सत गुरु नानक परगटया मिटटी धुंध जग चानन होया

             सत गुरु नानक परगटया


         मिटटी धुंध जग चानन होया 


       


 


  श्री गुरू नानक देव जी का जन्म 29 नवम्बर 1469 में गांव तलवंडी, शेइखुपुरा डिस्ट्रिक्ट में हुआ जो कि लाहौर पाकिस्तान से 65 किमी. पश्चिम में स्थित है। उनके पिता बाबा कालूचंद्र बेदी और माता त्रिपता ने उनका नाम नानक रखा। उनके पिता गांव में स्थानीय राजस्व प्रशासन के अधिकारी थे|


अपने बाल्य काल में श्री गुरू नानक जी ने कई प्रादेशिक भाषाएं सीखीं जैसे फारसी और अरबी। उनका विवाह वर्ष 1487 में हुआ और उनके दो पुत्र भी हए। एक वर्ष 1491 में और दुसरा 1496 में हुआ


वर्ष 1485 में अपने भैया और भाभी के कहने पर उन्होंने दौलत खान लोधी के स्टोर में अधिकारी के रूप में नियक्ति ली जो कि सुल्तानपुर में मुसलमानों का शासक थावही पर उनकी मलाकात एक मुस्लिम कवि के साथ हुई जिसका नाम था मिरासी |


वर्ष 1496 में उन्होंने अपनी पहली भविष्यवाणी की- जिसमें उन्होंने कहा कि 'कोई भी हिन्दू नहीं और ना ही कोई मुसलमान है' और कहा कि यह एक महत्वपूर्ण घोषणा है जो न सिर्फ आदमी के भाईचारा और परमेश्वर के पितृत्व की घोषणा है बल्कि यह भी स्पष्ट है कि मनुष्य की प्राथमिक रूचि किसी भी प्रकार के आध्यात्मिक सिद्धान्त में नहीं हैवह तो मनुष्य और उसकी किस्मत में हैइसका मतलब है अपने पड़ोसी से अपने जितना प्यार करो |


गुरू नानक देव जी का मिशन


गुरू नानक देव जी ने अपने मिशन की शुरूआत मरदाना के साथ मिल कर की। अपने सन्देश के साथ-साथ उन्होंने कमजोर लोगों के मदद के लिए जोरदार प्रचार किया। इसके साथ उन्होंने जाति भेद, मूर्ति पूजा और छद्म धार्मिक विश्वासों के खिलाफ प्रचार किया।


उन्होंने अपने सिद्धान्तों और नियमों के प्रचार के लिए अपने घर तक को छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में रहने लगे। उन्होंने हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के विचारों को सम्मिलित करके एक नए धर्म की स्थापना की जो बाद में सिख धर्म के नाम से जाना गया। गुरू नानक देव जी ने भारत में अपने ज्ञान के प्रसार के लिए कई हिन्दू और मुस्लिम धर्म की जगहों का भ्रमण किया।


 एक बार वे गंगा तट पर खड़े थे और उन्होंने देखा कि पानी के लिए कुछ व्यक्ति अन्दर खड़े होकर सूर्य की ओर पूर्व दिशा में देखकर पानी डाल रहे हैं उनके स्वर्ग में पूर्वजों की शान्ति के लिए। गुरू नानक जी भी पानी में गए और वे भी अपने दोनों हाथों से पानी डालने लगे पर अपने राज्य पंजाब में पूर्व की ओर खड़े होकर। जब यह देख लोगों ने उनकी गलती के बारे में बताया और पूछा ऐसा क्यों कर रहे थे तो उन्होंने उत्तर दिया- अगर गंगा माता का पानी स्वर्ग में आपके पूर्वजों तक पहुंच सकता है तो पंजाब में मेरे खेतों तक क्यों नहीं पहुंच सकता क्योंकि पंजाब तो स्वर्ग से पास है।


पूरे भारत में अपने ज्ञान को बांटने के पश्चात उन्होंने मक्का मदीना की भी यात्रा की और वहां भी लोग उनके विचारों और बातों से अत्यन्त प्रभावित हुए।


जब गुरू नानक जी 12 वर्ष के थे उनके पिता ने उन्हें 20 रूपए दिए और अपना एक व्यापार शुरू करने के लिए कहा ताकि वे व्यापार के विषय में कुछ जान सकें। पर गुरू नानक जी ने उस 20 रूपए से गरीब और संत व्यक्तियों के लिए खाना खिलाने में खर्च कर दिया। जब उनके पिता ने उनसे पूछा- तुम्हारे व्यापार का क्या हुआ? तो उन्होंने उत्तर दिया- मैंने उन पैसों का सच्चा प्यापार किया। जिस जगह पर गुरू नानक देव जी ने उन गरीब और संत व्यक्तियों को भोजन खिलाया था वहां सच्चा सौदा नाम का गुरूद्वारा बनाया गया है। बाद में उनकी मृत्यु भी वहीं हुई। 


भाई गुरूदास जिनका जन्म गुरू नानक के मृत्यु के 12 वर्ष बाद हुआ बचपन से ही सिख मिशन से जुड़ गए उन्हें सिख गुरूओं का प्रमुख चुना गया। उन्होंने सिख समुदाय जगह-जगह पर बनाया और अपने बैठक के लिए सभा बनाया जिन्हें धरमशाला के नाम से जाना जाता है। आज के दिन में धरमशालाओं में सिख समुदाय गरीब लोगों के लिए खाना देता है।



 मोक्ष तक ले जाता है गुरु नानक देव जी का जीवन दर्शन


सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानक देव जी। गुरु नानक देव जी से मोक्ष तक पहुंचने के एक नए मार्ग का अवतरण होता है।


 इतना प्यारा और सरल मार्ग कि सहज ही मोक्ष तक या ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व आदिकाल से ही रहा है। कबीर साहब ने कहा था कि गुरु बिन ज्ञान न होए साधु बाबातब फिर ज्यादा सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है बस गुरु के प्रति समर्पण कर दो। हमारे सुख-दु:ख और हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य गुरु को ही साधने दो। ज्यादा सोचोगे तो भटक जाओगेअहंकार से किसी ने कुछ नहीं पायासिर और चप्पलों को बाहर ही छोड़कर जरा अदब से गुरु के द्वार खड़े हो जाओ बस। गुरु को ही करने दो हमारी चिंता। हम क्यों करें।


नाम धरियो हिंदुस्तान


कहते हैं कि गुरु नानकदेवजी से ही हिंदुस्तान को पहली बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानक देवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था- खुरासान खसमाना कीआ हिंदुस्तान डराईआ                                                                            साभार नेट 


 


 


 


 


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