शंका समाधान
जीव का स्वरूप
प्रश्नः जीव का स्वरूप क्या है? ब्रह्म जीव भाव को क्यों प्राप्त हुआ?
उत्तरः जीव का स्वरूप सत् चित् आनन्द है, और यह ब्रह्म रूप ही है। परन्तु माया के प्रभाव से अज्ञानता को प्राप्त होकर अपने वास्तविक रूप को भूल जाता है। जैसे शेर का बच्चा भेड़-बकरियों में रह कर अपना स्वरूप भूल चुका था और स्वयं को भेड़-बकरी ही समझता था, वही दशा इस जीव की है। शेर का बच्चा भेड़ या बकरी बना तो नहीं, पर उसे भ्रम हो गया कि वह शेर नहीं है। एक बार, एक शेर जंगल से गर्जता हुआ आया और उसे गर्दन से पकड़कर झील के किनारे ले गया और बोला कि बता तू शेर है या बकरी?तब उसे ज्ञान हुआ कि वह तो वास्तव में शेर ही है। इसी तरह वेद-शास्त्र और ज्ञानी महात्मा इस जीव को यह उपदेश देते हैं कि 'तत्त्वमसि' पर वह जीव इस महावाक्य से डरता है।
कहता है कि मैं तो जीव हूँ, ब्रह्म नहीं, मैं देहधारी हूँ, मैं पापी हूँ, अल्पज्ञ हूँ, अशक्त हूँ, मैं ब्रह्म कैसे हो सकता हूँ? वह तो परम शान्त, परम आनन्द, सर्वज्ञ है। पर फिर ज्ञानी महात्मा उसे उपदेश देते हैं कि अरे जीव। यह शरीर जिसे तुम अपना आप बताते हो, कहो कि जन्म से पहले यह कहाँ था? और मरने के बाद कहाँ चला जाएगा?इसका गर्भ में आना, जन्म लेना, बढ़ना और फिर नष्ट होना- ये देह के धर्म हैं। क्या तुम इनके साथ परिवर्तित हो रहे हो?तुमने इसका जन्म देखा, बचपन देखा, यौवन देखा, बुढ़ापा देखा और अब मृत्यु भी देखोगे|
तुम में तो किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आया। यह शरीर तो बदलता रहता है और तुम इसके परिवर्तनों को देखने वाले साक्षी हो। फिर बताओ तुम शरीर हो या इसके साक्षी आत्मा हो? शरीर के धर्मों को क्यों अपने में मानते हो और व्यर्थ ही दुखी हो रहे हो। आत्मा का स्वरूप सत्, चित्, आनन्द है, और शरीर असत्, जड़, दु:ख रूप है |
जैसे एक बादशाह ने स्वप्न देखा कि वह कंगाल हो गया है और दु:ख मनाने लगा पर जब जागा तो देखा अपने महल में आरामदेय शैय्या पर सो रहा है। इसी तरह यह जीव अज्ञान की नींद में सो रहा है और स्वप्न में कंगाल बना हुआ है। जब यह ज्ञान में जाएगा तो जानेगा कि मेरा जीवन तो मात्र स्वप्न था। मैं तो सदा अपने सच्चिदानन्दमय स्वरूप में स्थित हूँ। मैं तो ब्रह्म ही हूँ “अहं ब्रह्मास्मि"। और यह ज्ञान होते ही वह कृत्-कृत् हो जाएगा।
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