वेद पाठ


स्वचिंतन


वेद पाठ तथा यज्ञों से ही भाग्योदय संभव


जब तक देश में वैदिक विद्वानों का स्वागत सरकार सम्मान तथा यज्ञ-यागादि प्रचुर मात्रा में होते रहे तब तक लाखों संकटों में भी वेदों की तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति, विज्ञान, पराविद्याओं की रक्षा होती रही, किन्तु अब वह पराविद्याओं का प्रकाश वैभव यदा-कदा भी दृष्टिगोचर होना कठिन हो गया है|


आज आवश्यकता है जन साधारण में अपनी संस्कृति साहित्य तथा पराविद्याओं के प्रति श्रद्धा सम्मान जगाने की, और यह विश्वास जाग सकता है जब हम स्थान-स्थान पर छोटे बड़े यज्ञ, हवन, अग्निहोत्र आदि का लगातार बार-बार आयोजन करें। जब से यज्ञ यागादि की परम्परा छिन्न-भिन्न हो गई तब से वेदों के पढ़ने-पढ़ाने की परिपाटी भी समाप्त हो गई। हिन्दू धर्म को बचाने के लिए पढ़ने-पढ़ाने की  इच्छा को जनता में जगाने की तत्काल जरूरत है। वेदों की रक्षा के लिए यज्ञ से बड़ा साधन और नहीं हो सकता। हिन्दू धर्म वैदिक संस्कृति को बचाने के लिए नित्य यज्ञ करने का संकल्प लो।


यज्ञ, हवन, अग्निहोत्र की बड़ी महत्ता है। किसी समय संसार के अधिकांश धर्म मतमतान्तरों में किसी न किसी रूप में अग्निसाधना अवश्य की जाती थी। और आज भी वह थोड़े रूप में दृष्टिगोचर होती है|


यज्ञदानतपः कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।


यज्ञोदानं तपत्रैव पावनानि मनोषिणम्॥ ( 18/5)


मनोषिणम्यज्ञ, दान और तप आदि कार्य कदापि त्यागने योग्य नहीं. क्योंकि यज्ञ, दान, तप यह तीनों कर्म मुनि (मनिषी) जैसे उच्च पुरूषों को भी पवित्रता प्रदान करने वाले हैं।


यज्ञ महिमा


सृष्टि निर्माण करते समय मानव मात्र के लिए जो मूलभूत तथ सुत्रमय कल्याण कारक ज्ञान संस्कृत विश्व की मूल भाषा है। और आज तक भूतल पर बोली जाने वाली सभी भाषाओं की वह जननी है।


मानव जाति को आचरण में लाने के लिए पांच मूलभूत सिद्धान्त वेदों द्वारा, यज्ञ, दान ,उपासना ,स्वाध्याय और स्वास्थ्य। मनुष्य अपने जीवन में कल्याण कारक सभी कुछ इन पांच सिद्धान्तों के निष्ठापूर्वक आचरण से प्राप्त कर सकता है। इनमें प्रथम सुबह-शाम प्रतिदिन आचरण में लाया जाने वाला यज्ञ 'अग्निहोत्र' ही है।


अग्नि उपासना या यज्ञ उपासना सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित थी। विभिन्न स्वरूपों में केटन्स, बेबीलोनियन्स, सूमेरिन्यस, एकैडियन्स सेमिठूस, पेलिनेशियन्स, ग्रीक, ज्यू, भारतीय, पर्शियन्स, तथा अफ्रीकन्स अग्नि उपासना करते थे, इसके प्रमाण मिलते हैं। मेक्सिको (द. अमेरिका) के इन्का लोगों में यज्ञ उपासना काफी विकसित स्वरूप में थी। जापान में आज भी एक जाति के लोग अग्नि उपासना करते हैं। जिन्हें गोमा (Goma) कहते हैं| सोवियत रूस के बाकू" प्रदेश में प्राचीन मन्दिर याद दिलाते हैं अग्नि उपासना की। पारीसी संप्रदाय का धर्म ग्रंथ अवेस्ता यज्ञ को यश्त कहता है। जिसका अर्थ है वह पवित्र कृति जिससे दैविक सुख प्राप्त किया जाता है। उनके स्थान अग्नि मन्दिर कहलाते हैं और उपास्य बैवत अहुत मज्द (असुर महत महान ईश्वर) कहलाते हैं। भारत में हिन्दुओं में कोई भी शुभ-अशुभ (


16 संस्कार) यज्ञ के बिना पूर्ण नहीं होता है।आर्ष ग्रंथों में पग पग पर यज्ञ की महिमा गाई है। यज्ञ एक ऐसा विज्ञान है जिससे मनुष्य को भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से कल्याण कारक उत्कर्ष होता है। यथा-


यदि क्षितायुर्यदि वा परेता मृत्यो रन्ति नीतिएव|


तमाहरामि निअ ते रूपस्या तस्यार्थ मेन शत क्षारदाय॥ अर्थववेद (3/11/2)


अर्थात- यदि अपनी जीवन शक्ति को खो भी चुका हो निराशाजनक स्थिति को पहुंच गया हो। यदि मरा काल भी समीप आ पहुंचा हो, तो भी यज्ञ उसे मृत्यु के चंगुल से बचा लेता है और सौ वर्ष जीवित रहने रहने के लिए पुनः बलवान बना देता है|


                                                             


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