। परम दानी उदार हो व दिव्य हो। तीन गुणों से परे होने के कारण निर्गुण सृष्टि के कर्ता भी हो कारण हो। गौरव गरिमा से युक्त हो | दुखभंजन हो। शान्ति प्रदाता हो। दिखाई न देते हुए भी विविध प्रकार की लीलाएं करते होचन्द्रमा और सूर्य की ज्योति प्रसिद्ध है।
संसार जिस सूत से बना हुआ है तुमसे अलग नहीं हो सकता। तेरी महिमा अपरम्पार है। तेरा न आदि है न अन्त है। तू गुणागार है। प्रकृति भी सूर्य, चांद, तारों के रूप में सागर सरिता के साथ मिलकर तुम्हारा गुणगान करते हैं। पर्वत की ऊंची चोटियां व घने जंगल भी तेरी स्तुति करते हैं। सब संत, महन्त, योगी तुम्हें अद्भुत जानकर तुम्हें धन्य मानते हैं। जिस राम में सभी लोग रम रहे हैं वही मेरा राम है। तेरे ध्यान से हमारी वृत्ति सुस्थिर हो जाती है। चपल मन भी एकाग्र हो जाता है। जड़, चेतन सभी तुम्हारे न्याय पर निर्भर रहते हैं। तू पावन है। पापों को नष्ट करने वाला है। इसीलिए तेरा जाप पुण्यमय है। जिस मन में तू रहता है वह कैसे अपावन हो सकता है। जिस जीव में तेरी ज्योति जलती है वह कैसे अपावन हो सकता है। जहां राम नाम है वहां विघ्न बाधाएं कैसे रह सकती हैं?
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