निति कथायें
बादलों के आंसू के समान जल की एक बूंद नीचे गिरी। गिरने पर जब बूंद से पूछा गया कि यह रोना-धोना क्यों है तो उसने उत्तर दिया, “मैं कितनी छोटी और महत्वहीन हूं| मैं बहुत ही छोटी हूं और सागर इतना बड़ा है। मैं अपनी क्षुद्रता पर रोती हूं।"
बूंद को बताया गया, "रोओ मत। तुम अपने आपको नाम और रूप में मत सीमित रखो। तुम अपने अन्तर में देखो। तुम क्या हो इसे मालूम करो। क्या तुम जल नहीं हो? सागर क्या है? क्या वह भी जल ही नहीं है? जो वस्तुएं किसी एक वस्तु के बराबर होती है वे परस्पर भी बराबर होती है। तुम अपने आपको स्थान और काल में सीमित मत समझो। इस स्थान और काल के आगे देखो और अपनी वास्तविकता को पहचानो।"
जब हम अपने आपको काल में सीमित कर लेते हैं तो हम दुःखी हो जाते हैं। अपने आपको सबसे ऊपर उठाओ। केवल पदार्थ और आत्मा ही एक नहीं है बल्कि सभी समान हैं। सत्य “अहं" समय की सीमा से परे हैं। सारा विश्व हमारे अन्दर है। जिस प्रकार स्वप्न में हम स्वयं को जंगलों, पर्वतों, नदियों के पास देखते हैं और समझते हैं कि यह सभी वस्तुएं हमारे बाहर हैं किन्तु होती वे हमारे अन्दर ही है। यदि वे बाहर होती तो हमारे सोने के कमरे पर अत्यधिक भार पड़ता और हमारा बिछावन स्वप्न में दिखाई पड़ने वाली नदी के जल से भीग जाता।इसी प्रकार वेदान्त में कहा गया है, "सारा विश्व हमारे अन्दर है|
नक्षत्रीय और मानसिक संसार हमारे ही भीतर है। हम भ्रमवश समझते हैं कि हम उनमें हैं। जिस प्रकार अपने हाथ की आरसी में अपने प्रतिबिम्ब को देखकर कोई महिमा यह समझे कि वह आरसी के दर्पण के भीतर हैं तो यह बात बिलकुल विपरीत होती है। वैसे ही जगत हमारे भीतर है और हम जगत में नहीं है।