गुरु-पर्व


                     जीवन को प्रकाशित करते 


                              गुरु पर्व 


सर्वप्रथम आप सभी सुधी पाठकों को छठ पूजा, दुर्गाष्टमी, गुरू नानक जयंती एवं बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। इस माह हम छठ पूजा एवं गुरू नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व को मना रहे हैं। कहने का आशय यह कि प्रकाश अर्थात ऊर्जा की उपासना। छठ पूजा में हम डूबते एवं उगते सूर्य को प्रणाम करते हैं और उनसे शरीर-मन-बुद्धि को शुद्ध करने का आह्वान करते हैं। प्रकाश पर्व पर भी हम उन प्रकाश पुंज गुरू नानक देव से शरीर-मन-बुद्धि को शुद्ध करने का आह्वान करते हैं। इस बार सिख समुदाय के लिए अत्यंत हर्ष की बात है कि करतारपुर, जहां गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, वहां जाने की अनुमति मिल गई है...


खैर, तो मैं बात कर रही थी प्रकाश पर्व की। जीवन में प्रकाश हो तो किसी गुरु की आवश्यकता ही नहीं रह जाती, लेकिन जीवन में प्रकाश का प्रस्फुटन ही तब होता है जब गुरु का आशीर्वाद मिल जाता है। इसलिए चाहे छठ पूजा हो अथवा प्रकाश पर्व, दोनों हमें याद दिलाते हैं कि जीवन में गुरु का बहुत ऊंचा स्थान है। हालांकि बुद्ध इसे 'आप्प दीपो भव' कहते हैं। यानी, अपना प्रकाश स्वयं बनो। बात ठीक है, लेकिन हम दुनियावी माया-मोह में जीने वाले तुच्छ जीव अपना प्रकाश स्वयं नहीं बन पाते, इसलिए गुरू की जरूरत पड़ती है। और गुरु हों, तो स्वयं परम नानक देव जी जैसे हों। जो इहलोक एवं परलोक दोनों सुधार दें। आप गुरु नानक देव जी का कालखंड देखें। वह तब अवतरित होते हैं, जब धरती पर पाप बहुतायत मात्रा में बढ़ गए थे। सब ओर अनाचार, पापाचार का बोलबाला था। ऐसे में गुरु नानक देव प्रकाश पुंज की तरह आए और लोगों को नई जीवन-दिशा दी। वह जीवन-दिशा आज भी करोड़ों लोगों का मार्गदर्शन कर रही है, चाहे वे सिख धर्म के अनुयायी हों अथवा नहीं। असल में हमारे सभी पर्व-त्योहार हमें प्रकाश-पूजा की अहमियत समझाते हैं। मकर संक्रांति, दीपावली, छठ, प्रकाश पर्व सभी इसी ओर इशारा करते हैं। अब सवाल है कि क्या हम जीवन में प्रकाश की घटना घटित होने देने का कितना सद्प्रयास करते हैं। जो लोग इस दिशा में प्रयास करते हैं, वे संत की श्रेणी में आ जाते हैं। जो नहीं कर पाते, माया-मोह के चक्कर में फंसे रहते हैंइसलिए, आइए इस प्रकाश पर्व पर हम ये सुनिश्चित करें कि हमारा जीवन कैसे प्रकाशित हो।


ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम पूर्णात पूर्न्मदुचय्ते|


     पूर्णस्य पूर्न्मादाये पूर्न्मेवा वशिशयते ||


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