प्रकाश पर्व
गुरू नानक देव जी का अवतार क्यों हुआ?
आप नारायण कला धार जग में पखरियो। धन-धन गुरू नानक देव जी जिनका 550वां दिवस बड़े धूमधाम से मना रहे हैं। सब को लख-लख बधाई| हम सब बहुत भाग्यशाली हैं, जिन्हें यह दिन देखने को मिला है| जो अरदासें हम इतने सालों से करते हैं कि जो गुरू धाम हमसे बिछड़ गए हैं, उनके दर्शन हमें मिलें। वो करतारपुर का रास्ता खुल गया, जो कि पाकिस्तान में है।
गुरू नानक देव जी का अवतार क्यों हुआ? क्या कारण था कि आकाल पुरख को शरीर रूप लेकर आना पड़ा। सतगुरू नानक परगटया, मिट्टी धुंध जग चानन होआ, जो कि कत सूरज निकल्या तारे दीये अंधेर बनोया|
यह कौन-सी धुंध थी? उस वक्त के राजे बहुत ही जालिम थे। 60 सालों में 63 मुगल राजे हुए जो कि बहुत जालिम थे। उस वक्त सब बुरे कर्म वो करते थे। इनके हुक्म इतने बुरे थे कि रूह कांप जाए।
उस वक्त इन्होंने हिंदुओं के ठाकुर दुआरे, मंदिर सब गिरा दिए। कोई हिंदू पाठ-पूजा नहीं कर सकता, अच्छा पहन नहीं सकता था। न घुड़सवारी कर सकता था, न पीतल कांसे के बर्तन में खाना खा सकता था, वो सिर्फ मिट्टी के बर्तन में ही खाना खा सकते थे।
और तो और जब इन सुल्तानों को थूकना होता था तब यह हिंदुओं को बोलते थे कि मुंह खोलो। उसमें अपनी पीक फेंकते थे। उन्होंने हिंदुओं के मुंह को पीकदान बना दिया। बाकी उस वक्त का हिंदु समाज भी बहुत खराब हो गया था। यह चार वर्णों में बंटा हुआ था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। वैश्य और शूद्र को न पढ़ने, न सुनने का हक था। अगर कोई ऐसा करता तो उसके कानों में सिक्का डाल दिया जाता और पढ़ता तो जुबान में कील ठोंक देते| जुल्म की हाहाकार देखकर धरती पुकार उठी और धर्म को साथ लेकर ब्रह्मा जी के पास गई। हिंदु मत के अनुसार, धरती बैल के सींगों पर टिकी हुई है| अगर ऐसा है तो बैल को खड़ा होने के लिए भी तो जगह चाहिए। यह वहम गुरू नानक जी ने दूर किया और बताया कि यह बैल कौन-सा है? (यह है ढोल, धर्म दया के पूत)। ढोल क्या है, धर्म दया से पैदा होता है। धरती ब्रह्मा जी से कहती है आप तो दुनिया की साजना करके धरती पर भेज रहे हो। कृपा करो, मुझसे इनके दुखों का भार नहीं सहा जाता। पेड़-पौधों, नदियों, समुद्र, जानवरों का भार मुझे भारी नहीं लगता। पर मनुष्य के दुखों को मैं सहन नहीं कर पा रही। तब ब्रह्मा जी ने कहा मेरा कार्य दुनिया की सर्जना करना है। हम इस बारे में विष्णु जी से बात करते हैं, क्योंकि जब धर्म की हानि होती है, तब वे ही देखते हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत। जब भी धर्म की हानि होती है, तब विष्णु जी ही अवतार लेते हैं। जब विष्णु जी के पास जाते हैं तो वहां शिव जी भी होते हैं। तब विष्णु जी ने कहा कि ऐसा है कि मेरे 24 अवतार में से 23 अवतार हो चुके हैं। 24वां अवतार कलयुग के अंत में निहकलंक के रूप में होना है| तब ब्रह्मा जी ने कहा कि धरती क्या करे? विष्णु जी ने कहा कि फिर आकाल पुरख के पास चलते हैं। यह सुनकर शिव जी बोले, विष्णु जी आपसे बड़ा भी कोई है? उन्होंने कहा- हां, वो इतना बड़ा है कि आकाल पुरख की दह में कोटक विष्णु, महेश कोटक चंद्रमा, कोटक इंद्र महेश, कोटक इंद्र जलेस। विष्णु जी कहते हैं कि वो इतना बड़ा है कि उसमें करोड़ों ब्रह्मा, चांद, सूरज तारे समाये हुए हैं|
सभी मिलकर सच खंड के द्वार पर जाकर खड़े हुए। उस परमात्मा का न कोई रूप है, रंग है, न आकार है वो जोत स्वरूप है। (रूप न रंग न रे किछ तत्र है गुण प्रभ बिन जिसे बुधाए नानका जिस होबे सुप्रसन्न), उसी को ज्ञान होता है, जिस पर वो प्रसन्न हो। जब सबने मिलकर पुकार की, तब उस आकाल पुरख ने पुकार सुनी। करते सुनिया कन दे धीरक देवे सहज सुनावे सूनी पुकार दातार प्रभु गुरू नानक जग में पढ़ाया।
आकाल पुरख ने धरती से कहा कि अब मैं ही आऊंगा तेरे दुख को कम करने के लिए
सतगुरू नानक प्रगटिया मिट्टी धुंध जग चानन होआ।